हियर माइ वाइस की मुहिम : स्ट्रीट डॉग्स को एंटी रैबीज वैक्सीन

धनबाद: धनबाद की सड़कों पर आवारा कुत्तों का आतंक है. रोज बड़ी संख्या में लोग स्ट्रीट डॉग्स के काटे जाने के बाद अस्पताल पहुंचते हैं. कई बार स्वास्थ्य विभाग के पास पर्याप्त मात्रा में एंटी रेबीज वैक्सीन नहीं होता. कई बार कुछ लोग झाड़-फूंक के चक्कर में सूई नहीं लेते और परेशानी में पड़ जाते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 19, 2017 8:44 AM
धनबाद: धनबाद की सड़कों पर आवारा कुत्तों का आतंक है. रोज बड़ी संख्या में लोग स्ट्रीट डॉग्स के काटे जाने के बाद अस्पताल पहुंचते हैं. कई बार स्वास्थ्य विभाग के पास पर्याप्त मात्रा में एंटी रेबीज वैक्सीन नहीं होता. कई बार कुछ लोग झाड़-फूंक के चक्कर में सूई नहीं लेते और परेशानी में पड़ जाते हैं. इसी सब से बचाने के लिए धनबाद की स्वयं सेवी संस्था ‘हियर माइ वाइस’ कुत्तों को एंटी रैबीज वैक्सीन दे रही है. ताकि कुत्ते के काटे जाने पर रैबीज का असर व्यक्ति पर नहीं हो.
घूम घूम कर दे रहे वैक्सीन : हियर माई वाइस संस्था के सदस्य शहर की सड़कों पर स्ट्रीट डॉग्स को वैक्सीन दे रहे हैं. यह अभियान 13 जनवरी से शुरू हुआ है. अब तक 35 कुत्तों को वैक्सीन दी जा चुकी है. संस्था की सचिव सिमरन बैंग ने बताया कि झारखंड पशु पालन विभाग रांची ने संस्था को छह हजार कुत्तों को एंटी वैक्सीन लगाने का कार्य दिया है. सरकार की ओर से सिर्फ वैक्सीन मुहैया करायी जा रही है. इसके अलावा किसी तरह की फंडिंग नहीं है. समाज का काम करना है, इस लिए संस्था से जुड़े 25-26 युवा मिलकर इस काम को कर रहे हैं. कुत्तों को पकड़ने के लिए कई उपकरण भी मंगवाये गये हैं. कुत्तों को वैक्सीन देने के बाद चिह्न लगा दिया जाता है. ताकि दोबारा पकड़े जाने पर उसकी पहचान हो सके.
इसलिए उन्हें पहचानते हैं कुत्ते : झारूडीह निवासी रमेंद्र सिंह की बेटी सिमरन को इस अभियान में एक लाभ यह मिल रहा है कि कई कुत्ते उन्हें पहचानते हैं. इसलिए उन्हें पकड़ने में ज्यादा भाग-दौड़ नहीं करनी पड़ती. इसके पीछे की वजह यह है कि सिमरन रोज कुत्तों को खाना खिलाती है. सिमरन ने बताया कि कुछ वर्ष पहले उनके घर में एक कुत्ता पाला गया था. लेकिन कुछ दिनों के बाद उसकी मौत हो गयी. इससे वह काफी दुखी हुई. तभी उसने सोचा कि कुत्तों के लिए कुछ किया जाये और इसी सोच के साथ उसने पहले तो अपनी मां रीता कौर को इस बात के लिए राजी किया फिर मां-बेटी दोनों प्रत्येक दिन सड़क पर निकल कर 10 कुत्तों को खाना खिलाने लगी. धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ कर 300 हो गयी. आज भी सिमरन और उसकी मां स्कूटी से रोटी-चावल लेकर सुबह छह से नौ बजे तक शहर के कई चौक चौराहों पर कुत्तों को खाना खिलाते दिख जायेगी. इसी दौरान उसके मन में संस्था बनाने का ख्याल आया. सिमरन के पिता रमेंद्र सिंह व्यवसायी हैं और इन लोगों के काम में भरपूर सहयोग करते हैं.

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