ब्लू वेल चैलेंज गेम के खतरों से बच्चों को करायें आगाह

धनबाद: जिले के सभी स्कूलों के बच्चों को स्कूल प्रबंधन एवं शिक्षक-शिक्षिकाएं ब्लू वेल चैलेंज गेम के खतरों से आगाह करायें. यह इंटरनेट में खेला जाने वाला ऑनलाइन गेम है, जिसमें बच्चों की जान तक जाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. डीइओ डॉ माधुरी कुमारी ने बताया कि सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त एवं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 25, 2017 12:18 PM
धनबाद: जिले के सभी स्कूलों के बच्चों को स्कूल प्रबंधन एवं शिक्षक-शिक्षिकाएं ब्लू वेल चैलेंज गेम के खतरों से आगाह करायें. यह इंटरनेट में खेला जाने वाला ऑनलाइन गेम है, जिसमें बच्चों की जान तक जाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. डीइओ डॉ माधुरी कुमारी ने बताया कि सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त एवं निजी स्कूलों को मामले में पत्र भेजा जायेगा. यह गेम इतना खतरनाक है कि बच्चों को इससे दूर रखने के लिए न केवल शिक्षक-शिक्षिकाओं, बल्कि अभिभावकों को अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है. वैसे तो मोबाइल स्कूलों में प्रतिबंधित है, लेकिन अब निगरानी की अधिक जरूरत है.
खूनी इंटरनेट गेम है ब्लू वेल : इंटरनेट के माध्यम से खेला जाने वाला ब्लू वेल चैलेंज गेम खूनी है. यह अब तक कई मासूम बच्चों की जान ले चुका है. इस गेम की वजह से अब तक दुनिया भर में करीब 250 से अधिक बच्चों की जान जा चुकी है. देश में पहला मामला मुंबई के अंधेरी 14 वर्षीय मनप्रीत की थी, जिसने अपनी सोसाइटी की बिल्डिंग से कूद कर जान दे दी थी. इसके अलावा भी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं.
झारखंड भी अछूता नहीं : ब्लू वेल खूनी गेम से झारखंड भी इससे अछूता नहीं रहा है. कदमा स्थित डीबीएमएस इंगलिश स्कूल के दसवीं कक्षा के 16 वर्षीय छात्र फरदीन की लाश 21 अगस्त की सुबह बेल्डिह क्लब लेक में तैरते हुए मिली थी. 19 अगस्त को वह बिना किसी को बताये आधी रात को घर से निकलता था. मोबाइल गेम का आदी था. पुलिस को आशंका है कि ब्लू वेल के आखिरी पड़ाव में उसने जान दे दी.
50 लेवल का यह गेम : ब्लू वेल गेम 50 लेवल का होता है और 50 दिनों में पूरा करना होता है. हर दिन गेम का चैलेंज खतरनाक होता जाता है. हर चैलेंज पर अपने हाथ से किसी धारदार वस्तु से कट का निशान बनाना होता है, जो धीरे-धीरे वेल का आकार ले लेता है. हाथ में आये कट के निशान को ऑपरेटर को भेजना होता है. इसी तरह आधी रात को अकेले हॉरर फिल्म देखने का चैलेंज एवं बाकी लेवल में अन्य खतरनाक चैलेंज पूरा करना होता है. अंतिम लेवल कहीं से छलांग लगाने का होता है.
कई खतरनाक गेम्स बना देते हैं एडिक्ट
पीएमसीएच के मनोचिकित्सक डॉ. संजय कुमार ने कहा कि ब्लू वेल ही नहीं, कई खतरनाक गेम्स हैं, जो उसे खेलने वाले को स्टेप बाइ स्टेप एडिक्ट बना देते हैं. खेलने वाले को पता ही नहीं चलता कि वह कब उसका एडिक्ट हो गया. ऐसे बच्चे परिवार से दूरी बना कर अकेले रहने लगते हैं और उनका झुकाव मोबाइल की ओर बढ़ने लगता है. एकेडमिक्स में भी असर दिखता है. बच्चे की नींद पूरी नहीं होती. देर रात को भी मोबाइल गेम खेलता है. इन्हीं आदतों को देख कर हम उन्हें ऐसा करने से रोक सकते हैं. बच्चे को मोबाइल नहीं देना चाहिए. हां, अभिभावक अपनी निगरानी में कुछ देर सामान्य मोबाइल गेम अपने मोबाइल से खेलने दे सकते हैं. गेम खेलने के बाद मोबाइल वापस ले लें. मोबाइल चेक कर लें कि कहीं कोई गलत गेम तो इंस्टॉल नहीं कर लिया है. साथ ही पॉर्न साइट्स को भी ब्लॉक कर रखें.

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