लाजवाब होता था हमारे घरौंदा का टेरेस : डॉ किरण सिंह

बचपन की दीवालीधनबाद. दीपावली जैसे जैसे करीब आने लगती है बचपन की यादें मन में विचरने लगती हैं. कितनी सुहानी होती थी बचपन की दीवाली. पंद्रह दिन पहले से घरौंदा बनाने में व्यस्त हो जाते थे. हम और मेरी चचेरी बहन चंदा खेत जाकर मिट्टी लाते थे. उसे रात भर पानी में भिगोंते थे. सुबह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 16, 2014 12:18 PM

बचपन की दीवालीधनबाद. दीपावली जैसे जैसे करीब आने लगती है बचपन की यादें मन में विचरने लगती हैं. कितनी सुहानी होती थी बचपन की दीवाली. पंद्रह दिन पहले से घरौंदा बनाने में व्यस्त हो जाते थे. हम और मेरी चचेरी बहन चंदा खेत जाकर मिट्टी लाते थे. उसे रात भर पानी में भिगोंते थे. सुबह उठ कर घरौंदा बनाने में जुट जाते थे. सुबह घरौंदा बनाते, संध्या में मुहल्ला घूम-घूम में देखते कि कहां कैसा घरौंदा बन रहा है. घरौंदा बनाते हाथ छिल जाते थे. मां से डांट पड़ती पर हमें कोई फक्र नहीं पड़ता. हमारा घरौंदा पांच तल्ला बनता. घर में मिस्त्री को पोचाड़ा करते देख छोटी कूची बनाते. घरौंदा को रंगते. खूब सजाते. दरवाजा बड़ा बनाते थे. दरवाजे का पल्ला कॉपी के कूट से बनाते. अपनी कॉपी के साथ बहनों की कॉपी के कूट भी फाड़ डालते थे. घरौंदा का टेरेस लाजवाब होता था. टेरेस का रेलिंग पीले रंग से रंगते थे. संध्या में कुलिया चुकिया सात तरह के अनाज के भूंजा से भरते थे. उसके पीछे मान्यता होती थी हमारा भंडार सालों भर अनाज से भरा रहे. उसके बाद अनार, मिर्ची पटाखा, चकरी छोड़ती थी. भाई-बहनों के साथ खूब धमाल मचाती थी. आज भी उसी उत्साह से कुलिया चुकिया भरती हूं. अब बहन के बच्चों, नाती के साथ पटाखा चलाती हूं. आज भी हमारी दीवाली धमाकेदार होती है. मुझे दीपावली का बेसब्री से इंतजार रहता है. सबों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.डॉ किरण सिंह, प्राचार्या एसएसएलएनटी वीमेंस कॉलेज.

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