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बच्चा सिंह ने हमेशा राजनीतिक मानदंडों का ख्याल रखा : इंदर सिंह नामधारी

स्मृति शेष : शालीनता के साथ राजनीतिक मानदंडों का ख्याल रखते थे बच्चा सिंह

झारखंड विधानसभा के प्रथम स्पीकर इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि बच्चा सिंह से मेरे काफी घनिष्ठ संबंध रहे. वैसे धनबाद को लेकर जो आमजनों के मन में एक छवि रहती है, उस धारणा से अलग हट कर बच्चा सिंह ने अपनी राजनीतिक छवि गढ़ी थी. मेरी दृष्टि में राजनीति में जो शालीनता एक राजनेता में होनी चाहिए, उसका बच्चा सिंह ने हमेशा आवरण किया. बिहार से अलग होकर जब सन 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ, तो बच्चा सिंह मंत्री बने थे. स्पीकर होने के नाते पक्ष और विपक्ष दोनों के विधायकों पर सूक्ष्म दृष्टि रहती है. मुझे याद है कि जब बच्चा सिंह मंत्री के नाते अपने विभाग का पक्ष रखते थे, तो उस दौरान भी वह शालीनता के साथ राजनीतिक मानदंडों का ख्याल रखते थे. इसलिए मैं कहता हूं, जिस इलाके से वह ताल्लुक रखते थे और वहां की जो राजनीतिक तासीर है, उससे अलग उनकी छवि रही. विनम्रता और शालीनता के साथ लोगों से मिलना और अपनी बात रखना उनकी कार्यशैली में शामिल रहा. उनका नाम भले ही बच्चा था, लेकिन बौद्धिक स्तर पर उच्च श्रेणी के थे. राजनीति में नैतिकता, शुचिता और जो मर्यादा होनी चाहिए, उसे हमेशा बच्चा सिंह ने बनाये रखा. जब वह विधायक या फिर मंत्री बने उनसे मेरी निकटता और घनिष्ठता बनी रही. उनके निधन की सूचना पाकर अत्यंत मर्माहत हूं. उन्हें मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि.

मजदूरों के काम करने से कभी पीछे नहीं रहते थे बच्चा सिंह : एके झा

राष्ट्रीय कोयलियरी मजदूर यूनियन के महामंत्री एके झा ने कहा कि पूर्व मंत्री बच्चा सिंह हमेशा मजदूरों के लिए चिंतित रहते थे. कभी भी कोई मजदूर उनके पास अपनी समस्या को लेकर चले जाये. उसके समाधान के लिए तत्पर हो जाते थे. मैं वर्ष 1969 में धनबाद आया था. उसी वक्त मेरी सूरजदेव बाबू से काभी अच्छी दोस्ती हो गयी. यूं कहें कि एक पारिवारिक संबंध था, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. बच्चा सिंह सूरजदेव बाबू के तीसरे भाई थे और सबसे करीबी भी थे. वर्ष 1970 में बच्चा सिंह ओल्ड कुस्तौर एरिया में मजदूर नेता थे. ट्रेड यूनियन में भी इनकी काफी रुचि थी. हमेशा मजदूरों के लिए काम करते थे. मजदूरों के लिए काम करने में कभी पीछे नहीं हटते थे. मजदूरों की सेवा करते हुए कई बार जेल भी गये थे. 1977 में सूरजदेव बाबू ने जनता मजदूर संघ बनाया था. इसमे बच्चा बाबू काफी सक्रिय रहते थे. सूरजदेव बाबू के देहांत के बाद बच्चा बाबू ने ही परिवार को संभाल और परिवार की देखभाल की. बच्चा बाबू झारखंड सरकार में मंत्री भी रहे थे. झरिया में भी बच्चा बाबू ने अच्छा काम किया. धनबाद को नगर निगम बनने में बच्चा बाबू का काफी योगदान रहा. उनके प्रयास से ही धनबाद नगरपालिका से धनबाद नगर निगम में तब्दील हुआ. उनके कार्यकाल में शुरू हुई कई योजनाओं का लाभ धनबाद को मिला. इसमें धनबाद को मिलेनियम सिटी का दर्जा मिलना भी शामिल है. मैथन से पाइप लाइन के जरिये पानी धनबाद तक लाने में भी प्रमुख भूमिका निभायी थी. हिंद मजदूर सभा के ओर से 8वें वेज बोर्ड के मेम्बर भी थे. अच्छे इंसान थे,संघर्ष करने से कभी पीछे नहीं हटते थे. मजदूर के लिए लड़ने को तैयार रहते थे. उनका निधन मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है. साथ ही यहां के मजदूर वर्ग के लिए बड़ा झटका है. चार बार विधानसभा का चुनाव लड़े, एक बार जीते, मंत्री भी बनेबिहार, झारखंड दोनों विधानसभा के सदस्य रहने का मिला मौकाविशेष संवाददाता, धनबादकोयलांचल में मजदूर नेता के रूप में अपनी अलग पहचान रखने वाले बच्चा सिंह चार बार विधानसभा का चुनाव लड़े. इसमें तीन बार झरिया तथा एक बार बोकारो से विधानसभा चुनाव लड़े. एक बार विधायक बने. संयोग से उसी बार बाबूलाल मरांडी सरकार में नगर विकास राज्य मंत्री भी बने. झरिया के पूर्व विधायक सूर्यदेव सिंह के अनुज बच्चा सिंह 70 के दशक में धनबाद आये थे. यहां बीसीसीएल में नौकरी भी करते थे. साथ ही ट्रेड यूनियन की राजनीति में सक्रिय रहे. सूर्यदेव सिंह जो झरिया के विधायक थे ने जनता मजदूर संघ नामक मजदूर संगठन बनाया था. बच्चा सिंह भी अपने भाई के यूनियन से ही मजदूर राजनीति शुरू की. बड़े भाई के निधन के बाद उन्होंने जमसं की कमान संभाली. यूनियन के महामंत्री बने. साथ ही सिंह मेंशन की तरफ से झरिया विधानसभा से उप चुनाव लड़े. लेकिन, उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. फिर 1995 के विस चुनाव में भी श्री सिंह को हार का सामना करना पड़ा. वर्ष 2000 में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ कर बिहार विधानसभा के सदस्य बने. संयोग से वर्ष 2000 में ही 15 नवंबर को अलग झारखंड राज्य का गठन हुआ. समता पार्टी के सहयोग से भाजपा ने झारखंड में पहली सरकार बनायी. इस सरकार में बच्चा सिंह भी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बने. 2004 में सीट बदल कर बोकारो से लड़े वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में झरिया से सूर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती देवी चुनाव मैदान में उतरी. उस वक्त बच्चा सिंह ने बोकारो विधानसभा से चुनाव लड़ने का फैसला किया. लेकिन, सफलता नहीं मिली. इसके बाद कभी चुनाव नहीं लड़े. हमेशा खुद को मजदूर राजनीति में ही सक्रिय रखा. अंतिम समय तक जमसं (बच्चा गुट) के महामंत्री बने. जमसं को लेकर लंबे समय तक कानूनी लड़ाई भी लड़े. डोमिसाइल के मुद्दे पर बच्चा सिंह ने अपने ही सरकार को घेरा थाधनबाद . पूर्व मंत्री बच्चा सिंह ने डोमिसाइल के मुद्दे पर अपने ही सरकार को घेरा था. बाबूलाल मरांडी की सरकार ने जब राज्य में डोमिसाइल नीति लायी थी. तब उनके मंत्रिमंडल में सहयोगी रहे बच्चा सिंह ने इसका विरोध किया था. समता पार्टी के सभी मंत्रियों ने उनका साथ दिया था. इन मंत्रियों के विरोध के कारण भाजपा ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन किया था. बाबूलाल मरांडी की जगह अर्जुन मुंडा को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाया गया. – झारखंड के प्रथम नगर विकास मंत्री थे बच्चा सिंहबच्चा सिंह कभी ‘सिंह मेंशन’ के स्तंभ हुआ करते थे. उन्होंने पहली बार विधानसभा का चुनाव साल 1991 में लड़ा, लेकिन आबो देवी के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. वर्ष 1995 में उन्होंने दोबारा झारखंड विधानसभा से अपनी किस्मत आजमायी, लेकिन फिर हार गये. साल 2000 में उन्होंने पहली बार जीत स्वाद चखा और झरिया के विधायक बनें. इसके बाद उन्हें बाबूलाल मरांडी की सरकार में नगर विकास मंत्री बनाया गया. वे झारखंड के प्रथम नगर विकास मंत्री थे.

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