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साधारण वेश भूषा, पर असाधारण शख्सियत

हड़ताली मजदूरों के नेता और कार्यकर्ता प्राय: मेरे पास 'युगांतर' आते रहते थे, कभी कोई समाचार प्रकाशन के लिए देने को, तो कभी कोई परचा छपवाने के लिए. अक्सर, उनसे सुनने को मिलता कि सत्यनारायण बाबू तो भूख-हड़ताल पर हैं

By Prabhat Khabar News Desk | July 21, 2022 11:54 AM

मुकुटधारी सिंह

हड़ताली मजदूरों के नेता और कार्यकर्ता प्राय: मेरे पास ‘युगांतर’ आते रहते थे, कभी कोई समाचार प्रकाशन के लिए देने को, तो कभी कोई परचा छपवाने के लिए. अक्सर, उनसे सुनने को मिलता कि सत्यनारायण बाबू तो भूख-हड़ताल पर हैं, परंतु, हड़ताल का वास्तविक संचालन एके राय (अरुण कुमार राय) नामक एक नौजवान कर रहा है, जो कलकत्ता-विश्वविद्यालय से एमएससी (टेक) की डिग्री प्राप्त किये हुए हैं.

गोल्ड मेडलिस्ट भी है. राजनीतिक तथा सामाजिक काम करने के उद्देश्य से उसने स्वेच्छा से फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन की पीएंडडी शाखा, सिंदरी की अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़ दी है. वहां उन दिनों भी उसे एक मोटी तनख्वाह मिलती थी. शायद एक हजार रुपये प्रति माह से भी अधिक. स्वाभाविक रूप से उस उदीयमान और कर्मठ युवक को देखने और उसके निकट संपर्क में आने की मेरी इच्छा थी.

इसी बीच एक दिन प्राय: दोपहर को सिंदरी के कुछ हड़ताली मजदूर मेरे पास आये और ‘युगांतर’ के दफ्तर में रखी हुई कुर्सियों और बेंचों पर बैठ गये. एक गोरा-पतला, मझोले कद का तरुण, जिसके सिर के बाल बेतरतीब थे, परंतु जिसके चेहरे पर चिंतन की छाप दिखाई पड़ती थी, मेरे सामनेवाली कुर्सी पर बैठ गया. उसने कम-से-कम शब्दों में कुछ समाचार दिये, एक नये परचे का मसविदा दिया और कहा कि आप इसको ठीक से देखकर छपवा दीजिएगा.

काम की बातें समाप्त होते ही वह तरुण और उसके दो-तीन साथी चलते बने. एक नौजवान फिर भी मेरी बगलवाली एक कुर्सी पर बैठा रहा, क्योंकि उसे कुछ छपे परचों को लेकर जाना था और उनकी छपाई का काम तब तक पूरा नहीं हुआ था. जब वह अकेला रह गया, तब मैंने उस आदमी से पूछा: भाई मैं एके राय का नाम तो रोज-रोज सुनता हूं, और उसकी प्रशंसा भी, परंतु अभी तक नहीं जान पाया कि वह व्यक्ति है कौन. वह आदमी हंसने लगा.

मैंने कहा, आप हंस क्यों रहे हैं. उसने कहा, इसलिए कि वे तो अभी-अभी यहां से उठकर गये हैं और आप कहते हैं कि उन्हें जानते ही नहीं. मैंने पूछा, कौन था, उसमें, एके राय? उसने कहा कि वही, जो आपके सामने बैठे थे और बातें कर रहे थे. इतना सुनना था और मैं आश्चर्यचकित हो गया. आश्चर्य इसलिए कि जो आदमी मेरे सामने बैठा था, वह तो इतना सीधा-सादा और इतनी साधारण पोशाक में था, साथ ही इतना कम बोलनेवाला भी, कि मैं यह सोच ही नहीं सकता था कि वह एक काफी पढ़ा-लिखा और ऊंचे दर्जे का बंगाली भ्रदलोक भी हो सकता है.

एक साधारण-सा मुड़-तुड़ा कुरता और साधारण से पाजामे तथा चप्पल में राय तो कई बार, पहले भी मेरे पास आ चुके थे, परंतु उन्होंने कभी अपना परिचय नहीं दिया था. दूसरे मजदूर-नेताओं की तरह मुझ पर यह रौब जमाने की कोशिश तो बहुत दूर की बात रही कि वे भी बहुत पढ़े-लिखे हैं तथा समाज सेवा के लिए इतनी बड़ी नौकरी छोड़कर उन्होंने कोई बहुत बड़ा त्याग किया है.

(लेखक की पुस्तक ‘स्वातंत्र्य संग्राम : भूली-बिसरी कड़ियां’ से साभार )

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