सूख गये 90 फीसदी से अधिक डोभा, वरदान की बजाय अभिशाप साबित हो रही योजना
जमीन बचायें या हाकिमों की नौकरी : दोराहे पर कोयलांचल के किसान संजीव झा धनबाद : कोयलांचल के किसान दोराहे पर खड़े हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अपनी बेशकीमती जमीन बचायें या सरकारी मुलाजिमों, हाकिमों की नौकरी. लंबे-चौड़े दावाों के साथ झारखंड में शुरू हुई डोभा योजना यहां बुरी तरह फ्लॉप कर गयी […]
जमीन बचायें या हाकिमों की नौकरी : दोराहे पर कोयलांचल के किसान
संजीव झा
धनबाद : कोयलांचल के किसान दोराहे पर खड़े हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अपनी बेशकीमती जमीन बचायें या सरकारी मुलाजिमों, हाकिमों की नौकरी. लंबे-चौड़े दावाों के साथ झारखंड में शुरू हुई डोभा योजना यहां बुरी तरह फ्लॉप कर गयी है. 90 फीसदी से अधिक डोभा सूख चुके हैं. दो वर्ष पूरे ताम-झाम के साथ शुरू डोभा निर्माण योजना सही नीति व रख-रखाव के अभाव में किसानों के लिए वरदान की बजाय अभिशाप साबित हो रही है. ऊपर के दबाव में यहां के अधिकारी व पंचायत स्तर के कर्मी मुखिया, पंचायत समिति व वार्ड सदस्यों पर डोभा के लिए दबाव बनाते हैं. मुखिया व अन्य पंचायत स्तर के जन प्रतिनिधि किसानों यानी लाभुकों पर इस योजना के लिए प्रेशर बनाते हैं. अधिकतर किसान डोभा योजना नहीं लेना चाहते. किसानों का कहना है कि डोभा से नुकसान ज्यादा, लाभ नाममात्र होता है. एक तो डोभा के लिए खेत बरबाद होता है. ऊपर से इसमें पानी भी बहुत कम दिन टिकता है. इतनी कम गहरायी होती है कि इसमें पानी टिकता ही नहीं. एक फसल भी मुश्किल से होती है. ऊपर से योजना की लागत इतनी कम होती है कि इसमें किसी को बहुत आर्थिक लाभ भी नहीं होता.
क्या है जमीनी हालत
बलियापुर प्रखंड के कुसमाटांड़ पंचायत में पिछले दो वर्षों के दौरान 35 डोभा खुदवाया गया. आज इसमें से 34 डोभा सूख चुके हैं. एक डोभा में नाम मात्र का पानी बचा है. कमोवेश यही हालत जिले के सभी प्रखंडों में है. यहां के किसान कहते हैं कि पानी के अभाव में खेती नहीं हो पा रही. डोभा में जो पानी स्टोर होता है उससे केवल धान की खेती में लाभ मिलता है. लेकिन, इसके चलते खेत बरबाद हो रहा है. जो एक बार डोभा खुदवा चुके हैं उन पर दुबारा डोभा लेने के लिए दबाव बनाया जाता है. वह भी समतल जमीन पर. टांड़ जमीन पर डोभा की स्वीकृति नहीं मिलती. सरकारी मुलाजिम एवं जन प्रतिनिधि डोभा बनाने के लिए दबाव बनाते हैं. जबकि डोभा उन लोगों के लिए कहीं से लाभदायक नहीं है. उससे कहीं ज्यादा लाभदायक डीप बोरिंग या गहरा कुआं होगा.
7500 डोभा खुदवाने में हांफ रहे अधिकारी
राज्य सरकार ने इस वर्ष धनबाद जिले में साढ़े सात हजार डोभा खुदवाने का लक्ष्य रखा है. डीडीसी गणेश कुमार के अनुसार पूरे जिले में अभी 4603 डोभा की खुदाई का काम चल रहा है. दावा किया कि बरसात से पहले पूरे जिले में डोभा खुदाई का लक्ष्य पूरा हो जायेगा. अभी बाघमारा में 575, बलियापुर में 285, धनबाद में 115, एग्यारकुंड में 70, गोविंदपुर में 6राज्य सरकार15, केलियासोल में 382, निरसा में 617, पूर्वी टुंडी में 448, तोपचांची में 498 तथा टुंडी में सबसे ज्यादा 998 डोभा की खुदाई चल रही है.
क्या कहते हैं किसान, मुखिया व अधिकारी
डोभा तो खुदवाया, लेकिन उसमें पानी नहीं रहता. आप खुद देख लीजिए खेतों की क्या हालत है. खेत फट चुका है. पानी रहता तो धान के साथ-साथ गेंहू, सब्जी भी उगा सकते थे. सरकार डोभा की बजाय डीप बोरिंग करवा दे तो पूरे वर्ष खेती कर पायेंगे.
– गोपाल गोरांई, किसान, कुसमाटांड़ गांव.
डोभा की बजाय सरकार डीप बोरिंग या गहरा कुआं स्वीकृत करे तो किसानों को लाभ होगा. डोभा से केवल एक फसल ही उपजा पाते हैं. साथ ही बरसात में पानी भरने के बाद बच्चों के डूबने का भी खतरा रहता है. डोभा के लिए ऊपर से दबाव बनाया जाता है. किसानों को इसके लिए तैयार करना मुश्किल होता है.
– मुक्तेश्वर महतो, वार्ड मेंबर सह किसान, कुसमाटांड़.
यहां के किसान खेती के लिए मुख्यत: बारिश पर निर्भर रहते हैं. पंचायत में 35 डोभा खुदवाया. लेकिन, किसी में पानी नहीं है. कई बार उपायुक्त, बीसीसीएल के डीपी को सिंचाई योजनाओं के लिए ज्ञापन दिया गया है. अगर खदानों का पानी कुसमाटांड़ पंचायत के बड़े तालाब तक पहुंचा दिया जाये तो सारी समस्या की ही समाधान हो जायेगा. डोभा के लिए किसान खेत नहीं देना चाहते. वैसे डोभा से कुछ लाभ भी है.
– मधुसूदन मोदक, मुखिया, कुसमाटांड़ पंचायत.
डोभा के लिए किसी पर दबाव नहीं बनाया जाता. किसानों को इससे लाभ होता है. गरमी मेंडोभा सूखना लाजिमी है. लेकिन, बरसात का पानी बरबाद नहीं होता. जल संचय होता है. जिसका उपयोग खेती में होता ही है. साथ ही जल स्तर भी बढ़ता है.
– गणेश कुमार, डीडीसी.