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नहीं मिटा नक्सल का धब्बा: टुंडी विधान सभा ने अब तक दिये हैं तीन मंत्री, पढ़ें खास रिपोर्ट

प्राकृतिक सौंदर्य से भरा है पूरा क्षेत्र सियासतदानों की राजनीतिक प्रयोगशाला रही है यह सीट झारखंड आंदोलन के दौरान गुरुजी ने यहीं किये सामाजिक प्रयोग नारायण चंद्र मंडल धनबाद : टुंडी विधान सभा सीट सियासतदानों की राजनीतिक प्रयोगशाला मानी गयी है. यहां से जीत कर कई दिग्गज राजनेता अविभाजित बिहार एवं झारखंड में कबीना मंत्री […]

प्राकृतिक सौंदर्य से भरा है पूरा क्षेत्र

सियासतदानों की राजनीतिक प्रयोगशाला रही है यह सीट
झारखंड आंदोलन के दौरान गुरुजी ने यहीं किये सामाजिक प्रयोग
नारायण चंद्र मंडल
धनबाद : टुंडी विधान सभा सीट सियासतदानों की राजनीतिक प्रयोगशाला मानी गयी है. यहां से जीत कर कई दिग्गज राजनेता अविभाजित बिहार एवं झारखंड में कबीना मंत्री बने. इनमें जनसंघ के सत्यनारायण दुदानी बिहार में वित्त मंत्री रहे. डॉ सबा अहमद ने पहला चुनाव झामुमो, दूसरा झामुमो मार्डी तथा तीसरा राजद के टिकट पर जीता. वह भी बिहार के कबीना मंत्री बने. अलग झारखंड राज्य गठन के बाद झामुमो से मथुरा प्रसाद महतो जीते और कैबिनेट मंत्री बनाये गये. तीन-तीन मंत्री देने वाले इस विधान सभा क्षेत्र पर नक्सलवाद एक बदनुमा धब्बा है.
यह दाग आज तक नहीं मिटा. एक बार फिर विधान सभा चुनाव हो रहा है. अबकी कौन जीतेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन टुंडी एक बार फिर राजनीति की प्रयोगशाला बनेगी, यह तय है. अलग राज्य गठन के बाद कुछ क्षेत्रों में विकास हुआ. जैसे- सड़कें बनीं, कई गांवों में बिजली पहुंच गयी, शिक्षा का विकास हुआ, लेकिन जो होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने का बदनुमा दाग नहीं हटा. गिरिडीह जिले से सटा टुंडी पहाड़ियों से घिरा है. यहां का प्राकृतिक सौंदर्य काफी कुछ कहता है. असमान विकास के चलते यहां के उपेक्षित युवकों ने संगठित होकर सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया. झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन यहीं दिशोम गुरु बने. उन्होंने ऐसे युवकों को अपने साथ जोड़ा. उनकी ताकत के सहारे झारखंड आंदोलन को गति मिली. गुरुजी ने सारे सामाजिक प्रयोग टुंडी में ही किये.
सामाजिक बदलाव का भी रहा है गवाह
टुंडी के अशिक्षित व अंधविश्वास के मारे आदिवासी समाज के लोग ग्रामीण महाजनों के शिकार थे. इन्हें संगठित कर अपने हक के प्रति जागरूक करने का काम शिबू सोरेन ने टुंडी के मनियाडीह में रह कर किया. ग्रामीणों के लिए रात्रि पाठशाला चलायी. किसानों को सामूहिक खेती के गुर सिखाये. लोगों में शिक्षा के लिए जागरूक किया. अपने अधिकार की छीन कर लेने की हिम्मत दी. वह दौर ही था संघर्ष और निर्माण का. पूरे जिले में बेशक यह पिछड़ा क्षेत्र है, किंतु कृषि बहुल है. समस्याओं में अभी बदलाव देखा जा रहा है. स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन नहीं होने से टुंडी के युवक रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं. यह एक अभिशाप की तरह है.

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