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लिंगानुपात में सबसे नीचे धनबाद
धनबाद: धनबाद में सेक्स रेशियो पूरे झारखंड में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है. महिलाओं की संख्या में काफी कमी आयी है. इसका एक बड़ा कारण कन्या भ्रूण हत्या को माना जा रहा है. केंद्र व राज्य सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान धनबाद में शुरू किया है. लेकिन महज खानापूरी के और […]
धनबाद: धनबाद में सेक्स रेशियो पूरे झारखंड में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है. महिलाओं की संख्या में काफी कमी आयी है. इसका एक बड़ा कारण कन्या भ्रूण हत्या को माना जा रहा है. केंद्र व राज्य सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान धनबाद में शुरू किया है. लेकिन महज खानापूरी के और कुछ नहीं हो पा रहा है. अवैध अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर भी स्वास्थ्य विभाग कोई कारगर कार्रवाई नहीं कर कर पा रहा है.
लगातार घट रही महिला आबादी : जनगणना (2011) आंकड़े पर गौर करें तो धनबाद में एक हजार पुरुषों की तुलना में मात्र 908 महिलाएं ही बची हैं. जबकि वर्ष 0-6 वर्ष की बच्चों की बात करें तो यहां मात्र 917 बच्चियां ही हैं. वहीं पड़ोसी जिला बोकारो में 912 महिलाएं व 916 बच्चियां, गिरिडीह में 943 महिलाएं व 943 बच्चियां ही एक हजार पुरुष व बच्चे की रेशियो में हैं. वेस्ट सिंहभूम लिस्ट में सबसे ऊपर हैं. यहां एक हजार पुरुषों की तुलना में 1004 महिलाएं हैं. वहीं सिमडेगा में एक हजार बच्चों में एक हजार बच्चियां हैं. अब यूनिसेफ, व अन्य संस्थाओं की मानें तो 2012-13 में भी महिलाओं की संख्या में कमी ही आ रही है.
बैक डोर से चल रहा भ्रूण जांच का खेल : धनबाद में करीब 90 अल्ट्रासाउंड जांच घर हैं, जो स्वास्थ्य विभाग में रजिस्टर्ड है. लेकिन कई ऐसे जांच घर हैं, जहां पिछले दरवाजे से भ्रूण जांच की जा रही है. हालांकि बाहर बोर्ड में इन जांच घरों में भी भ्रूण जांच कानूनी अपराध है का बोर्ड दिख जाता है. मेडिकल सूत्र बताते हैं कि कुछ ऐसे में जांच घर हैं. जहां भ्रूण जांच के लिए ही खोले गये हैं. हालांकि इसमें सभी का कमीशन जाता है.
पढ़े लिखे ज्यादा कराते हैं जांच : अनपढ़ लोग से ज्यादा पढ़े लिखे लोग ही जांच कराते हैं. यही कारण है कि धनबाद में साक्षरता दर 74 प्रतिशत से ज्यादा है. लेकिन तेजी से बेटियां यहीं कम हो रही है. वहीं बताया जाता है कि भ्रूण जांच पूरी तरह से केंद्र का सिंडिकेट करता है. सीधे किसी कपल की जांच नहीं की जाती है. पहले एक सिंडिकेट मिलकर समय लेता है. इसके बाद बड़ी राशि पहले ही दे दी जाती है.
गर्भपात व उसकी गोलियां भी आम : मेडिकल सूत्र बताते हैं कि जिले में कई क्लिनिक ऐसे हैं, जहां गर्भपात ही अधिकांश होता है. या यह कहें की वहां सिर्फ गर्भपात ही होता है. यहां दो-ढाई से लेकर सात माह तक का गर्भ नष्ट करवा दिया जाता है. वहीं मेडिकल स्टोर्स में खुलेआम गर्भपात की दवाएं बेची जा रही है. शून्य से लेकर दो माह तक के गर्भ को इससे नष्ट कर दिया जा रहा है. जबकि स्वास्थ्य विभाग व प्रशासन कुछ नहीं कर रहा हैं.
फार्म एफ नहीं जमा कर रहे जांच घर : फार्म एफ भरकर अल्ट्रासाउंड जांच घर यह दावा करते हैं कि उनके यहां एक्ट का दुरुपयोग नहीं हो रहा है. इस फार्म के तहत जांच करने वाले व्यक्ति, जांच के कारण, क्या जांच हुई, इसकी तमाम सूचनाएं दर्ज करने का प्रावधान है. इस फार्म को हर माह की पांचवीं तारीख को सिविल सजर्न कार्यालय में देना होता है. लेकिन लंबे समय से कुछ जांच ऐसा नहीं कर रहे हैं. इसके खिलाफ विभाग ने जांच घरों को नोटिस भी दिया, लेकिन किसी ने नहीं सुनी.
जानें पीसीपीएनडीटी एक्ट 1994
इसका पूरा नाम ‘पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम’ 1994 (पीसीपीएनडीटी एक्ट) है. भारत में कन्या भ्रूण हत्या व गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है. इस एक्ट से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. एक्ट के तहत जन्म से पहले शिशु के लिंग की जांच पर पाबंदी है. अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले पति-पत्नी, करने वाले डॉक्टर व लैब कर्मी को तीन से पांच वर्षो की सजा और दस से बीस हजार जुर्माने की सजा का प्रावधान है.
सेक्स रेशियों घटना चिंताजनक है. पीसीपीएनडीटी एक्ट का कड़ाई से पालन किया जा रहा है. कुछ पर कार्रवाई चल रही है. लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है. हाल ही में हमने कई बड़े केंद्रों के खिलाफ कार्रवाई की है.
डॉ एके सिन्हा, सीएस धनबाद
समाज का वास्तविक चेहरा काफी दुखदायी है. कई पढ़े-लिखे लोग मेरे पास भी आते हैं. उन्हें समझाती हूं. सरकार को इसमें कड़ा स्टेप लेना चाहिए. कई लोगों को समझाना मुश्किल होता है.
डॉ संगीता करण, पार्क क्लिनिक, धनबाद
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