स्वतंत्रता सेनानी का निधन, पुत्रवधु ने दी मुखाग्नि, प्रशासन ने नहीं दिया राजकीय सम्मान
धनबाद : स्वतंत्रता सेनानी और अधिवक्ता गौर किशोर गांगुली कासोमवारको उनके निवास स्थान पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह 96 वर्ष के थे. गांगुली के परिवार में उनकी पत्नी, चार पुत्रियां और विधवा बहू और एक पोता है. उनके इकलौते पुत्र का 10 वर्ष पहले निधन हो गया था. लक्ष्मी पूजा […]
धनबाद : स्वतंत्रता सेनानी और अधिवक्ता गौर किशोर गांगुली कासोमवारको उनके निवास स्थान पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह 96 वर्ष के थे. गांगुली के परिवार में उनकी पत्नी, चार पुत्रियां और विधवा बहू और एक पोता है. उनके इकलौते पुत्र का 10 वर्ष पहले निधन हो गया था.
लक्ष्मी पूजा के दौरान वह पश्चिम बंगाल के पुरुलिया स्थित अपने पैतृकगांव गये थे, जहां वह फिसलकर गिर गये. उन्हें गंभीरचोटआयी थी, जिसके बाद उन्हें धनबाद लाया गया और यहां उनका निधन हो गया. तेलीपाड़ा स्थित श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया, जहां उनकी पुत्रवधु स्वप्ना गांगुली ने मुखाग्नि दी. स्वतंत्रता सेनानी के अंतिम संस्कार में जिला प्रशासन की ओर से कोई प्रतिनिधि नहीं पहुंचा.
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धनबाद कोर्ट में प्रैक्टिस करने वालेगांगुलीने सोमवार देर शाम घर पर ही अंतिम सांस ली थी. मंगलवार को उनकी अंतिम यात्रा उनके घर से प्रारंभ होकर पहले हरि मंदिर हीरापुरऔरफिर हिंदू मिशन अनाथालय हीरापुर ले जाया गया. दोनों जगह लोगों ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किये. इसके बाद शवयात्रा तेलीपाड़ा श्मशान घाट पहुंची, जहां उनकी इच्छा के अनुरूप उनकी बहू ने उन्हें मुखाग्नि दी और अंतिम संस्कार की सभी रस्में पूरी की.
इस दौरान बड़ी संख्या अधिवक्ता, परिवार के सदस्यों के अलावा बंगाली वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य भीवहां मौजूद थे. लोगों ने स्वतंत्रता सेनानी की अंतिम यात्रा में शामिल न होने और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए किसी प्रशासनिक अधिकारी के नहीं पहुंचने पर नाराजगी जतायी. परिजनों ने भी कहा कि राजकीय सम्मान तो दूर, कोई भी अधिकारी दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी के पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित करने भी नहीं पहुंचा.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि गांगुली का जन्म 21 अक्तूबर, 1923 को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में हुआ था. वह अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता ससोधर गांगुली से प्रेरित थे. 1942 में केवल 19 साल की उम्र में, जब वह रांची काॅलेज के छात्र थे, ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में शामिल हो गये थे. वह अपने पिता के साथ करीब ढाई साल तक रांची, हजारीबाग और पटना के कारागार में कैद रहे. वर्ष 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद उन्होंने धनबाद जिला न्यायालय में वकालत शुरू कर दी. वह बार एसोसिएशन के सदस्य भी थे.