भोगे हुए यथार्थ ने लिखने की बाध्यता पैदा की
धनबाद: पिता रेडिमेड की सिलाई कर परिवार चलाते थे. परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब थी. परिवार की गाड़ी चल नहीं रही थी, बल्कि रेंग रही थी. वैसी परिस्थिति में घर का कोई लड़का पढ़ने की कैसे सोच सकता है. सात वर्ष की उम्र में बिहार के औरंगाबाद के रफीगंज से वह लड़का 1974 में […]
धनबाद: पिता रेडिमेड की सिलाई कर परिवार चलाते थे. परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत खराब थी. परिवार की गाड़ी चल नहीं रही थी, बल्कि रेंग रही थी. वैसी परिस्थिति में घर का कोई लड़का पढ़ने की कैसे सोच सकता है. सात वर्ष की उम्र में बिहार के औरंगाबाद के रफीगंज से वह लड़का 1974 में झरिया पहुंचा. मिल्लत एकेडमी में नाम लिखवाया, मगर घर की परिस्थिति पढ़ने के अनुकूल नहीं देख मन में कई तरह के सवाल उठते. आठ वर्षो तक किसी तरह घसीटते हुए 1982 में मैट्रिक का इम्तिहान दिया.
रिजल्ट आया तो सब दंग रह गये. वह लड़का स्कूल टॉप कर गया था. इसके लिए उस बालक को अहमद शेरवानी एवार्ड से नवाजा गया. पिता आगे की पढ़ाई के पक्ष में नहीं थे. वह घर की गाड़ी चलाने में मदद चाहते थे. उसने उच्च शिक्षा ग्रहण करने की ठान ली. और रचनाशीलता के क्षेत्र में उसने एक मुकाम हासिल कर ली. बात हो रही है मशहूर गजलगो डॉ हसन निजामी की. झरिया ऊपरकुल्ही स्थित अपने आवास की बैठक में बातचीत करते हुए वे अतीत में खो जाते हैं. खराब माली हालत में मैं रांची में पढ़ना चाहता था. ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया. तीसरी बार में 1985 में आरएसपी कॉलेज से इंटर किया. ट्यूशन की कमाई से बहन की शादी की. बीटी किया. 1987 में बीए और 1990 में एमए किया. इसमें मुङो गोल्ड मेडल मिला. 1994 में शिक्षक के रूप में बहाल हुआ. तब से मैं पढ़ा रहा हूं.
साहित्य से नाता: नौवीं क्लास में शिक्षकों को पढ़ते देख मुङो भी पढ़ने की इच्छा हुई. तब कहीं से फिल्मी वीकली लाकर पढ़ा. यहीं से पढ़ने की शुरुआत हुई. फिर ध्यान शायरी की ओर गया. गालिब, इकबाल, मीर,जिगर, फिराक गोरखपुरी के साथ-साथ आधुनिक शायरों को भी पढ़ा. इनकी गजलों ने मुङो काफी प्रभावित किया. 1984 से मैंने शायरी शुरू की. स्थानीय अखबारों में भी मेरी गजलें छपती रहीं. रौनक शहरी मेरे गुरु हैं. इलियास अहमद गद्दी ने काफी प्रभावित किया. उनकी कहानी ‘आदमी’ और ग्यास अहमद गद्दी की ‘परिंदा पकड़ने वाली गाड़ी’ मेरी प्रेरणा स्नेत है.
धनबाद के साहित्यकार : आज अपने खोल में रह कर सब लिख रहे हैं. कोई एक दूसरे को प्रोत्साहित नहीं कर रहा. मुङो किसी ने प्रोत्साहित नहीं किया. न कोई गोष्ठी होती है और न ही कविता-कहानी पर चर्चा होती है. माहौल बनाने के लिए युवा लेखकों को आगे आना होगा. बड़े लेखकों को छोटे एवं नये लेखकों को स्नेह देना चाहिए. पहले साहित्यिक गोष्ठियां होती थीं, जो अब नहीं होती.