यूनियन में गैरकर्मियों का क्या काम?

धनबाद: केंद्र की मोदी सरकार विवादित इंडस्ट्रियल रिलेशन्स (आइआर) कोड लागू करने की तैयारी में है. अगर सरकार यह कोड लागू करने में कामयाब रही तो कोयला समेत तमाम उद्योगों की यूनियनों के 90 फीसदी नेताओं को अपने पद से हटना पड़ेगा. क्योंकि ये सभी गैर कर्मी हैं. आइआर बिल पर सहमति बनाने के लिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 11, 2017 9:54 AM
धनबाद: केंद्र की मोदी सरकार विवादित इंडस्ट्रियल रिलेशन्स (आइआर) कोड लागू करने की तैयारी में है. अगर सरकार यह कोड लागू करने में कामयाब रही तो कोयला समेत तमाम उद्योगों की यूनियनों के 90 फीसदी नेताओं को अपने पद से हटना पड़ेगा. क्योंकि ये सभी गैर कर्मी हैं. आइआर बिल पर सहमति बनाने के लिए सरकार के नये श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने 14 सितंबर को यूनियनों की बैठक बुलायी है. जानकारी के अनुसार सरकार वर्तमान ट्रेड यूनियंस एक्ट 1926, इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट एक्ट 1946 और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट 1947 को मिला कर लेबर कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशन्स बिल बनाना चाहती है.

2015 में इसका ड्राफ्ट सभी यूनियनों को भेज कर विचार आमंत्रित किया था. सरकार की मंशा 2015 में ही इसे संसद से पारित कराने की थी. पर यूनियनों के विरोध के बाद सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था. श्रम मंत्री श्री गंगवार ने इसे ठंडे बस्ते से फिर निकाला है.

क्या है प्रस्तावित बिल में
इस आइआर बिल में सबसे बड़ी बात यह है कि संगठित क्षेत्र की यूनियन के सभी पदाधिकारी उस उद्योग के वास्तविक कर्मी होंगे. कोई भी बाहरी या गैरकर्मी को पदाधिकारी होने की इजाजत नहीं होगी. यही नहीं वे कमेटी के सदस्य भी नहीं हो सकते. असंगठित क्षेत्र की यूनियन में दो से अधिक गैर कर्मी नहीं रह सकते. कोई भी यूनियन नेता यदि 10 यूनियन का पदाधिकारी है तो वह आयोग्य घोषित हो जायेगा. तथाकथित गैरकानूनी हड़ताल में भाग लेने पर मजदूरों पर 20 से 50 हजार का आर्थिक जुर्माना या एक महीने जेल अथवा दोनों का प्रवधान इस बिल में है. हड़ताल के लिए उकसाने या मदद करने पर 25 से 50 हजार आर्थिक दंड या एक माह जेल अथवा दोनों का प्रस्ताव है.
यूनियन कर रहे विरोध
वर्तमान कानून के अनुसार संगठित क्षेत्र की यूनियन में एक तिहाई पदाधिकारी गैर कर्मी हो सकते हैं. असंगठित क्षेत्र की यूनियन में 50 प्रतिशत ग़ैरकर्मी कमेटी में रह सकते हैं. इस नए आइआर कोड का विरोध सभी केंद्रीय यूनियनें कर रही है. पर बीएमएस इसके कुछ प्रावधान पर सहमति जताता है. मसलन उसका मानना है कि श्रम कानून के उल्लंघन पर नियोक्ता को अधिक जुर्माना देना पड़ेगा. हालांकि बीएमएस बाहरी व्यक्तियों को यूनियन से बेदखल किये जाने के खिलाफ है. अब सबकी नजरे 14 सितंबर की प्रस्तावित बैठक पर है.

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