धनबाद : मर्जर के खिलाफ सड़क पर उतरे बैंककर्मी, 280 ब्रांचों में लटके ताले, ठप रहा बैंकिंग उद्योग, 500 करोड़ का कारोबार प्रभावित

धनबाद : बैंक ऑफ बड़ौदा, विजया बैंक एवं देना बैंक के विलय के निर्णय के खिलाफ बुधवार को बैंक कर्मी सड़क पर उतरे. यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के बैनर तले एसबीआइ मुख्य ब्रांच बैंक मोड़ के समक्ष प्रदर्शन किया. सरकार के निर्णय के खिलाफ नारेबाजी की. यूएफबीयू के जिला अध्यक्ष ईश्वर प्रसाद ने कहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 27, 2018 7:02 AM
धनबाद : बैंक ऑफ बड़ौदा, विजया बैंक एवं देना बैंक के विलय के निर्णय के खिलाफ बुधवार को बैंक कर्मी सड़क पर उतरे. यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के बैनर तले एसबीआइ मुख्य ब्रांच बैंक मोड़ के समक्ष प्रदर्शन किया. सरकार के निर्णय के खिलाफ नारेबाजी की. यूएफबीयू के जिला अध्यक्ष ईश्वर प्रसाद ने कहा कि सरकार ने बैंक ऑफ बड़ौदा, विजया बैंक और देना बैंक का विलय करने का निर्णय लिया है. तीनों बैंकों का विलय कर सरकार बड़ा बैंक बनाना चाहती है, जिससे बड़े लोन आसानी से दिये जा सकें.
इसके पूर्व बैंकों द्वारा दिये गये बड़े ऋणों का क्या हश्र हुआ है, यह आज आम जनता भी जान चुकी है. बार-बार यूनियन की मांग करने के बावजूद सरकार खराब ऋणों की वसूली के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठा रही है और न ही कोई कानून बनाना चाह रही है. बैंकों से ऋण लेकर अपने आप को जानबूझ कर दिवालिया घोषित करनेवाली कंपनियों को औने-पौने कीमत में दूसरी कंपनियों द्वारा सरकार की बनायी नीति पर खरीद-फरोख्त कर आम जनता के पैसों का वारा-न्यारा किया जा रहा है तथा सरकारी बैंकों का स्वास्थ्य दिन पर दिन खराब किया जा रहा है.
सरकार के ये सारे कदम सरकारी बैंकों की छवि को खराब कर निजीकरण करने का है और बैंकिंग व्यवस्था को निजी हाथों में सौंपने का है. हम यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के बैनर तले सरकार की इस नीति का पुरजोर विरोध करते आ रहे हैं. 18 सितंबर, 08 अक्तूबर व 29 अक्तूबर को सरकार की विरोधी नीति के खिलाफ एक दिवसीय बैंक बंदी रखी गयी थी. इस के बाद भी सरकार अपने निर्णय को वापस नहीं लेती हैं तो आगे जोरदार आंदोलन किया जायेगा.
विलय से बैंक सुदृढ़ नहीं होगा : आलोक रंजन
एसबीआइओए के जोनल सचिव आलोक रंजन ने कहा कि विलय से बैंक सुदृढ़ नहीं होगा. एनपीए की वसूली के लिए कारगर कानून बनाकर इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में लाने से खराब ऋण की वसूली हो पायेगी. ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जिससे बैंकों के विलय से बैंक मजबूत हुआ हो. अगर नहीं तो फिर विलय क्यों? सभी राष्ट्रीयकृत बैंक परिचालन लाभ में हैं. परंतु एनपीए प्रावधानों के कारण सभी बैंकों को हानि में दर्शाना सरकार की एक सुनोयोजित चाल है ताकि बैंकों को पहले बदनाम किया जाये, फिर इसका विलय करते हुए निजीकरण की ओर ले जाया जाये.
बैंकों में जमा पैसा आम जनता का पैसा है. इसका स्वामित्व उन्हीं हाथों में देने की कवायद हो रही है जिन्होंने बैंकों का पैसा एनपीए के जरिये हड़प रखा है. सभा को राजेंद्र कुमार, वीपी सिंह, एनके महाराज, संदीप वासन, सुनील कुमार ने संबोधित किया मौके पर एसबी मिश्रा, सुशील कुमार ओझा, गिरिश चंद्र आदि उपस्थित थे. धन्यवाद ज्ञापन रवि सिंह ने किया.
क्या है डिमांड

  • बैंक ऑफ बड़ौदा, विजया बैंक एवं देना बैंक के विलय के निर्णय को सरकार अविलंब वापस ले.
  • तीनों बैंकों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा लिये गये निर्णय को निरस्त करे.
  • बैंकों के विलयीकरण पर रोक लगाकर खराब ऋणों की वसूली के लिए कारगर कानून बनाया जाये.

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