…मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे !

धनबाद अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे, मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे. क्षणिक आवेश में लोग मौत को गले लगाना बेहतर समझते हैं. लेकिन यह गलत और मूर्खतापूर्ण है. पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि इस साल नवंबर तक 160 लोगों ने जिंदगी से रूठकर मौत को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 3, 2017 1:22 PM
धनबाद
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे,
मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे.
क्षणिक आवेश में लोग मौत को गले लगाना बेहतर समझते हैं. लेकिन यह गलत और मूर्खतापूर्ण है. पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि इस साल नवंबर तक 160 लोगों ने जिंदगी से रूठकर मौत को गले लगा लिया. इनमें ज्यादातर या तो टीन एजर या महिलाएं हैं. टीनएजरों ने छोटी-छोटी ख्वाहिशों के पूरा नहीं होने के कारण यह कदम उठाया. जैसे प्यार में असफल होने पर, पढ़ाई में विफल होने पर, माता-पिता ने डांटे जाने पर, मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल के लिए फटकार लगाने पर आदि-आदि.

जबकि महिलाओं ने घरेलू कलह अथवा पति से परेशान होकर अपनी जिंदगी समाप्त कर ली. मनोवैज्ञानिक मीना श्रीवास्तव का मानना है कि आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं की वजह सुसाइड आइडिएशन है. यह नया मेडिकल टर्म आया है. सुसाइड आइडिएशन सोशल माडिया, टीवी और मोबाइल के जरिये आया है. आत्महत्या करने वालों को लगता है कि आत्महत्या करने से सभी मुश्किलों से निजात पाया जा सकता है. मगर जो लोग कोशिश करने के बाद बच जाते है उनके लिए समाज में जीना ज्यादा मुश्किल हो जाता है. 29 नवंबर को शिमलबहला की क्रांति देवी अपने तीन बच्चों के साथ खुदकुशी करने रेलवे ट्रैक पर चली गयी. सुसाइड करने की यह कोशिश सुसाइड आइडिएशन का ही अदाहरण है.

क्षणिक आवेश भी कारण: सुसाइड आइडिएशन की तरह क्षणिक आवेश भी लोगों को जान देने के लिए उकसाती है. यह भावना ज्यादा देर की नहीं टिकती. कुछ मिनटों या कभी-कभी एक-आध घंटे की होती है. अगर उस वक्त आत्महत्या की कोशिश करने वाले से बात की जाये तो हो सकता है वह अपना इरादा बदल दे.
काउंसेलिंग की जरूरत : मीना श्रीवास्तव
एसएसएलएनटी महिला कॉलेज की प्राचार्य मनोवैज्ञानिक मीना श्रीवास्तव ने बताया कि किसी तरह का तनाव महसूस करने वाले लोगों से उनके घर वालों को हमेशा बातचीत करनी चाहिए, ताकि उनके मन में आत्महत्या करने जैसे कोई ख्याल नहीं आये . धनबाद शहर में आत्महत्या को रोकने के लिए किसी तरह का काउंसेलिंग सेंटर नहीं है. बड़े-बड़े शहरों में इसकी व्यवस्था है जिससे बहुत हद तक लोगों को आत्महत्या करने से बचाया जाता है. धनबाद में इसकी व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि यहां भी आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ गयी है.

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