धनबाद: कोल इंडिया मे सक्रिय पांच केंद्रीय यूनियन हाशिये की ओर बढ़ रही है. केंद्र की मोदी सरकार ने अपने छह माह के कार्यकाल में इन यूनियनों को दो बार बैक फुट पर जाने को मजबूर किया है. केंद्र सरकार के रूख का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने अभी तक यूनियन नेताओं के साथ कोई बैठक तक नहीं की है. सि दौरान भारतीय मजदूर संघ के नेताओं ने दो बार गोयल से मिल कर नजदीकियां जताने का प्रयास किया, परन्तु जैसा कि संघ के सूत्र बताते हैं उन्हें भी तरजीह नहीं मिली. इन छह महीने में पांच यूनियनों के संयुक्त मोरचा के मतभेद भी सामने आये.
छह महीने में क्या-क्या हुआ : मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जून में पांचों यूनियनों ने रांची मे बैठक की. इस बैठक में नागपुर में 30-31 अगस्त को संयुक्त बैठक कर आंदोलन की घोषणा करने का निर्णय लिया गया.
31 अक्तूबर को 63 सूत्री मांग देते हुए कोल इंडिया मे 18 से 20 सितंबर तक वर्क टू रूल करने का ऐलान किया गया. पहली मांग थी कि विनिवेश का विरोध. इस घोषणा के मात्र कुछ दिनों के अंदर ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने यूनियनों की चेतावनी को ताक पर रखते हुए कोल इंडिया मे दस फीसदी विनिवेश का फैसला कर दिया. वर्क टू रूल के नोटिस के आलोक मे कोल इंडिया ने 15 सितंबर को दिल्ली मे बैठक बुलायी. इंटक, एटक, सीटू और एचएमएस ने बैठक बहिष्कार की घोषणा की. 14 सितंबर की रात तक ऊहापोह की स्थिति बनी रही. अंत मे बैठक में पांचों यूनियन के नेता शरीक हुए.
बैठक में कुछ मांग पर सहमति बनी. कोल इंडिया चेयरमैन ने कोल मंत्री से बात करने की बात कहते हुए वर्क टू रूल वापस लेने का आग्रह किया. चार यूनियनों ने वर्क टू रूल टाल दिया. लेकिन सीटू सहमत नहीं हुई और समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया. कहा गया कि मंत्री 25 या 27 सितंबर को बात करेंगे. लेकिन आज तक मंत्री के साथ बातचीत नहीं हुई. इसके बाद मोदी सरकार ने 21 अक्तूबर को कोयला खदान (विशेष प्रवधान) अध्यादेश 2014 लाकर यूनियनों को फिर उनकी हैसियत बता दी. इसके बाद 31 अक्टूबर को रांची मे यूनियनों ने संयुक्त बैठक की. इस बैठक मे भामसं शामिल नहीं हुआ. चार यूनियनों ने अध्यादेश को वापस लेने की मांग करते हुए 24 नवंबर को कोल इंडिया मे हड़ताल का नोटिस दे दिया. इस आलोक मे 12 अक्टूबर को दिल्ली मे कोल इंडिया ने बैठक बुलायी. कुछ मांग पर सहमति बनी. अध्यादेश पर चेयरमैन ने कहा यह सरकार का मामला है. यूनियनों ने हड़ताल न वापस ली और न ही डेफर किया. फिर 22 को बैठक बुलायी गयी. बैठक मे कोल मंत्रलय के संयुक्त सचिव उपस्थित हुए. उन्होने कहा अध्यादेश को संसद से पास करने के पहले यूनियनों से बात की जायेगी. इस पर इंटक, एटक और एचएमएस ने हड़ताल डेफर कर दिया. जबकि सीटू ने हस्ताक्षर नहीं करते हुए 24 को दो घंटे का आंदोलन करने का निर्णय लिया.
भामसं को भी तरजीह नहीं
सरकार बनने के कुछ समय बाद ही भामसं का एक प्रतिनिधिमंडल कोयला मंत्री से मिला. कुछ सुझाव दिये. इसमें विनिवेश, कोल इंडिया का पुनर्गठन आदि शामिल था. विनिवेश और अध्यादेश के बाद भामसं का एक प्रतिनिधिमंडल फिर 12 सितंबर को मंत्री से मिला. मंत्री ने भामसं नेताओं से अपने कार्यालय की बजाय दिल्ली एयरपोर्ट के लाउंज में बात की. जैसा कि संघ के सूत्र बताते है संघ नेताओं को कोयला मंत्री ने दा टूक कहा हमको देश चलाना है . देश को बिजली देनी है. बिजली के लिए कोयला जरूरी है. बिना सुधार के कोल उत्पादन नहीं बढ़ सकता है. बहरहाल, ट्रेड यूनियन के जानकारों की मानें तो कोयला मंत्री यूनियनों की हकीकत से पूरी तरह वाकिफ हैं. सरकार ने इस बार भी दो मौके पर देख लिया कि यूनियनों में एकता नहीं है. क्योंकि सरकार यह अच्छी तरह से जान चुकी है कि कुछ यूनियन नेता यूनियन नहीं, ट्रेड कर रहे हैं.