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World Tribal Day: उरांव : भारत में पाये जानेवाली प्रमुख जनजाति

इन जनजाति का जल, जंगल, जमीन से गहरा संबंध होने के कारण इनके गोत्र भी पशु पक्षी, वनस्पति, धातु एवं खान गोत्र से पुकारा जाने लगा. इसी तरह खेस यानी धान लकड़ा यानी बाध्य मिंज यानी मछली आदि नाम गोत्र के रखे गये. इनका निज गोत्र में विवाह भी वर्जित है.

अजीत कुमार

सेवानिवृत शिक्षक

इन जनजाति का जल, जंगल, जमीन से गहरा संबंध होने के कारण इनके गोत्र भी पशु पक्षी, वनस्पति, धातु एवं खान गोत्र से पुकारा जाने लगा. इसी तरह खेस यानी धान लकड़ा यानी बाध्य मिंज यानी मछली आदि नाम गोत्र के रखे गये. इनका निज गोत्र में विवाह भी वर्जित है. आश्चर्य की बात यह है कि अंग्रेज कभी इस जनजाति को गुलाम नहीं बना सके. 2000 वर्षों तक छोटानागपुर पर स्वतंत्र रूप से शासन किया. आज इस जनजाति के उन्नयन के लिए सरकार लगातार कार्य कर रही है.

उरांव (ओरांव) कुड़ख भारत में पाये जाने वाली एक प्रमुख जनजाति है. बिहार, छत्तीसगढ़ में इन्हें उरांव कहा जाता है. यह छोटानागपुर दोय का एक आदिवासी समूह है. महाराष्ट्र में इन्हें धनगड़ या धनगर के नाम से भी जाना जाता है. परंपरागत रूप से इनकी अर्थव्यवस्था और जीविका मूल रूप से कृषि, शिकार और वनोत्पादों पर आधारित रही है. अब पशुपालन, कुक्कुर पालन भी सम्मिलित हो गया है. ब्रिटिश शासन के दौरान असम ,पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के चाय बगान में चले गये तो कुछ खनिज और इस्पात में श्रमिक के रूप में काम करते हैं.

शिक्षा के क्षेत्र में झारखंड सरकार ने इन्हें आगे बढ़ाने का किया प्रयास:

झारखंड सरकार द्वारा इन्हें शिक्षा के रूप में काफी आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है. शिक्षा और सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व बढ़ाकर मुख्य धारा से जोड़ने के उद्देश्य से इन्हें आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. यह जनजाति बहुतायत रूप से मध्य और पूर्वी भारत में पाये जाते हैं. मुख्य रूप से यह जाति झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, बिहार,असम, और त्रिपुरा में निवास करते हैं.

उरांव जनजाति में गांव के प्रमुख को पाहन भी कहा जाता है: इस जाति के लोगों के द्वारा गांव के प्रमुख को पाहन भी कहा जाता है, जिसे विशेषाधिकार सहित जमीन दी जाती है और जो ग्राम देवता की पूजा करता है. इस जनजाति के प्रशासकीय प्रमुख को मुंडा कहा जाता है. 2011 की जनगणना के अनुसार, इनकी आबादी 17 लाख 16 हजार 618 है. अखरा, यदुर इनकी नृत्य शैली है. श्मशान में इनके शव को गाड़ा जाता है तथा इसके ऊपर बड़ा पत्थर रखा जाता है.

इन जनजाति का जल जंगल से गहरा संबंध है: इन जनजाति का जल, जंगल, जमीन से गहरा संबंध होने के कारण इनके गोत्र भी पशु पक्षी, वनस्पति, धातु एवं खान गोत्र से पुकारा जाने लगा. इसी तरह खेस यानी धान लकड़ा यानी बाध्य मिंज यानी मछली आदि नाम गोत्र के रखे गये. इनका निज गोत्र में विवाह भी वर्जित है. आश्चर्य की बात यह है कि अंग्रेज कभी इस जनजाति को गुलाम नहीं बना सके. 2000 वर्षों तक छोटानागपुर पर स्वतंत्र रूप से शासन किया.

आज इस जनजाति के उन्नयन के लिए सरकार लगातार कार्य कर रही है. कुडुख भाषा को लगभग सभी सरकारी स्कूल में एक भाषा के रूप में पढ़ाये जाने के लिए आदेश भी जारी कर दिया गया है तथा प्रशासनिक सेवा में भागीदारी बढ़ाने के लिए निःशुल्क कोचिंग की व्यवस्था की गयी. वहीं उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति एवं विदेश में शिक्षा के लिए अल्प ब्याज दर पर ऋण दिये जा रहे हैं. सरकार की संस्कृति, खेल के प्रति सकारात्मक रुख से नयी चेतना या संचार हो रहा है.

निश्चय ही भविष्य में यह जनजाति सामाजिक धारा की मुख्य धारा बन जायेगी. वहीं इस जनजाति के बारे में पूछे जाने पर झामुमो के पूर्व केंद्रीय सदस्य महेंद्र उरांव ने बताया कि यह जनजाति मुख्य रूप से गोड्डा जिले के तीन प्रखंड महागामा, मेहरमा व ठाकुरगंगटी में हैं. महागामा के छह गांव पत्थरखानी, लक्खीपुर, जठेरीडीह, निमनियांकित्ता, बैरियाकित्ता व भोजूचक.

मेहरमा में 14 गांव मेहरमा, सुड़नी, अमौर, खिरौंधी, डोई, सियारडीह, नावाडीह, पीपरा, सौरिचकला, दासूचकला, मसूरिया, कुमरडोभ, डोमन चक व द्वारिकाकित्ता. ठाकुरगंगटी के छह गांव कुरपट्टी,चपरी, चांदचक डुमरिया, सोनपुर, नावाडीह, ताजकित्ता पकसो में ये लोग हैं. इस जनजाति की कुल आबादी लगभग 10 हजार है. बताया कि पहले की तुलना में अभी के लोग काफी शिक्षित हुए हैं. खासकर वैसे जगह जिस जगह पर सरकार की ओर से शिक्षा की दृष्टिकोण से चलायी जा रही योजना का लाभ उठा रहे हैं.

आज की पीढ़ी शिक्षित हो रही है. आज के बच्चे बच्चियों में पढ़ाई के प्रति झुकाव ज्यादा है. इसके अलावे नौकरी की ओर भी इनका झुकाव बढ़ते जा रहा है. वैसे सरकार द्वारा इस जनजाति के लिए चलाये गये महत्वाकांक्षी योजना गांव तक कम दिख रही है, इस कारण अभी भी पिछड़े हैं. अब के बच्चे हर नौकरी कर रहे हैं, मगर पुलिस में इनकी ज्यादा भागीदारी देखी जा रही है.

उरांव जनजाति के प्रमुख व्यक्ति रहे

झारखंड राज्य में इन लोगों ने राजनीतिक क्षेत्र में भी इनकी प्रमुख भागीदारी रही है. बुधु भगत (स्वतंत्रता सेनानी), जतरा भगत (सेनानी और समाज सुधारक), लांस नायक एल्बर्ट एक्का (1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के नायक व परमवीर चक्र से सम्मानित), सुदर्शन भगत (सांसद), कार्तिक उरांव (सांसद), साइमन उरांव (पद्मश्री से सम्मानित पर्यावरणविद), दिनेश उरांव (राज्यसभा सांसद) इसके अतिरिक्त हॉकी खिलाड़ी व तीरंदाज भी रहे.

सरना इनका मुख्य और पारंपरिक धर्म है

सरना इनका पारंपरिक धर्म है, जो प्रकृति पूजा पर आधारित है. लेकिन हिन्दू और इसाई धर्म को भी मानने वाले हैं. जो कि सूर्य देवता को बीड़ी, महादेव को धर्मेशा, चंद्रमा को चंदो और पृथ्वी को आयो (धरती माता) के रूप में पूजते हैं. धर्मेश इनके सर्वोच्च सर्वशक्तिमान देवता हैं. इनके प्रमुख त्योहार सरहुल, करमा, घनबुनी, नयाखानी, खरयानी है.

इनकी अपनी मूल भाषा है

ये अपनी मूल भाषा उरांव या कुड़ख बोलते हैं, जिनका संबंध द्रविड़ भाषा परिवार से है. इसके अलावा सादरी, उड़िया और हिंदी भाषा भी बोलते हैं. उरांव और कन्नड़ भाषा में अनेक समानताएं हैं और इस आधार पर कहा जाता है कि इनके पूर्वज कर्नाटक या कोंकण से नर्मदा के आसपास के इलाके में आये और बाद में बिहार तथा छोटानागपुर में बस गये.

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