पर्यावरण के प्रति आगाह कर रहीं प्राकृतिक आपदाएं

धनबाद: देश और दुनिया में आ रहीं प्राकृतिक आपदाएं हमें सावधान होने के लिए आगाह कर रही हैं. हमें प्रदूषण पर लगाम लगाने के उपायों पर विचार करना होगा. देश के कई बड़े शहर जल संकट से जूझ रहे हैं. दीपावली के पटाखों के कारण वायु की दशा क्या रह जाती है, यह हम सभी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 1, 2017 8:52 AM
धनबाद: देश और दुनिया में आ रहीं प्राकृतिक आपदाएं हमें सावधान होने के लिए आगाह कर रही हैं. हमें प्रदूषण पर लगाम लगाने के उपायों पर विचार करना होगा. देश के कई बड़े शहर जल संकट से जूझ रहे हैं. दीपावली के पटाखों के कारण वायु की दशा क्या रह जाती है, यह हम सभी जानते हैं. हम केवल व्यवसाय बढ़ाते जा रहे हैं. इसका असर हमें पर्यावरण पर दिख रहा है. ये बातें मुख्य अतिथि आइआइएम, कोलकाता की अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रूना सरकार ने कही. वह मंगलवार को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर सिंफर, धनबाद में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहीं थीं. इससे पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्वलित कर व सर सीवी रमण के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया.
डॉ सीवी रमण से प्रेरणा लें वैज्ञानिक : सिंफर निदेशक प्रदीप कुमार सिंह ने कहा कि महान वैज्ञानिक डॉ सीवी रमण ने बहुत ही कम संसाधनों में महान खोज की थी. आज के वैज्ञानिकों को उनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है. जर्मनी व जापान ने विज्ञान के बल पर दुनिया में अपना साम्राज्य स्थापित किया है. हम भी ऐसा कर सकते हैं. सरकार ने हमें सारी सुविधाएं मुहैया करायी है. हमें भी पूरी निष्ठा व लगन से अपना काम करना चाहिए. मौके पर डॉ अजय कुमार सिंह, डॉ सीएन घोष, डॉ पीयूष पाल रॉय, डॉ गौतम बनर्जी, डॉ इश्तियाक अहमद, डॉ राजेंद्र सिंह, डॉ आरवीके सिंह समेत अन्य मौजूद थे.
अमेरिका ने नहीं किया समझौता
रूना सरकार ने यह भी कहा कि विश्व में जलवायु परिवर्तन के लिए कोयला सर्वाधिक जिम्मेदार है. इसी के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग, जल संकट, वायु प्रदूषण जैसे हालात पैदा हुए हैं. कोयला से निकलने वाले फ्लाई एश के कारण सारी समस्याएं हैं. ग्रीन पीस ने भी अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि कोयला के कारण हो रहे प्रदूषण ने जलवायु को घातक किया है.
सामाजिक संकट के रूबरू : औद्योगिक क्रांति, उत्पादन में भारी वृद्धि, सामाजिक संकट, जलवायु संकट ने मानव को बुरी तरह प्रभावित किया है. आर्थिक संकट से अमेरिका, फ्रांस व जापान जैसे देश भी गुजरे हैं, लेकिन विकट परिस्थिति में भी उन देशों ने वातावरण से समझौता नहीं किया. आइएसआइएस व रामजस कॉलेज जैसी घटना सामाजिक संकट का उदाहरण है. इंफोसिस, टाटा, फॉक्सवेगन जैसे कॉरपोरेट घरानों ने भी सामाजिक संकट का सामना किया है, लेकिन उन्होंने इससे समझौता नहीं किया. फलत: आज वे कंपनियां फिर से बुलंदी की ओर हैं.
हमने कुदरत से किया खिलवाड़ : विकास के लिए हमने कुदरत से खिलवाड़ किया है. प्रदूषण का मापदंड 350 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) निर्धारित किया गया, लेकिन हर वर्ष इसमें 20 पीपीएम की बढ़ोतरी हो रही है. अब यह आंकड़ा 400 पीपीएम को पार कर गया है.

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