चिंता: झरिया के सौरभ हत्याकांड ने खींचा बढ़ती नशाखोरी की तरफ समाज का ध्यान, नशे की गिरफ्त में फंस रहे बच्चे-युवा

नशा हमारे समाज में हमेशा से बुरी नजर से देखा गया है. बावजूद मॉडर्नाइजेशन के आज के दौर में यह एक प्रकार का फैशन-सा बन गया है. नशे की लत ने युवाओं की कौन कहे, बच्चों को भी अपने जद में ले लिया है. अब तो प्रकृति भी बदल चुकी है. शराब, ड्रग्स से इतर, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 2, 2017 8:06 AM
नशा हमारे समाज में हमेशा से बुरी नजर से देखा गया है. बावजूद मॉडर्नाइजेशन के आज के दौर में यह एक प्रकार का फैशन-सा बन गया है. नशे की लत ने युवाओं की कौन कहे, बच्चों को भी अपने जद में ले लिया है. अब तो प्रकृति भी बदल चुकी है. शराब, ड्रग्स से इतर, कुछ ऐसी चीजें भी हैं, जिनका नशे के रूप सेवन किया जाता है. इनमें रुमाल या छोटे कपड़े में लिया जानेवाला आयोडेक्स, थीनर, व्हाइटनर, गम, सुलेशन आदि हैं. ये सेहत के लिए काफी खतरनाक हैं. नशे के ये साधन विवेक के साथ सोचने-समझने की शक्ति भी नष्ट करते हैं. झरिया का सौरभ साव हत्याकांड इसी का नतीजा है. चाकू मारकर सौरभ की हत्या करनेवाले मुख्य आरोपी सुमित साव उर्फ कारू और उसके साथी संटी राउत, विकास साव व सोनू उर्फ काना ऐसे ही नशे की गिरफ्त में थे. हत्या नशे की हालत में की गयी थी. सौरभ की हत्या ने सभ्य समाज को यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि बच्चों व युवाओं में नशे की लत उन्हें किस ओर ले जा रही है. ये अपने हित-अहित और भले-बुरे का अंतर नहीं समझ पा रहे हैं.
झरिया: मैले-कुचैले कपड़ों में शहर के चौक-चौराहों पर युवाओं के साथ छोटे-छोटे बच्चों की टोली धमा-चौकड़ी करती मिल जायेगी. इन्हें पहली नजर में ही देखकर कह सकते हैं कि युवा-बच्चों की यह टोली नशा करती होगी. देश के भविष्य कहे जाने वाले ये बच्चे अपने में मस्त रहते हैं. घर-परिवार से दूर दूसरों से कोई वास्ता नहीं. न राह चलते लोगों का डर, न जिंदगी की फिक्र. होटलों, दुकानों, हाट या सड़क चलते लोगों से पैसे मांगा. जो मिले, इकट्ठा कर नशे का साधन खरीदा और जम गये एक जगह. एकबार फिर इनकी जिंदगी हसीन हो चली. दरअसल, झरिया कोयलांचल की कौन कहे, समूचे धनबाद जिले में युवा, किशोर और बच्चे नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं. सनफिक्स, सुलेशन, गुटखा का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं.
नशे के साधन : युवा व बच्चे शराब, गांजा, भांग के बदले अब पन्नी में सुलेशन व सनफिक्स गम लेकर पंपिंग करते हुए नशा कर रहे हैं. रुमाल या छोटे कपड़े में आयोडेक्स, थीनर, व्हाइटनर, गम को डाल कर इसका उपयोग करते हैं. झरिया की कोयरीबांध बाउरी पट्टी, काला मैदान, बकरीहाट, झरिया रेलवे स्टेशन, गुलगुलिया पट्टी, मानबाद, झरिया बाटा मोड़, कतरास मोड़ आदि जगह हैं, जहां इन्हें नशा करते देखा जा सकता है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ : मानसिक स्थिति बदल देनेवाले रसायन, जो किसी को नींद या नशे की हालत में ला दे, उन्हें नारकॉटिक्स या ड्रग्स कहा जाता है. मॉर्फिन, कोडेन, मेथाडोन, फेंटाइनाइल आदि इस कैटिगरी में आते हैं. नारकॉटिक्स पाउडर, टैबलेट और इंजेक्शन के रूप में आते हैं. ये दिमाग और आसपास के टिशू को उत्तेजित करते हैं. डॉक्टर कुछ नारकॉटिक्स का इस्तेमाल किसी मरीज को दर्द से राहत दिलाने के लिए करते हैं, लेकिन कुछ लोग इसे मजे के लिए इस्तेमाल करते हैं, जो लत का रूप ले लेता है. नशा करने के लिए लोग आमतौर पर शुरुआत में कफ सीरप आदि का इस्तेमाल करते हैं और धीरे-धीरे दूसरे रसायन लेने लगते हैं.
बदल जाता है व्यवहार : नशे की लत अपराध की दुनिया में प्रवेश कराने में भी काफी मदद करती है. बच्चे अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं. ये दुर्व्‍यवहार, मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं. झरिया क्षेत्र में 12 से 25 आयु वर्ग के बच्चे व युवा नशापान में शामिल है. जानकार बताते हैं कि युवा वेलियम टेन, नाइट्रोजन टेन, फॉटविन इंजेक्शन का सेवन बिना डॉक्टर की सलाह का करते हैं. झरिया की मेडिकल दुकानों पर ये आसानी से मिल जाती हैं. नशा करने के बाद बच्चे व युवा अपने शरीर को ब्लेड से काटते हैं. लहूलुहान होने पर उन्हें नशा चढ़ता है. नशा होने पर ये युवक चोरी, डकैती, हत्या आदि में पीछे नहीं हटते हैं. चंद पैसों की खातिर कुछ मेडिकल दुकानों पर ये नशीली दवाएं चोरी-छुपे बेची जाती हैं. वेलियम टेन व नाइट्रोजन टेन की कीमत 40-45 रुपये प्रति पत्ता है. दुकानदार 60 से 70 रुपये में बेचते हैं.

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