कल्पना के गीतों पर झूमा धनबाद, हाथ में मेहंदी, मांग सिंदुरवा, बरबादी कजरवा…
धनबाद : हाथ में मेहंदी, मांग सिंदूरवा, बरबादी कजरवा हो गईले…, मैने देख लिया सब चख कर तेरे इश्क से मीठा कुछ भी नहीं…, जब नाचिले बाजार हिलेला, मारे ठुमका तो यूपी बिहार हिलेला, कमर लचकाइला दिल्ली सरकार हिलेला…गवनवा ले जा राजा जी आदि गीतों पर गायिका कल्पना पटवारी लोगों को न्यू टाउन हॉल में […]
धनबाद : हाथ में मेहंदी, मांग सिंदूरवा, बरबादी कजरवा हो गईले…, मैने देख लिया सब चख कर तेरे इश्क से मीठा कुछ भी नहीं…, जब नाचिले बाजार हिलेला, मारे ठुमका तो यूपी बिहार हिलेला, कमर लचकाइला दिल्ली सरकार हिलेला…गवनवा ले जा राजा जी आदि गीतों पर गायिका कल्पना पटवारी लोगों को न्यू टाउन हॉल में झुमाती रही. उन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना ‘वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटी सम:प्रभ, निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सुसर्व्दा’ से की. इसके बाद पारंपरिक छठ गीतों से माहौल छठ मय हो गया.
कल्पना ने मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाय… गाकर लगों को मंत्रमुग्ध किया. फिर भूपेन हजारिका को समर्पित गीत -गंगा बहती हो क्यों, अंकिचन, निर्मल तुम बहती क्यों हो…गीत गया. उन्होंने कहा कि भूपेन हजारिका उनके गुरु हैं. भूपेन हमेशा से जल, जंगल पर फोकस करते थे. गंगा पर उन्होंने जो गीत आये, आज भी लोग सुनते हैं. कल्पना के गीतों पर लोग तालियां बजाते रहे. कल्पना ने उपस्थित कई बच्चों को भी अपने स्टेज पर बुलाकर डांस कराया. गंदी, गंदी, गंदी बात…, बैंड बजा है, बैंड बजेला…, आइला रे, आइला…,मन महका, मन महका गीत गाये.
ओ रे कहारो…
ताजा रिलीज हिंदी फिल्म ‘बेगम जान’ में कल्पना ने अपने गाये गीत ‘ओ रे कहारो, डोली उतारो, पल भर तो तू ठहरो जरा…’ गाकर समां बांध दिया. उन्होंने बताया कि बेगम जान की पात्र बहुत ही कड़ियल है. गाली भी बकती है, लेकिन एक एेसा पल भी आता है, जब वह मातृत्व से गुजरती है. तब वह नरम होने लगती है. वह अपने पीछे के समय याद करने लगती है, ओ रे कहारो गीत यहीं से शुरू होता है.
ना हमसे भंगिया पिसाइ ए गणेश के पापा…
कल्पना ने बताया कि भोजपुर का एक गाना, जिसने उन्हें काफी आये बढ़ाया. असमिया कल्पना से भोजपुरिया कल्पना बनाया. कल्पना के ‘’ना हमसे भंगिया पिसाइ ए गणेश के पापा, हम नइहर जात बानी…गीत पर श्रोताओं ने खूब अानंद उठाया. इसके बाद कई हिट भोजपुरी गीत गाये. अंत में सुन परदेशी बालम आदि गीत गाये.
…तो भोजपुरी गीतों पर क्यों नहीं लचका सकते हैं कमर
कल्पना ने गीतों केसाथ लोगों को झुमाया. उन्होंने कहा कि हनी सिंह के गीतों पर 70 प्रतिशत लोग कमर लचकाने लगते हैं, लेकिन जब भोजपुरी की बात आती है, तो लोग नीचा समझने लगते हैं. लेकिन दोनों में एक ही काम करना पड़ता है. अपनी माटी, भाषा पर सबकुछ है.
भिखारी ठाकुर के गीत ‘बेटी-बेचवा’ ने भाव विभोर किया
कल्पना ने बताया कि उन्होंने भिखारी ठाकुर के गांव कुतुबपुर (छपरा) में जाकर तीन माह तक रिसर्च किया. गांव के बुजुर्गों ने उनके गाये गीतों को देखा. लंदन में जाकर शेक्सपीयर हाउस देखा, वहां काफी अच्छे तरह से शेक्सपीयर से जुड़ी चीजों को देखा. लेकिन भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के गांव को विकसित करने की जरूरत है. उनके जुड़ी चीजों को बचाने की जरूरत है. भिखारी के गाये ‘बेटी बेचवा’ (गीत) प्रस्तुत किया. एक कम उम्र की बेटी की शादी बड़े उम्र के व्यक्ति के साथ हो जाती है. उस लड़की की आंतरिक पीड़ा ‘ढोरे-ढोरे लोर गिरता हो बाबूजी, हमरा के पराय काहे बनवल हो बाबूजी’ पर लोग भाव विभोर हो गये.
गौरवान्वित हूं यहां आकर
मारवाड़ी युवा मंच झरिया शाखा की अध्यक्ष सीमा अग्रवाल कहती हैं कि अपराजिता सम्मान समारोह में आकर मुझे जो खुशी मिल रही है उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है. सीमा आकृति बूटिक भी चलाती हैं. कहती हैं कि समाज सेवा का शौक बचपन से ही रहा है. समाज से जुड़कर मेरा शौक पूरा हो रहा है. इनका कहना है समाज में उपलब्धि के बिना आपका कोई मोल नहीं है. अपने हुनर को पहचान और आगे बढ़ें. शुरुआत कठिन होता है, फिर रास्ते मिलते जाते हैं.
समाजसेवा में है खुशी
मारवाड़ी महिला समिति गोविंदपुर शाखा की अध्यक्ष सरोज सरिया कहती हैं कि समाजसेवा कर खुशी मिलती है. हमारी समिति बच्चों के लिए कई तरह के कंपीटीशन कराकर उनकी प्रतिभा को सामने लाती है. सारी सदस्य मिलकर सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेती हैं. चाहे निर्धन कन्या का विवाह कराना हो या प्रताड़ित महिला की सहायता करना हो, आपसी सहयोग से हो जाता है. वर्तमान समय में हर क्षेत्र में महिलाओं को आगे बढ़ता देख सुकून मिलता है. आधी आबादी के लिए बस यही कहना चाहती हूं, हम नारी हैं, हम कभी नहीं हार सकती.