90 प्रतिशत दुर्घटनाएं यातायात नियमों का पालन नहीं करने से
पथ निर्माण विभाग (आरसीडी) व स्टेट हाइवे ऑथोरिटी ऑफ झारखंड (साज) की ओर से सिंफर ऑडिटोरियम में रविवार को सड़क सुरक्षा पर प्रशिक्षण व कार्यशाला का आयोजन किया गया. इसमें राज्य भर के लगभग 250 इंजीनियरों व संवेदकों ने भाग लिया. धनबाद : एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) परियोजना के विदेशी व राज्य के विशेषज्ञों ने […]
पथ निर्माण विभाग (आरसीडी) व स्टेट हाइवे ऑथोरिटी ऑफ झारखंड (साज) की ओर से सिंफर ऑडिटोरियम में रविवार को सड़क सुरक्षा पर प्रशिक्षण व कार्यशाला का आयोजन किया गया. इसमें राज्य भर के लगभग 250 इंजीनियरों व संवेदकों ने भाग लिया.
धनबाद : एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) परियोजना के विदेशी व राज्य के विशेषज्ञों ने प्रशिक्षण दिया. कार्यक्रम का उद्घाटन एडीबी के निदेशक ओम प्रकाश विमल, डिप्टी डायरेक्टर एन सहाय, डीडीसी गणेश कुमार, प्रशिक्षु आइएएस माधवी मिश्रा आरसीडी के अधीक्षण अभियंता (हजारीबाग) नवीन कुमार, एनएच धनबाद के अधीक्षण अभियंता सत्यनारायण साहू आदि ने दीप जला कर किया.
संचालन एनएच रांची के इइ अभिनेंद्र कुमार ने किया. मुख्य अतिथि विभाग के सचिव मस्त राम मीणा व्यस्तता के कारण नहीं आ पाये. उनके अध्यक्षीय भाषण को एडीबी के एन सहाय ने सुनाया. श्री सहाय ने कहा कि भारत सरकार सड़क दुर्घटना में मारे गये लोगों की संख्या को 2020 तक कम करने में लगी है. पूरी दुनिया में प्रति वर्ष 1.3 मिलियन लोग मारे जाते हैं. इसमें दस प्रतिशत अकेले भारत में होते हैं.
औसतन भारत में प्रतिवर्ष 1.25 लाख लोग मारे जाते हैं. इसमें 90 प्रतिशत लोग ओवर स्पीड, ह्यूमन फॉल्ट, अल्कोहलिक के कारण मरते हैं. वहीं दस प्रतिशत दुर्घटनाएं इंजीनियरिंग साइड से होती है. सरकार का मानना है कि हर एक जीवन महत्वपूर्ण है.
इसके लिए इंजीनियर, प्रशासन, पुलिस, हेल्थ, एनजीओ, मीडिया सभी की जिम्मेदारी है कि लोगों को जागरूक करें. इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय एक सिस्टम डेवलप कर रहा है, पुलिस को टेक्निकल सहयोग प्रदान कर रहा है. दोपहर में टेक्निकल सेशन व शाम में ओपन सेशन का आयोजन किया गया.
झारखंड को ब्लैक स्पॉट मुक्त बनाना है
वक्ताओं ने कहा कि झारखंड की तमाम सड़कों में ब्लैक स्पॉट है. एक जगह पर यदि तीन दुर्घटनाएं हो तो उसे ब्लैक स्पॉट कहते हैं. फाइव स्टार सड़कों में यह ब्लैक स्पॉट नहीं होते हैं. फिलहाल झारखंड में कोई भी सड़कें फाइव स्टार नहीं है. इस कारण दुर्घटनाएं अधिक होती है. गुजरात, आंध्र प्रदेश, असम व कुछ ऐसे राज्य है, जो ब्लैक स्पॉट से मुक्त हैं. झारखंड को भी ऐसा बनाना है.
चार लाख जीतें हैं अपंग की जिंदगी : 70 प्रतिशत दुर्घटनाएं विकासशील देशों में होती है. भारत में प्रतिवर्ष चार लाख से अधिक दुर्घटनाएं होती है. इसमें लगभग एक से सवा लाख लोग जहां मारे जाते हैं, वहीं चार लाख लोग अपंग की जिंदगी जीते हैं. इसके मद्देनजर केंद्र व राज्य सरकार ने अगले पांच वर्षों में दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत की कमी करने का लक्ष्य लिया है. सुप्रीम कोर्ट राज्यों को रोड सेफ्टी कमेटी बनाकर 13 गाइडलाइन पर जानकारी ले रहा है.
ये थे मौजूद : एडीबी के प्रोजेक्ट डीजीएम (धनबाद) प्रभात कुमार, पथ निर्माण विभाग के इइ दिलीप कुमार साह, एनएच के इइ एनपी शर्मा, इंजीनियर एके राणा, ओपी यादव, मनोज कुनार सिंह, रविंद्र सिंह आदि.
दर्द होता है जब 15-18 उम्र के लड़कों के शव देखते हैं : एसएसपी
एसएसपी मनोज रतन चोथे ने कहा कि एक पुलिस अधिकारी के लिए सबसे बड़ा दर्द उस समय होता है, जब दुर्घटना में मारे गये 15-18 साल के लड़कों के शव को देखते हैं. मां-बाप का पहला कर्तव्य है कि अपने माइनर बच्चों को वाहन नहीं दें.
ओवर स्पीड नहीं चलाने को कहें. हेलमेट व सीट बेल्ट का प्रयोग जरूर करें. बिना लाइसेंस उन्हें वाहन नहीं दें. बच्चों को घर से ही जागरूक करें. तभी वह आगे चलकर जागरूक हो सकता है. 90 प्रतिशत दुर्घटनाएं नियमों के तोड़ने से होती है. इससे पहले मैं रांची में ट्रैफिक एसपी था. एक वाकया याद आ रहा है. 31 दिसंबर 2015 (नये साल की पूर्व संध्या) को रांची में जगह-जगह चेकिंग लगायी गयी. खासकर अल्कोहल व नशे में चलने वालों पर नकेल कसी गयी
इसका परिणाम हुअा कि कोई भी कैजुअल्टी नहीं देखने को मिली. कोलकाता में दुर्घटना होने पर कारगो होते हैं. रांची में भी आर्मर है. कारगो के सदस्य जवान होते हैं, ड्राइवर होते हैं, वह फास्ट एड की ट्रेनिंग लिये होते हैं. नर्सिंग सिस्टम को समझते हैं. इस कारण दुघटना होने पर पीड़ित को वह तुरंत सहायता प्रदान कर पाते हैं. गोल्डन आवर में उसे अस्पताल में शिफ्ट कर देते हैं. धनबाद में यह बेहद जरूरी है. इसके लिए सबको आगे आना होगा.
फर्स्ट एड का प्रशिक्षण पुलिस को भी मिले : नवीन
आरसीडी के अधीक्षण अभियंता नवीन कुमार ने कहा कि शराब पीकर गाड़ी चलाने, अनट्रेंड ड्राइवर के कारण दुर्घटनाएं अधिक होती है. सड़क सुरक्षा को लेकर कई चरण हैं जिसका पालन आवश्यक है. कई ट्रैफिक पुलिसवाले अनट्रेंड होते हैं. इसके लिए नेशनल स्तर पर ट्रेनिंग स्कूल हो.
फास्ट एड की जानकारी यदि इन पुलिस को हो तो वह सड़क पर ही तत्काल फास्ट एड करके घायल को अस्पताल पहुंचा सकता है. गोल्डन आवर का पालन करना (घटना के एक घंटे के अंदर अस्पताल तक पहुंचाना) जरूरी है. इन जगहों पर एंबुलेंस की व्यवस्था हो. स्थानीय पुलिस एक नंबर जारी करे. पुलिस कम्यूनिटी पार्टनशिप बनाया जायेगा. क्रेन होना जरूरी है. अक्सर देखा जाता है कि दुर्घटना के बाद क्रेन आने में देरी होती है. इससे जाम की समस्या हो जाती है. इससे और एक्सीडेंट होने की अाशंका हो जाती है.