बचपन में ही फादर अमलादास पर संत जॉन डी-ब्रिटो के जीवन का गहरा प्रभाव पड़ा. उन्होंने अपनी जिंदगी मानव सेवा से जुड़े कार्यों में लगाने का संकल्प लिया. आगे चलकर गरीब बच्चों में शिक्षा का अलख जगाने की मुहिम से जुड़ गये और आज धनबाद जिले के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में एक डिगवाडीह स्थित डी-नोबिली स्कूल की कमान संभाली है.
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जिस स्कूल में ट्रेनिंग ली, आज उसी की कमान संभाल रहे हैं फादर अमलादास
धनबाद: कभी जिस स्कूल में बतौर ट्रेनिंग शिक्षक के रूप में काम किया, आज उसी स्कूल की कमान संभाल रहे हैं फादर अमलादास. बात हो रही है डिगवाडीह स्थित डी-नोबिली स्कूल के नये प्रिंसिपल की. वर्ष 1994 में फादर अमलादास ने डी-नोबिली स्कूल में बतौर ट्रेनी साइंस टीचर योदगान दिया था. दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास […]
धनबाद: कभी जिस स्कूल में बतौर ट्रेनिंग शिक्षक के रूप में काम किया, आज उसी स्कूल की कमान संभाल रहे हैं फादर अमलादास. बात हो रही है डिगवाडीह स्थित डी-नोबिली स्कूल के नये प्रिंसिपल की. वर्ष 1994 में फादर अमलादास ने डी-नोबिली स्कूल में बतौर ट्रेनी साइंस टीचर योदगान दिया था. दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास के साथ कुछ कर गुजरने की चाह हो तो कुछ भी असंभव नहीं, फादर अमलादास इसकी जीवंत मिसाल हैं.
बच्चों के सर्वांगीण विकास पर होगा जोर : फादर अमलादास कहते हैं-“मेरी पहली प्राथमिकता बच्चों का सर्वांगीण विकास है. पढ़ाई के साथ-साथ उनके अंदर के हुनर को निखारना है. बच्चों की उन्नति कैसे हो? उनका बेहतर तरीके से विकास कैसे हो? इन सवालों को ध्यान में रखते हुए शिक्षण कार्य करना होगा. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को हर क्षेत्र में अव्वल यानी ऑलराउंडर बनाना मेरा मुख्य उद्देश्य व लक्ष्य है. इसके लिए बेहतर माहौल तैयार करने का प्रयास किया जायेगा. ऐसा माहौल, जिसमें बच्चों में खुशी, प्यार और अनुशासन की भावना मजबूत हो. ऐसा माहौल, जहां उनकी बुद्धि का विकास कुदरती तौर पर संभव हो सके.”
फ्रेंडली माहौल बनाने का प्रयास : फादर अमलादास कहते हैं-“स्टूडेंट्स, शिक्षकों और अभिभावकों में कैसे बेहतर संबंध स्थापित हो सके, इस दिशा में भी जरूरी कदम उठाये जायेंगे. इसके लिए अभी एक-एक चीजों को समझने का प्रयास कर रहा हूं, ताकि स्कूल में फ्रेंडली माहौल बन सके. यीशु समाज की ओर से मुझे जो जिम्मेदारी दी गयी है, उनका निर्वाहन पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ करने का प्रयास करूंगा.”
17 वर्षों तक ओड़िशा रही कर्मभूमि : करीब 17 वर्षों तक ओड़िशा फादर अमलादास की कर्मभूमि रही. ओड़िशा के कंधमाल जिले के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में गरीब आदिवासी बच्चों के लिए यीशु समाज द्वारा संचालित संत जेवियर स्कूल में फादर अमलादास ने 17 वर्षों तक अपनी सेवा दी. 10 वर्षों तक बतौर प्राचार्या काम किया.
2009 में लोयला भुनेश्वर के प्राचार्य बने : वर्ष 2009 में फादर अमलादास को भुनेश्वर स्थित लोयला स्कूल के प्राचार्य की जिम्मेदारी मिली, जहां अब तक बतौर प्राचार्य कार्य कर रहे थे. जून, 2017 में डी-नोबिली स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में योगदान दिया है.
संत जॉन डी-ब्रिटो के जीवन से प्रभावित
फादर अमलादास कहते हैं-“ मेरी जन्मभूमि तमिलनाडु के रामनाड जिला स्थित ओरियूर गांव है. मेरे गांव ओरियूर की धरती संत जॉन डी-ब्रिटो के रक्त से लाल है. पूरे क्षेत्र में जहां भी धरती की मिट्टी निकाली जाये, वहां लाल ही निकलती है. संत जॉन डी-ब्रिटो के जीवन का मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा. संत जॉन डी-ब्रिटो वर्षों पूर्व तमिलनाडु के ओरियूर गांव आये थे. वह काफी धनाढ्य या कह सकते हैं कि राजा परिवार से थे, लेकिन गरीबों की सेवा करने के भाव उन्होंने अपना घर-परिवार छोड़ दिया. वह ओरियूर में आकर गरीबों की सेवा में लग गये. उन्हें अमीर लोग पसंद नहीं करते थे, जिस कारण उनकी हत्या कर दी गयी. गला रेत कर. संत जॉन डी-ब्रिटो का खून जब ओरियूर गांव की धरती पर गिरा, तभी से वहां की धरती पूरी तरह लाल हो गयी. पूरे क्षेत्र में जहां-जहां धरती की खुदाई की जाती है, वहां से मिट्टी लाल-ही-लाल निकलती है. उनके नाम पर आज गरीबों के लिए ओरियूर में स्कूल, कॉलेज सहित कई संस्थाएं चल रही हैं. संत जॉन डी-ब्रिटो का गरीबों के प्रति सेवाभाव का मुझ पर गहरा असर पड़ा. मेरी जिंदगी बदल गयी. मैंने भी तय किया कि अपनी जिंदगी मानव समाज की सेवा में समर्पित कर दूंगा.”
वर्ष 1985 में जुड़े यीशु समाज से
फादर अमलादास कहते हैं-“संत जॉन डी-ब्रिटो के जीवन से प्रेरित होकर वर्ष 1985 में ब्रदर के रूप में यीशु समाज से जुड़ा. प्रारंभिक दौर में सातवीं-आठवीं के छात्रों को विज्ञान (साइंस) पढ़ाता था. इस दौरान एक साल के अनुभव के साथ-साथ साढ़े तीन वर्षों तक पटना में धर्म-शास्त्र की पढ़ाई भी की.”
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