कोयला खदान अध्यादेश: नरेंद्र मोदी के बंधुआ नहीं हैं हम

धनबाद: संघ परिवार से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने मोदी सरकार के कोयला खदान अध्यादेश को खारिज करते हुए कोल इंडिया में पांच दिनों की आहूत हड़ताल को सफल बनाने का आह्वान किया है. संघ ने एक जनवरी को कोयला मंत्री की ओर से बुलायी गयी बैठक का बहिष्कार करने का भी एलान किया है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 31, 2014 6:54 AM

धनबाद: संघ परिवार से जुड़े भारतीय मजदूर संघ ने मोदी सरकार के कोयला खदान अध्यादेश को खारिज करते हुए कोल इंडिया में पांच दिनों की आहूत हड़ताल को सफल बनाने का आह्वान किया है. संघ ने एक जनवरी को कोयला मंत्री की ओर से बुलायी गयी बैठक का बहिष्कार करने का भी एलान किया है. संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ बीके राय ने प्रभात खबर से दूरभाष पर बातचीत में कहा कि अध्यादेश लाने के पहले कोयला मंत्री ने मजदूर संगठनों से कोई बात नहीं की, यहां तक की बीएमएस से भी नहीं. डॉ राय उसी तर्ज पर सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों का विरोध कर रहे हैं जिस तरह 2001 मे हंसमुख भाई दवे ने वाजपेयी सरकार के एफडीआइ बिल का किया था. या फिर वाजपेयी सरकार के वित मंत्री यशंवत सिन्हा का विरोध स्वदेशी जागरण मंच संभालने वाले दत्ताेपंत ठेगड़ी ने 2001-02 के दौरान इस हद तक किया था कि तब सरकार को वित्त मंत्री को बदलना पड़ा था.

एक सांपनाथ तो दूसरा नागनाथ : उन्होंने कहा कि वाजपेयी सरकार ने देश के सारे पीएसयू को बरबाद कर दिया. बाल्को को बेच दिया. बाल्को के मजदूर आज दर-दर भीख मांग रहे हैं. विकास की बात करते हैं. क्या विकास करेंगें, भगवान जाने. मजदूरों को सड़क पर लाना ही इनका विकास है. कांग्रेस हो या भाजपा. एक सांपनाथ है तो दूसरा नागनाथ.

हां, आंदोलन में देर हुई : एक सवाल के जवाब में उन्होंने स्वीकार किया कि आंदोलन में देर हुई. ट्रेड यूनियन सरकार की नीतियों को समझ नहीं पाया. इस कारण देर हुई. बीएमएस को छोड़ कर बाकी यूनियनों के नेता राजनीतिक हैं. कोयला मजदूरों का आंदोलन इसी दिन कमजोर हो गया था जिस दिन नौवें वेतन समझौते पर बीएमएस को छोड़ कर बाकी चार यूनियनों ने हस्ताक्षर किया था. नौवें वेतन समझौता के वेतन को छोड़ कर आज तक कुछ अन्य लागू नहीं हो सका.

कोई लड़े न लड़े, हम लड़ेंगे

डॉ राय ने कहा कि अध्यादेश लाने के पहले कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने मजदूर संगठनों से बात करने का भरोसा दिया था. शपथ लिये इतने दिन हो गये, लेकिन आज तक पांचों केंद्रीय यूनियनों से बातचीत नहीं की. मंत्री धोखेबाज हैं. हम न तो नरेंद्र मोदी के बंधुआ हैं और न ही गोयल के. एक जनवरी की बैठक में नहीं जा रहे हैं. पांच दिनों की हड़ताल पर जा रहे हैं. आगे जरूरत पड़ी तो अनिश्चितकालीन हड़ताल पर भी जा सकते हैं. मरता क्या नहीं करता. कोई लड़े या ना लड़े हम लडेंगें. हम अध्यादेश के विरोधी नहीं हैं. इसके वाणिज्यिक प्रावधान को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. उन्होंने मोदी के मेक इन इंडिया पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आजादी के 65 साल तक हम अपनी मशीन नहीं बना सके. मेक इन इंडिया की बात करते हैं. विदेशी कंपनियां यहां उत्पादन करेगी और मुनाफा अपने देश ले जाएगी. यह सरकार अहंकारी हो गयी है. मनमोहन का क्या हाल हुआ. वही हाल मोदी सरकार का होगा.

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