रिखियापीठ में सेवा गरीबों की मदद नहीं, एक साधना है : स्वामी सत्संगी

रिखियापीठ में आयोजित योग पूर्णिमा उत्सव के तीसरे दिन महामृत्युंजय होम, रुद्राभिषेक के साथ गुरु पूजा की गयी. रिखिया की कन्याओं ने नृत्य से शिव जी की आराधना की. शिव भजन में देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने नृत्य किये.

By Prabhat Khabar News Desk | December 13, 2024 7:35 PM

संवाददाता, देवघर : रिखियापीठ में आयोजित योग पूर्णिमा उत्सव के तीसरे दिन महामृत्युंजय होम, रुद्राभिषेक के साथ गुरु पूजा की गयी. रिखिया की कन्याओं ने नृत्य से शिव जी की आराधना की. शिव भजन में देश-विदेश के श्रद्धालुओं ने नृत्य किये. स्वामी सत्संगी जी ने प्रवचन में मंत्र व सेवा के महत्व बताये. उन्होंने कहा कि भगवान का नाम लेने से स्मरण शक्ति बढ़ती है. भगवान का नाम प्रतिदिन लेना चाहिए. इससे इच्छाशक्ति व आत्मशक्ति की प्राप्ति होती है. भगवान के नाम के साथ-साथ मंत्रों के उच्चारण करने से मन व तन से व्यक्ति स्वस्थ होता है. शास्त्रों में कलयुग में मंत्रों का उच्चारण व भगवान नाम लेना प्रमुख साधना बताया गया है. मंत्रों के साथ प्रेम तथा श्रद्धा से भगवान का नाम लेने से फल की प्राप्ति होती है. मंत्र व सेवा आज की साधना है. मंत्र से शुद्धता होती है. सेवा को दिनचर्या में शामिल करना चाहिए. सेवा में स्वार्थ नहीं होनी चाहिए. सेवा निष्काम होनी चाहिए. रिखियापीठ को परमहंस स्वामी सत्यानंद जी ने सेवा कार्य के लिए बनाया है. रिखियापीठ में सेवा कोई गरीबों की मदद के लिए नहीं होता है, बल्कि यह एक साधना है. रिखियापीठ में सेवा 35 वर्षों हो रही है. स्वामी सत्यानंद जी ने प्रेम से इस सेवा की शुरुआत साधना के रूप में की थी. इस सेवा का आधार प्रेम है. स्वामी सत्यानंद जी ग्रामीणों से प्रेम करते रहे हैं. यह प्रेम नि:स्वार्थ आज भी चल रहा है. मंत्र व सेवा से जीवन में नये अवसर प्राप्त होंगे. योग पूर्णिमा के तीसरे दिन भी ग्रामीणों के बीच प्रसाद का वितरण किया गया.

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