झरिया पुनर्वास का सच:चार वर्षों में 40 मौत

गंदा मुहल्ला था. वहां सिर छुपाने के लिए झोपड़ी थी. खुले में शौच करने और कोल डस्ट व जहरीली गैस से प्रदूषित हवा में सांस लेने की मजबूरी थी. बावजूद इसके दो वक्त की रोटी का जुगाड़ था. जिंदगी थी. आज साफ-सुथरी कॉलोनी है. तीन तल्लेवाली इमारत में दो कमरे का फ्लैट है. साफ हवा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 31, 2014 9:50 AM

गंदा मुहल्ला था. वहां सिर छुपाने के लिए झोपड़ी थी. खुले में शौच करने और कोल डस्ट व जहरीली गैस से प्रदूषित हवा में सांस लेने की मजबूरी थी. बावजूद इसके दो वक्त की रोटी का जुगाड़ था. जिंदगी थी. आज साफ-सुथरी कॉलोनी है. तीन तल्लेवाली इमारत में दो कमरे का फ्लैट है. साफ हवा में सांस ले रहे हैं.

लेकिन खाने के लाले पड़े हैं. जिंदगी पर मौत की काली छाया मंडरा रही है. जी हां, बेलगढ़िया टाउनशिप की एक तसवीर यह भी है. कोयला खदानों में धधक रही आग और इससे उत्पन्न भू-धंसान से डेंजर जोन बन चुके झरिया कोयलांचल के कुछ इलाकों से 1055 परिवारों को हटाकर वर्ष 2010 में बेलगढ़िया टाउनशिप में बसाया गया था. बेलगढ़िया टाउनशिप पहुंचे झरिया प्रतिनिधि सुधीर कुमार ने पाया कि रोजगार के अभाव के कारण पैदा हुई अनिश्चितता व मानसिक अवसाद के कारण चार वर्षो में बेलगढ़िया टाउनशिप 40 अस्वभाविक मौतों का गवाह बन चुका है. हालात की गंभीरता पर प्रकाश डालती विशेष रिपोर्ट. तसवीरें गुड्ड वर्मा की.

झरिया: ‘‘सर, हमारे लिए रोजगार की व्यवस्था को लेकर सरकार क्या करने जा रही है? हम कब तक भूख से लड़ते रहेंगे? हम कब तक गरीबी से लड़ते रहेंगे? हम कब तक बीमारी से मरते रहेंगे?’’ एक के बाद एक ऐसे कई सवाल सामने आते हैं और हमारे पास जवाब नहीं. कंपकंपाती ठंढ़ की दोपहर में धूप सेंकता यह झरिया विहार बेलगढ़िया टाउनशिप है. जी हां, वही झरिया विहार बेलगढ़िया टाउनशिप, जहां दुनिया की सबसे बड़ी झरिया पुनर्वास योजना के पहले चरण के तहत 1055 परिवारों को बसाया गया है. वर्ष 2010 में घनुडीह गांधी चबुतरा, लालटेनगंज, बोकापहाड़ी, भगतडीह, नॉर्थ तिसरा डीबी रोड, एलयूजी पिट के अगिA व भू-धंसान के कारण खतरनाक घोषित इलाकों से असंगठित मजदूरों के परिवारों को हटाकर बसाने के बाद झरिया पुनर्वास व विकास प्राधिकार (जेआरडीए) और बीसीसीएल ने जोरदार तरीके से खुद से अपनी-अपनी पीठ थपथपायी थी.

पुनर्वास के नाम पर धोखा : ‘‘काहें का पुनर्वास? इससे बहुत भले तो हम अपने झोपड़े में थे. वहां जमीन के नीचे कोयला खदान में धधक रही आग की गरमी थी, तो यहां गरीबी, बेकारी, भूख व बीमारी की आग में हम जल रहे हैं.’’ ये बातें करते हुए 45 वर्षीय सुबल पासवान के चेहरे पर सरकार व बीसीसीएल प्रबंधन के प्रति गहरा आक्रोश साफ झलक रहा है. बेलगढ़िया टाउनशिप में 2300 आवास हैं. यहां लोगों को बसाने से पूर्व कई सपने दिखाये गये थे. शेष पेज 15 पर

बेलगढ़िया टाउनशिप पहुंची प्रभात खबर टीम को कई चौंकानेवाले तथ्य मिले. बेलगढ़िया टाउनशिप के जिस ब्लॉक में टीम पहुंची, लोगों ने घेर लिया. सवाल किये कि आखिर कॉलोनी में अस्पताल कब बनेगा? रोजगार के अभाव में और कितने लोगों की जानें जायेंगी? झोपड़ी में तो दो वक्त की रोटी मिल जाती थी. लेकिन यहां एक वक्त के भोजन पर भी आफत है. बीस रुपये किराया देकर हर सुबह रोजगार की तलाश में झरिया जाते हैं. लेकिन काम मिलने की गारंटी नहीं है. सप्ताह में तीन दिन खाली हाथ लौटना पड़ता है. आवास, बिजली व पानी का बिल भी चुकाना पड़ता है. हर ब्लॉक में गंदगी का अंबार लगा है. निजी स्कूलों व कॉलेज जाने के लिए आवागमन की कोई सुविधा नहीं है. सुरक्षित पुनर्वास के नाम पर धोखा है बेलगढ़िया टाउनशीप. (साथ में लोदना प्रतिनिधि अशोक निषाद.)

मृतकों की सूची
वकील भुइयां (31), कारा भुइयां (28), भतुआ भुइयां (40), रामचंद्र रजक (38), लगनी भुइनी (60), मंगला भुइयां (35), पार्वती देवी (30), शंकर चौरसिया आग लगा कर आत्महत्या (30), पुसा भुइयां (50), राजू राम (50), विपिन (28), दया देवी (25), बीरू मुंडा (35), रामनंदन सिंह की पत्नी (40), मोहन पासवान (45), राजेश रवानी (25), हरिद्वार का 30 वर्षीय भाई की हत्या, ओम प्रकाश का साला (30), बिट्ट बाउरी (45), मोहन भुइयां के पिता (60) के अलावा कई और नाम हैं, जो बेलगढ़िया टाउनशिप में बसने के बाद मौत के शिकार हो गये. इनमें कुछ नाम ऐसे हैं, जिन्होंने काम नहीं मिलने की दशा में मानसिक तौर पर अवसाद ग्रस्त होने के कारण आत्महत्या कर ली.

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