कोलियरी क्षेत्रों में लौटेगी हरियाली
-दिल्ली में तैयार हो रही कार्ययोजना -इसी महीने शुरू हो सकता है काम ।।उमेश तिवारी।। धनबादः धनबाद के दर्जनभर कोलियरी क्षेत्रों में हरियाली लौटाने की कार्ययोजना देश की राजधानी नयी दिल्ली में बन रही है. इन क्षेत्रों में खानों से निकली पथरीली मिट्टी, जिसे तकनीकी भाषा में ओवर बर्डेन (ओबी) कहा जाता है, के पहाड़ […]
-दिल्ली में तैयार हो रही कार्ययोजना
-इसी महीने शुरू हो सकता है काम
।।उमेश तिवारी।।
धनबादः धनबाद के दर्जनभर कोलियरी क्षेत्रों में हरियाली लौटाने की कार्ययोजना देश की राजधानी नयी दिल्ली में बन रही है. इन क्षेत्रों में खानों से निकली पथरीली मिट्टी, जिसे तकनीकी भाषा में ओवर बर्डेन (ओबी) कहा जाता है, के पहाड़ खड़े हैं. अब ओबी डंपों की बंजर जमीनें हरी-भरी बनायी जायेंगी. यह कार्ययोजना तैयार कर रहे हैं प्रोफेसर सीआर बाबू पारिस्थितिकी पुनरुद्धार (इकोलॉजिकल रेस्टोरेशन) के देश के जाने-माने विशेषज्ञ हैं. सबकुछ ठीक रहा, तो इसी महीने काम शुरू हो जायेगा. प्रो बाबू ने इन ओबी डंपों में लगाने के लिए पेड़-पौधों की 143 किस्मों की पहचान की है.
लहलहायेगी 70 हेक्टेयर भूमि
पारिस्थितिकी पुनरुद्धार के लिए खास तौर पर उन इलाकों को चुना गया है, जहां खुली खनन परियोजनाएं हैं. बीसीसीएल पांच सालों में 10 करोड़ रुपये खर्च कर 250 हेक्टेयर जमीन पर हरियाली लौटाना चाहता है. फिलहाल प्रो बाबू 11 स्थानों की 70 हेक्टेयर जमीन के लिए कार्ययोजना बना रहे हैं.
इसके तहत इस्टर्न झरिया क्षेत्र (भौंरा) स्थित थ्री पिट ओपन कास्ट प्रोजेक्ट के आठ हेक्टेयर के दो ओबी डंप, ब्लॉक-टू एरिया स्थित जमुनिया ओसीपी के पास चार हेक्टेयर का एक ओबी डंप, फुलारीटांड़ रेलवे साइडिंग के पास दो हेक्टेयर भूमि, लोदना क्षेत्र स्थित गोल्डन पहाड़ी की आठ हेक्टेयर भूमि, बस्ताकोला के राजापुर ओबी डंप का 10 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल हैं.
बनेंगे पार्क और रमणीय स्थल: हरियाली लाने के बाद इन ओबी डंपों को पार्क के रूप में विकसित किया जायेगा. गोल्डन पहाड़ी पर गोकुल पार्क बनाने की योजना है, जो सांस्कृतिक विविधता पार्क होगा. इस प्रोजेक्ट के लिए सामाजिक व आध्यात्मिक संस्था प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन (आरइआरएफ) को नोडल एजेंसी बनाया गया है. आरइआरएफ की प्रबंधक अनु दीदी कहती हैं, ‘प्रो बाबू की कार्ययोजना सफल हुई, तो ओबी डंप न सिर्फ हरियाली से भर जायेंगे, बल्कि दर्शनीय व रमणीय भी होंगे. सबकुछ ठीक रहा तो वहां सैलानियों की भीड़ जुटेगी.’
सफल रहे प्रायोगिक प्रोजेक्ट: वन शोध संस्थान (एफआरआइ), देहरादून और प्रोफेसर बाबू के मार्गदर्शन में बीसीसीएल ने दो प्रायोगिक प्रोजेक्ट शुरू किये. एफआरआइ ने 20 लाख रुपये की लागत से तेतुलमारी में आठ हेक्टेयर और प्रो बाबू के केंद्र सीइएमडीइ ने दामोदा में सात हेक्टेयर जमीन पर नि:शुल्क काम शुरू किया. दोनों प्रोजेक्ट के अच्छे नतीजे देखते हुए बीसीसीएल बोर्ड ने धनबाद कोयलांचल में पारिस्थितिकी पुनरुद्धार को हरी झंडी दे दी.
हाइकोर्ट के फैसले की बड़ी भूमिका : अगस्त, 2011 में झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बीसीसीएल की 22 खदानों में खनन पर रोक लगा दी थी. इसका कारण पर्यावरण व वन मंजूरी न होने के साथ-साथ यह बताया गया था कि बीसीसीएल की परियोजनाओं से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा है. इसी बीच, हाइकोर्ट में भी बीसीसीएल के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर हुई. बोर्ड के फैसले के खिलाफ बीसीसीएल हाइकोर्ट गया. इधर, जनहित याचिका पर हाइकोर्ट ने बीसीसीएल को ऐसा कुछ करने को कहा, जिससे उजाड़ हो चुकी जमीन पर हरियाली लौटायी जा सके. हाइकोर्ट के आदेश के बाद बीसीसीएल ने वन शोध संस्थान, देहरादून और प्रो बाबू से संपर्क किया.
कौन हैं प्रोफेसर बाबू
73 वर्षीय प्रो सीआर बाबू केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रलय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति के उपाध्यक्ष व दिल्ली विवि स्थित ‘क्षरित पारिस्थितिकी तंत्र के पर्यावरण प्रबंधन के लिए केंद्र’ के प्रोजेक्ट निदेशक हैं. उन्हें 2012 में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार मिल चुका है. वनस्पति विभाग के प्रोफेसर से वह वर्ष 2000 में दिल्ली विवि के प्रति-कुलपति बने. वह 1980 में तब सुर्खियों में आये, जब सुप्रीम कोर्ट ने मसूरी में डोलोमाइट पत्थर के खनन पर रोक लगा दी. प्रोफेसर बाबू ने उस क्षेत्र में पारिस्थितिकी पुनरुद्धार कर सबका ध्यान खींचा.