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नये मेयर के सामने होंगी कई चुनौतियां
धनबाद. निगम के नये महापौर(मेयर) शेखर अग्रवाल के लिए कई चुनौतियां होंगी. नगरपालिका से धनबाद को नगर निगम बनने के बाद भी पांच वर्षो में इसकी कार्यसंस्कृति में कोई सुधार नहीं हुआ. विकास का क्या काम हुआ वह तो जनता ही जानती है. इस शहर के विकास में जो आवश्यक कार्रवाई होनी चाहिए थी, वह […]
धनबाद. निगम के नये महापौर(मेयर) शेखर अग्रवाल के लिए कई चुनौतियां होंगी. नगरपालिका से धनबाद को नगर निगम बनने के बाद भी पांच वर्षो में इसकी कार्यसंस्कृति में कोई सुधार नहीं हुआ. विकास का क्या काम हुआ वह तो जनता ही जानती है. इस शहर के विकास में जो आवश्यक कार्रवाई होनी चाहिए थी, वह भी नहीं हुई. पांच सालों में भ्रष्टाचार की संस्कृति ही विकसित हुई. इसे दूर करना साफ सुथरी छवि वाले श्री अग्रवाल के लिए कड़ी चुनौती है.
क्या है निगम की वास्तविक स्थिति
पिछले पांच वर्षो में शहर की साफ-सफाई के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं हुई, जिसके कारण हर मुहल्ले में बराबर गंदगी देखने को मिली. एटूजेड कंपनी को कचरा उठाव का जिम्मा दिया गया, लेकिन यह कंपनी भी पूरी तरह फेल रही. इसके बाद 55 वार्डो के लिए ट्रैक्टर की खरीदारी हुई और प्रत्येक पार्षद को देने की बात कही, लेकिन कुछ ही क्षेत्रों में ट्रैक्टर दिये गये.
पांच सालों में ड्रेनेज की दिशा में कोई काम नहीं हुआ, नतीजा यह हुआ कि थोड़ी सी बारिश होने पर सड़कों पर पानी चला आता है और पूरे क्षेत्र की गंदगी रोड पर होती है. इससे पीसीसी सड़क को तो कोई नुकसान नहीं होता लेकिन तारकोल की सड़क बनते ही टूटने लगती है.
शहर के कचरा के लिए कचरा प्रबंधन के लिए भी कोई कदम नहीं उठाया गया. पहले तय था कि शहर के कचरा एक जगह डंपिंग की जायेगी, फिर उससे खाद तैयार तैयार होगा लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ. अब तक डंपिंग स्थल ही तैयार नहीं हुआ. कभी पार्क मार्केट वाली खाली स्थल पर तो कभी किसी मुहल्ले के किसी खाली जगह पर ही कचरा डंप कि या जाता रहा. इससे लोगों का चलना तो दूभर हुआ. साथ ही बीमारियां फैलने की भी आशंका बनी रही.
पानी कनेक्शन जितना होना चाहिए, वह भी पिछले पांच वर्षो में नहीं हुआ. पानी कनेक्शन अभी 60 हजार लोगों को देने की क्षमता है, जबकि पांच सालों में सिर्फ 30 हजार ही कनेक्शन दिया गया है. लोगों को समुचित पानी भी पांच सालों में नहीं मिला है. कनेक्शन देने की प्रक्रिया का काफी पेचीदा है, जिसे सरलीकरण की जरूरत है.
पांच सालों में स्ट्रीट लाइट जो लगनी चाहिए, वह भी नहीं लगी. जो लगती भी गयी उसका मेंटेनेंस करने की जिम्मेवारी किसी को नहीं दिये जाने के कारण बल्ब लगने के साथ ही खराब भी होते रहे. निगम क्षेत्र की सड़कों का क्या कहना. अब तक जो भी सड़कें निगम ने बनायी है, वह तीन से छह माह में ही टूट गयी है.
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