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नीरज सिंह की हत्या व संजीव के जेल जाने के बाद पहली बार कुंती देवी ने की एक्सक्लूसिव बातचीत, कई राज खोले

नीरज सिंह हत्याकांड : मंत्रीजी जौन मंदिर में बोलस, जाके किरिया खाये खातिर तईयार बानीं अपने जीवनकाल में किंवदंती बन गये विधायकजी (सूर्यदेव सिंह) और उनकी ओर से स्थापित सिंह मैंशन परिवार आज भी धनबाद कोयलांचल में अपना प्रभाव रखता है. सिंह मैंशन परिवार से अलग हुए सूर्यदेव बाबू के छोटे भाई पूर्व मंत्री बच्चा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 14, 2017 7:29 AM
नीरज सिंह हत्याकांड : मंत्रीजी जौन मंदिर में बोलस, जाके किरिया खाये खातिर तईयार बानीं
अपने जीवनकाल में किंवदंती बन गये विधायकजी (सूर्यदेव सिंह) और उनकी ओर से स्थापित सिंह मैंशन परिवार आज भी धनबाद कोयलांचल में अपना प्रभाव रखता है. सिंह मैंशन परिवार से अलग हुए सूर्यदेव बाबू के छोटे भाई पूर्व मंत्री बच्चा सिंह भी कोयलांचल के समाज व यहां की राजनीति में अपनी मजबूत पहचान रखते हैं. सूर्यदेव बाबू के एक अन्य छोटे भाई राजन सिंह के बड़े पुत्र नीरज सिंह ने चंद वर्षों में जोरदार जनाधार तैयार किया था. नीरज सिंह की हत्या और मामले में विधायक संजीव सिंह के आरोपी बनने व जेल जाने के बाद पूरे कोयलांचल में एक ही सवाल है कि अब आगे क्या होगा? सिंह मैंशन व रघुकुल का भविष्य क्या होगा? इसी बीच प्रभात खबर से बातचीत में पहली बार सिंह मैंशन परिवार की मुखिया व झरिया की पूर्व विधायक कुंती देवी ने परिवार-खानदान से जुड़ी कई ऐसी बातों का खुलासा किया, जिससे कोयलांचल के लोग अब तक अनजान रहे हैं. बातचीत में दुख से भरी कुंती देवी ने दिल में दफन कई राज खोले.
सिंह मैंशन परिवार में हुए उतार-चढ़ाव, सिंह मैंशन से अलग होकर सूर्योदय व रघुकुल बनने, अपने देवरों बच्चा सिंह-राजन सिंह-रामधीर सिंह की शादी व गृहस्थी बसने से लेकर विधायकजी (सूर्यदेव सिंह) द्वारा संजय सिंह की बहन की शादी कराने और फिर संजय सिंह-पुष्पा सिंह की शादी कराने तक की कहानी बतायी. कुंती देवी से बातचीत में कई तथ्य सामने आये. मसलन कैसे सत्ता की चाह और पैसे का लोभ किसी परिवार-खानदान को तबाह-बरबाद कर सकता है? कैसे किसी परिवार में खून के रिश्ते में जब स्वार्थ भर जाता है, संवेदनाएं खत्म हो जाती हैं, तो मर्यादा की सारी हदें टूट जाती हैं. कुंती देवी ने कई ऐसी बातेें बतायीं, जिन्हेें खुद उन्होंने ही बड़े अर्थों में पारिवारिक-सामाजिक मर्यादा के मद्देनजर छापने से मना कर दिया. कुंती देवी ने पूरी बातचीत भोजपुरी में की, लेकिन पाठकों की सुविधा के लिए उनकी कही बातों को हिंदी में दिया जा रहा है.
“मंत्रीजी (बच्चा सिंह) के पहिला पहचान का बा? विधायकजी (सूर्यदेव सिंह) के छोट भाई. मंत्रीजी अपना से का कईले बाड़े, पूरा दुनिया औरी समाज जानअ ता. विधायकजी के छोट भाई के नाम पर औरी किरण औरी बबुआ (राजीव रंजन सिंह) के सपोर्ट से विधायक बनले, मंत्री बनले. विधायकजी के बाद ऊंहां के बनावल मजदूर संगठन जनता मजदूर संघ के महामंत्री बनले, लेकिन मजदूर लोग के भलाई खातिर का कईले? बीच में नया नाम से आपनो एगो मजदूर संगठन बनईले. फिर काहें नकली जनता मजदूर संघ बनईले? केकर खून गंदा बा…? के बेईमान बा…? के कुलघाती बा…? ई पूरा दुनिया जानअ ता…झरिया के समाज जानअ ता…” यह कहना है गम व गुस्से से भरी कुंती देवी का. बातचीत के दौरान कांपती आवाज में कुंती देवी कहती हैं-“मंत्रीजी जौन मंदिर में बोलस, हम जाके आपन बच्चन के किरिया खाये खातिर तईयार बानीं कि पिंटू के हत्या के साजिश में हम या हमार बेटा-बेटी शामिल नइखे. येईजा लोग सच-झूठ बोल दी, लेकिन भगवान किहां तअ सच-झूठ ना चली.”
…तो आज यह स्थिति नहीं होती : कुंती देवी कहती हैं-“विधायकजी (सूर्यदेव सिंह) के बाद सिंह मैंशन परिवार के अभिभावक-मुखिया मंत्रीजी (बच्चा सिंह) बने. विधायकजी के मजदूर संगठन जनता मजदूर संघ के महामंत्री बने. मंत्रीजी न तो परिवार संभाल पाये और न ही यूनियन. मेरा ही नहीं, पूरा सिंह मैंशन परिवार तबाह हो गया. मंत्रीजी यदि विधायकजी की तरह पूरे परिवार को लेकर चले होते, तो आज यह स्थिति नहीं होती. मंत्रीजी की हमेशा कोशिश रही कि विधायकजी की संपत्ति और राजनीतिक विरासत पर उनका कब्जा बना रहे. खास तौर से बबुआ (राजीव रंजन) के जाने के बाद. संजीव व किरण के प्रति मंत्रीजी की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण है जनता मजदूर संघ से उनको निकालना. विधायकजी की प्रतिष्ठा के लिए यूनियन से मंत्रीजी को निकालना पड़ा. यूनियन में रहकर मंत्रीजी गलत करते थे. जिन मजदूरों ने मंत्रीजी के बड़े भाई विधायकजी को अपना मसीहा माना, उन्हीं मजदूरों का शोषण करने लगे. मजदूरों की समस्याओं से मंत्रीजी का कोई सरोकार नहीं रहा. कुछ चाटुकारों से घिरे रहे. लगातार शिकायत मिलती रही. मुझे मजदूरों से मिलने से रोकते थे. हमलोगों ने मजदूरों के लिए यूनियन से मंत्रीजी को हटाया. संजीव को हत्याकांड में फंसाकर मंत्रीजी उसकी सामाजिक व राजनीतिक छवि धूमिल करने की कोशिश में है. यूनियन में मेरे बेटे के प्रवेश व अपने निकाले जाने का मलाल व चिढ़ से वह हमलोगों को फंसाकर बरबाद करना चाहते हैं.”
मनोहर सिंह की हत्या किसने करवायी : कुंती देवी कहती हैं-“मैं एकदम गृहस्थ महिला थी. बाहर की दुनिया से अनजान. विधायकजी के बाद मेरे बच्चे एकदम अनाथ से हो गये. परिवार व बच्चों के भविष्य के लिए मुझे आगे आना पड़ा. संजीव ने हमलोगों को मना करके मंत्रीजी को यूनियन का अध्यक्ष बनवाया. लेकिन अपने स्वार्थ में आज मंत्रीजी सब भूल चुके हैं. जब मंत्रीजी बोकारो सेे चुनाव लड़ने गयेे, तब किरण की ससुराल में रहे. जब समता पार्टी में शामिल हुए, तब सिंह मैंशन में 300-300 लोगों का नाश्ता-खाना हम मां-बेटियों ने बनाया. जूठा बरतन तक धोया. मंत्रीजी दिल पर हाथ रखकर बोलें कि एक पैसे भी दिये थे. जिस बड़े भाई विधायकजी के कारण मंत्रीजी को सब कुछ मिला, उसी के बच्चे उन्हें बोझ लगने लगे. मनोहर सिंह विधायकजी का काम देखते थे, उनकी हत्या करवा दी गयी. मनोहर की हत्या किसने करवायी?”
रामधीर बाबू के लिए क्या किया : कुंती देवी कहती हैं-“मंत्रीजी ने क्या किया है? विधायकजी के साथ रासुका में भागलपुर जेल में बंद हुए. विनोद सिंह व सकलदेव सिंह हत्याकांड में नामजद हुए व जेल गये. परिवार से कानूनी लड़ाई का खर्च लेकर खुद बचते रहे और रामधीर बाबू व बबुआ (राजीव रंजन) को फंसवाते रहे. मंत्रीजी खुद बरी हो गये और रामधीर को सजा मिली. सूर्योदय बंगला कैसे बन गया? क्या धैर्य की परीक्षा देने का काम सिर्फ विधायकजी के परिवार का है. मंत्रीजी आज रामधीर का नाम ले रहे हैं. दिल पर हाथ रखकर बतायें कि रामधीर बाबू के लिए क्या किया? रामधीर बाबू हॉस्पिटल में रहे या फिर भागे-भागे फिरते रहे, क्या मंत्रीजी ने रामधीर बाबू या उनके परिवार को एक पैसे की मदद की?”
मैं कुंती हूं, गांधारी नहीं कि अपने एक बेटे की हत्या कराकर दूसरे बेटे को कुरसी पर बैठाऊंगी
कुंती देवी के कहा कि “पिंटू भी मेरे पुत्र समान था. ठीक है कि मैंने पिंटू को कोख से जन्म नहीं दिया, लेकिन वह भी मेरा बेटा था. मैं कुंती हूं, गांधारी नहीं कि अपने एक बेटे की हत्या कराकर दूसरे बेटे को कुरसी पर बैठाऊंगी. पिंटू जब अपनी मां (सरोजनी देवी) के पेट में था, तो गोतनी सरोजनी की तबीयत खराब रहती थी. उस समय मैं भी गर्भवती थी.
अपना पेट बांधकर मैं पिंटू की मां की सेवा करती रही. डॉक्टर के पास भेजने से लेकर इलाज कराने तक. तीन माह तक सरोजनी को बिछावन से उतरने नहीं दिया. डॉक्टर हाजरा ने तो जबाव दे दिया था. मैं सेवा करती रही और भगवान से मनाती रही कि भले ही मेरी कोख उजड़ जाये, लेकिन सरोजनी का नहीं. भगवान की कृपा से हमदोनों को बेटे हुए. पहले मेरा बेटा हुआ, जिसका नाम रखा गया करण. डेढ़ माह बाद सरोजनी ने पिंटू को जन्म दिया. विधायकजी (सूर्यदेव सिंह) ने करण को देखभाल ले लिए मंत्रीआइन (बच्चा सिंह की पत्नी) के पास रखवा दिया. मैं तो पिंटू व सरोजनी की सेवा कर रही थी. अपने बेटे से भी ज्यादा मानती थी. मेरा बेटा करण आठ माह बाद दुनिया छोड़कर चला गया.”
मंत्रीजी बोले थे-राजीव के कारण कुरसी खतरे में है, बदनामी हो रही है
क्यों नहीं की बबुआ की गुमशुदगी की सीबीआइ जांच की मांग
कुंती देवी बताती हैं-“बबुआ (राजीव रंजन) की गुमशुगदी के बाद पूरे परिवार में कोहराम मचा हुआ था. एक-एक रात गुजारनी मुश्किल थी. दिन काटना मुश्किल था. हर पल लगता था कि कहीं से बबुआ की कुछ खबर मिल जाये. एक बार बबुआ की आवाज सुनने को मिल जाये. फोन की घंटी बजती थी, तो इसी उम्मीद में हम दौड़ पड़ते थे कि कहीं बबुआ का फोन तो नहीं आया. रोते-बिलखते, भगवान से बबुआ की सलामती की प्रार्थना करते एक-एक दिन कट रहे थे. मंत्री बनने के बाद मंत्रीजी (बच्चा सिंह) का धनबाद आना-जाना कम हो गया. किरण व मनीष को लगता था कि चाचाजी मंत्री हैं, वह भाई की खोज करवा सकते हैं. रांची स्थित मंत्रीजी के बंगला पर किरण व मनीष गये. किरण व मनीष ने मंत्रीजी से बबुआ की गुमशुदगी मामले में क्या हो रहा है, यह पूछा.
किरण व मनीष से मंत्रीजी ने कहा कि “मंत्री की उनकी कुरसी खतरे में है. राजीव के कारण बदनामी हो रही है. तुमलोगों को सब पता है कि राजीव कहां है? राजीव से तुमलोगों की बात होती होगी, उसे बुलवाओ.” किरण व मनीष रोते हुए रांची से धनबाद लौट आये. इसके छह माह बाद मंत्रीजी सिंह मैंशन में आकर हमसे लड़ने लगे. मंत्रीजी ने मुझसे कहा कि “तोहरा पता बा कि राजीव कहां बा? तूं तअ रोज राजीव से टेलीफोन से बात करेलू.” मंत्रीजी की बात पर मैं छाती पीटकर रोने लगी. रामधीर बाबू भी वहां थे. वह भी रोने लगे.”
कुंती देवी कहती हैं-“जब बबुआ गायब हुआ था, तब मंत्रीजी (बच्चा सिंह) झारखंड सरकार में मंत्री थे. मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के करीबी थे. सरकार से मंत्रीजी ने बबुआ की गुमशुदगी मामले की सीबीआइ जांच की मांग क्यों नहीं की? मां की गोद सूनी हो गयी. तीन माह की बहू विधवा हो गयी. एक बेटी अपने बाप की मौत के बाद दुनिया में आयी. वह पूछती रही कि सबके पापा आते हैं, उसके पापा कहां है? मंत्रीजी बबुआ की बेटी से झूठा प्यार दर्शाते रहे. नीरज की हत्या के पीछे संजीव का हाथ बताते हुए मंत्रीजी कह रहे हैं कि नीरज की लोकप्रियता से संजीव घबरा गया था. अगले विधानसभा चुनाव में संजीव को नीरज हरा देता.
अगर विधायक की कुरसी बचाने के लिए हत्या की बात है, तो बबुआ (राजीव रंजन) की लोकप्रियता बढ़ रही थी. युवाओं व मजदूरों में बबुआ की पैठ बढ़ चुकी थी. बबुआ ने झरिया में बड़ी रैली की थी. भाजपा ज्वाइन किया था. जमसं में शामिल होकर मजदूरों की सेवा कर रहा था. वर्ष 2005 में बबुआ झरिया से चुनाव लड़ने वाला था. इससे तो मंत्रीजी को ही नुकसान होता. मंत्रीजी या तो झरिया से चुनाव नहीं लड़ते या फिर बबुआ के खिलाफ लड़ने पर हार जाते. मैं भी कह सकती हूं कि बबुआ की राजनीतिक लोकप्रियता से घबराकर बबुआ की हत्या साजिश के तहत करायी गयी. साजिश करने वाले वही लोग हैं, जिनको बबुआ से राजनीतिक हानि होती या चुनौती मिलती. लेकिन झूठा आरोप लगाना, परिवार को तोड़ना मेरे संस्कार में नहीं हैं. विधायकजी (सूर्यदेव सिंह) ने हमेशा परिवार व समाज को एक सूत्र में बांधने का काम किया, तोड़ने का नहीं.
किरण ने ही मंत्रीजी को चुनाव लड़नेे देने के लिए बबुआ को तैयार किया था
कुंती देवी बताती हैं-“मंत्रीजी कह रहे हैं कि पिंटू (नीरज सिंह) की हत्या में किरण भी शामिल है. किरण से भी मंत्रीजी नाराज रहते हैं. इसके कई कारण हैं. किरण, सबसे बड़ी संतान है. परिवार के लिए किरण आगे बढ़कर करती रहती है. परिवार में बड़ी बहन तो मां के समान होती है. क्या कोई बहन अपने भाइयों की रक्षा के लिए खड़ी होती है, तो वह अपराधी है? किरण का तो अब कुछ नहीं है. स्कूल चलाकर अपना भरण-पोषण व दो बच्चों को पाल रही है. अगर किरण के पास शूटरों को देने के लिए करोड़ों रुपये होते, तो अपनी दोनों बेटियों को किसी बड़े स्कूल या बोर्डिंग स्कूल में नहीं पढ़ाती. किरण का नाम लेते हुए एक बार भी मंत्रीजी ने यह नहीं सोचा कि किरण उनकी भतीजी ही नहीं, उनकी धर्म की बेटी भी है. किरण का कन्यादान मंत्रीजी व उनकी पत्नी ने ही किया था. आज किरण नहीं होती, तो मंत्रीजी न तो विधायक बने होते और न मंत्री. कारण बबुआ (राजीव रंजन सिंह) हजारीबाग जेल में बंद था. मंत्रीजी दो-दो बार झरिया से विधानसभा चुनाव हार चुके थे. मंत्रीजी के बदले बबुआ वर्ष 2000 में मुझे झरिया से चुनाव लड़वाना चाहता था. इसी बीच मंत्रीजी बीमार पड़ गये. लगा कि अब नहीं बचेंगे. किरण ने बबुआ को पत्र लिखा-“भाई परिवार बिखरना नहीं चाहिए. अंकल को कुछ हो गया, तो भगवान हमलोगों को माफ नहीं करेगा. परिवार टूट जायेगा.” यही नहीं जवान बेटी किरण जेल गयी. बबुआ से मिली. बबुआ को मंत्रीजी को ही झरिया से चुनाव लड़ने देने के लिए किरण ने राजी करवाया. जेल से लौटकर किरण ने मंत्रीजी से कहा कि-“अंकल चुनाव लड़िए. हमलोग दिन-रात कर आपको जितायेंगे.” भगवान जानता है कि मंत्रीजी के पहले चुनाव से लेकर जिस साल वह विधायक बने, उस चुनाव तक किरण ने कितनी मेहनत की.
किरण ने ससुराल से चार लाख लाकर बनवायी विधायकजी की प्रतिमा
कुंती देवी कहती हैं-“विधायकजी के नाम पर राजनीतिक लाभ लेनेवाले मंत्रीजी हर साल कतरास मोड़ स्थित विधायकजी की प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाने जाते हैं. लेकिन विधायकजी की यह प्रतिमा किसने बनवायी, यह कम लोग ही जानते हैं. किरण ने अपने ससुराल से चार लाख रुपये लाकर विधायकजी की प्रतिमा बनवायी थी. इसके लिए किरण के ससुर नाराज भी हुए थे कि ससुराल का पैसा मायके ले जाती है. बबुआ (राजीव रंजन) को भी जानकारी हुई, तो वह नाराज हुआ कि दीदी ससुराल से पैसा क्यों लायी? काफी दिन बाद बबुआ ने किरण से ससुराल पैसा लौटवाया. मंत्रीजी ने अपने बड़े भाई की एक प्रतिमा तक बनवाने की जरूरत नहीं समझी. विधायकजी की पुण्यतिथि पर किसी आयोजन में दो रुपये भी मंत्रीजी ने खर्च नहीं किये. हर साल भव्य आयोजन होता है. सैकड़ों लोगों को भोजन कराया जाता है. मंत्रीजी ने कभी इसमें सहयोग नहीं किया.”
सिंह मैंशन से जुड़ा मवेशी कारोबारी पुिलस हिरासत में
धनबाद:नीरज सिंह हत्याकांड की जांच कर रही पुलिस टीम ने शहर से सुंदर नामक मवेशी कारोबारी को हिरासत में लिया है. सुंदर को गुरुवार की दोपहर फोन कर डीएसपी (लॉ एंड आर्डर) ऑफिस बुलाया गया था. सुंदर देर रात तक घर नहीं लौटा है. मवेशी कारोबारी सिंह मैंशन में भी गाय की खरीद-बिक्री करता है. सुंदर के परिजन परेशान हैं. डीएसपी डीएन बंका ने सुंदर को हिरासत में लिये जाने से इनकार किया है. कारोबारी के परिजन परेशान हैं. उसका मोबाइल देर रात तक स्विच ऑफ आ रहा था. आरोप है कि पुलिस मैंशन से संबंध रखने वालों को पूछताछ के नाम पर बेवजह परेशानी कर रही है.

नीरज हत्याकांड की जांच में लगी पुलिस की स्पेशल टीम ने संतोष के अलावा शूटर पंकज, विजय व मोनू की तलाश में यूपी के लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, मऊ, अाजमगढ़ व सुल्तानपुर समेत कई स्थानों पर छापमारी की है. यूपी से सटे बिहार के कैमूर समेत अन्य जगहों पर रंजय के दो रिश्तेदारों के घर छापामारी की गयी है. संतोष, पंकज, विजय, मोनू अपना- अपना स्थायी ठिकाना छोड़ चुके हैं. चारों ने अपना पुराना मोबाइल सीम व सेट बंद कर दिया है. इस कारण पुलिस को परेशानी हो रही है. शूटरों की गिरफ्तारी में धनबाद पुलिस ने यूपी व बिहार एसटीएफ से मदद मांगी है. संतोष से मोबाइल पर संपर्क रखने वाले धनबाद व यूपी के तीन लोगों को पुलिस हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है. संतोष के संभावित ठिकानों के बारे में पुलिस को ठोस जानकारी नहीं मिल रही है. नीरज हत्याकांड में पुलिस को जब्त प्रदर्श की एफएसएल जांच को कोर्ट की मंजूरी मिल गयी है. पुलिस मौके से बरामद खोखा, नीरज समेत अन्य लोगों के शरीर से बरामद गोली, चारों मृतक के कपड़े आदि को एक दो दिन में एफएसएल जांच के लिए भेज देगी. पुलिस प्रशांत उर्फ मामा के पास से बरामद हथियार व गोली की भी जांच करवा रही है. पुलिस मामले में कड़ी से कड़ी जोड़ने के लिए संजय व डब्लू को रिमांड पर लेगी. इस दिशा में आवश्यक कार्रवाई की जा रही है.
नीरज सिंह का जब्त मोबाइल मुक्त करने को आवेदन
धनबाद. नीरज सिंह समेत चार लोगों की हुई हत्या के मामले की सुनवाई मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी राजीव रंजन की अदालत में गुरुवार को हुई. अदालत में नीरज सिंह (दिवंगत) के जब्त मोबाइल को मुक्त कराने का आवेदन उनके भाई अभिषेक सिंह ने दिया. अदालत में उनकी ओर से उनके अधिवक्ता विनय सिंह ने बहस की. अदालत ने सरायढेला पुलिस से रिपोर्ट मांगी है. विदित हो कि 21 मार्च 17 को सरायढेला थाना क्षेत्र में नीरज सिंह समेत चार लोगों की हत्या गोली मार कर कर दी गयी थी. यह मामला सरायढेला थाना कांड संख्या 48/17 से संबंधित है.
विधायकजी का शव धनबाद क्यों नहीं लाया गया?
कुंती देवी सवाल करती हैं-“विधायकजी (सूर्यदेव सिंह) की मौत के बाद उनका शव धनबाद क्यों नहीं लाया गया? विधायकजी की मौत के बाद करायी गयी रिकॉर्डिंग व वीडियोग्राफी कहां है? धनबाद से गये लोगों को हमसे क्यों मिलने नहीं दिया गया?” कुंती देवी कहती हैं-“हम कम पढ़ल-लिखल बानीं. विधायकजी के रहते-रहते हम कहियो बाहर के दुनिया का होला, ई ना जननी. बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है? कहां से पैसे आ रहे हैं? कैसे घर का खर्च चल रहा है? मुझे ये सब कुछ पता नहीं था. मंत्रीजी हो या विधायकजी के और भाई लोग वही जानते थे कि कैसे पैसा आता है? कहां से पैसा आता है? मुझे तो विधायकजी उतना ही पैसा देते थे, जितने में घर चल जाये. ऐसे में विधायकजी की अचानक हुई मौत के बाद मेरी पूरी दुनिया उजड़ गयी थी.”
सिद्धनाथ बाबू को झरिया से चुनाव लड़ाना चाहते थे विधायकजी
कुंती देवी बताती हैं-“विधायकजी जब आरा से लोकसभा का चुनाव लड़ने गये, तब आरा के तत्कालीन कांग्रेस विधायक सिद्धनाथ राय ने उनकी खुलकर मदद की. चूंकि सिद्धनाथ बाबू ने विधायकजी की मदद की थी, इसलिए कांग्रेस पार्टी नाराज थी. उन्हें दोबारा टिकट नहीं मिलता. विधायकजी ने घोषणा की कि आरा से वह सांसद बनेंगे, तो सिद्धनाथ बाबू को झरिया से विधायक का चुनाव जितवायेंगे और जनता मजदूर संघ में अपनी जगह भी देंगे. विधायकजी की इस घोषणा से मंत्रीजी व राजन बाबू नाराज हो गये. विधायकजी के साथ खराब बर्ताव किया. विधायकजी को इससे गहरा सदमा लगा था.”
विधायकजी के श्राद्ध कर्म में खर्च के लिए मांगे गये पैसे
कुंती देवी बताती हैं-“मुझसे विधायकजी के श्राद्ध कर्म में खर्च के लिए पैसे मांगे गये. धनबाद से मनोहर सिंह बलिया पैसा लेकर गये थे. अभी विधायकजी का कजिया खत्म भी नहीं हुआ था कि परिवार के लोगों के रंग बदलने लगे. हमलोगों को प्रताड़ित किया जाने लगा. इनकम टैक्स के नाम पर पैसे लिये गये. घर के राशन और बच्चों के स्कूल की गाड़ी तक के तेल बंद करवा दिये गये. बिना टिफिन मेरे बच्चों को स्कूल जाना पड़ता था. परिवार के अन्य बच्चे सब्जी खाते थे और मेरे बच्चे आचार-भात खाकर रहते थे. विधायकजी की मौत के बाद मैं तीन माह तक बेसुध रही. ऊपर से नीचे नहीं उतरती थी. लगता था कि मेरी भी मौत हो जाती. बहुत कमजोर पड़ गयी थी. फिर बच्चों का चेहरा देखा, तो हिम्मत आयी. लगा कि बच्चों के लिए जीना होगा. बच्चे जिद करने लगे, तब रसोई घर संभाला. किसी तरह कुंती निवास की दुकान से आनेवाले किराया से राशन का खर्च व परिवार चलाने लगी. फिर दुकान को बढ़ाया गया. विधायकजी के बाद उनका सारा काम-धाम मंत्रीजी देखने लगे. जो भी आय के स्रोत थे, उससे आनेवाले पैसे मंत्रीजी और राजन बाबू ही रखते थे. मेरा परिवार पाई-पाई के लिए मोहताज हो गया. मंत्रीजी ने बबुआ (राजीव रंजन) का आइएसएल में एडमिशन तक नहीं करवाने दिया. बेटी गुड्डी की पढ़ाई का खर्च तक देने से इनकार कर दिया. राजन बाबू ने सिंह मैंशन के रसोई घर में दीवार खिंचवाकर खाना अल ग करवाया.”
विधायक नये वार्ड में शिफ्ट, नहीं की कोई विशेष मांग
धनबाद जेल में विधायक संजीव सिंह सामान्य कैदियों की तरह रहे हैं. विधायक ने जेल प्रबंधन से अभी तक कोई विशेष सुविधा की मांग नहीं की है. विधायक ए श्रेणी के कैदी हैं. उन्हें तीन-चार बंदियों के साथ नये वार्ड में रखा गया है. विधायक का खाना घर से ही आता है. नियमानुसार विधायक ने कारा के फोन से गुरुवार को निर्धारित अवधि के लिए अपने परिजनों से बात की. विधायक ने सभी को धैर्य से रहने को कहा. कानून पर भरोसा जताने को कहा. विधायक ने दूसरे दिन भी अंदर किसी को बुलाकर मुलाकात नहीं की. बड़ी संख्या में झरिया व धनबाद से लोग विधायक से मिलने गये थे. विधायक ने आम कैदियों की तरह खिड़की से ही हाथ हिलाकर सबका अभिवादन किया और लौटा दिया. विधायक के भाई मनीष से भी गुरुवार को मुलाकात नहीं हो सकी.
मैनुअल के अनुसार विधायक के ए श्रेणी का कैदी होने के कारण वार्ड में टीवी, पेपर समेत अन्य सुविधा देनी है. विधायक के लेकर जेल प्रबंधन भी काफी सतर्क है. विधायक पर संभावित खतरे को देखते हुए लगातार उनकी निगरानी की जाती है. सुरक्षा केे ख्याल से विधायक को जरूरत पड़ने पर दूसरा जेल शिफ्ट किया जा सकता है. हालांकि खुफिया एजेंसी की ओर से विधायक पर खतरे का कोई अंदेशा नहीं जताया गया है. विधायक जेल के अंदर भी अन्य कैदियों से ज्यादा मिलते-जुलते नहीं है. जेल अफसर व कर्मियों से आदर पूर्वक बात करते हैं.
करकेंद मोड़ में कांग्रेस ने नीरज को दी श्रद्धांजलि
पुटकी. करकेंद मोड़ में गुरुवार धनबाद कांग्रेस कमेटी की ओर से कांग्रेस नेता सह पूर्व डिप्टी मेयर नीरज सिंह को श्रद्धांजलि दी गयी. सभा में पूर्व मंत्री मन्नान मल्लिक ने कहा कि नीरज सिंह धनबाद के दबे कुचले लोगों की आवाज थे. डिप्टी मेयर एकलव्य सिंह ने कहा कि धनबाद की जनता ने कम समय में नीरज सिंह को जो प्यार दिया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. वह जनता की हर सुख-दुःख की घड़ी में साथ रहेंगे. सभा में लक्ष्मण तिवारी, घनश्याम नारनोली, रितेश नारनोली, सत्यनारायण तिवारी, शाहरुख खान, राजकुमार राजभर, संजय सिंह चौधरी, श्रीराम चौरसिया, राधेश्याम शर्मा, भोला राम, मंटू सिंह, अजय पासवान, गणेश भारती, रंजन मिश्रा आदि उपस्थित थे.

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