कोरोना से बचाव के लिए बनाया गया वैक्सीन कितना प्रभावी ? 79 फीसदी लोगों में बना एंटीबॉडी, इतने लोगों पर किया गया था शोध
अहमदाबाद के सुप्राटेक लैब में जांच पूरी होने के बाद उसे कोडिंग करने के लिए जयपुर भेजा गया. यहां दो डॉक्टरों की टीम ने 72 घंटे में सभी की कोडिंग की. यानी व्यक्ति की क्या उम्र है, पुरुष है या महिला, उन्हें कौन-कौन सी बीमारियां हैं और उनमें कितना एंटी स्पाइक एंटीबॉडी बनी है. यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद कोलकाता भेजा गया जहां एक डाटाबेस तैयार किया गया है. इस डाटाबेस के अनुसार एक क्लिक करते ही व्यक्ति की सारी जानकारियां मिल जा रही है.
Coronavirus Vaccine Trials Update, Covid vaccine update, Dhanbad News धनबाद, ( मनोज रवानी ) : देश में कोरोना से बचाव के लिए दिया जा रहा वैक्सीन कितना प्रभावी है और वैक्सीन लेने के बाद लोगों में एंटीबॉडी कितना डेवलप हो रहा है. इसकी जांच करने के लिए देश के पांच राज्यों के डॉक्टर क्लिनिकल ट्रायल कर रहे हैं. रिसर्च का पहला रिजल्ट जारी हो गया है. इसमें यह बात सामने आई है कि 552 में से 79.3 प्रतिशत लोगों का एंटी स्पाइक एंटीबॉडी अच्छी डेवलप हुई है. वहीं जिन लोगों में एंटीबॉडी जरूरत के अनुसार डेवलप नहीं हुई है. उनमें देखा जा रहा है कि किस कारण से एंटीबॉडी दूसरे के समतुल्य नहीं बना है.
तीन राज्यों का कंपाइल किया गया
अहमदाबाद के सुप्राटेक लैब में जांच पूरी होने के बाद उसे कोडिंग करने के लिए जयपुर भेजा गया. यहां दो डॉक्टरों की टीम ने 72 घंटे में सभी की कोडिंग की. यानी व्यक्ति की क्या उम्र है, पुरुष है या महिला, उन्हें कौन-कौन सी बीमारियां हैं और उनमें कितना एंटी स्पाइक एंटीबॉडी बनी है. यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद कोलकाता भेजा गया जहां एक डाटाबेस तैयार किया गया है. इस डाटाबेस के अनुसार एक क्लिक करते ही व्यक्ति की सारी जानकारियां मिल जा रही है.
छह महीने में चार बार होगा टेस्ट
वैक्सीन की डोज लेने के बाद छह महीने के अंदर में चार बार ब्लड सैंपल लेकर सभी की जांच होनी है. पहली जांच का रिजल्ट मार्च के अंत तक फाइनल हो गया है. वही वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के बाद फिर से सैंपल कलेक्शन का काम पूरा कर लिया गया है. मंगलवार को सैंपल कलेक्शन पूरा होने के बाद अब इसे फिर से अहमदाबाद स्थित लैब में भेजने की प्रक्रिया चल रही हैं. तीसरा टेस्ट तीन महीने के बाद और चौथा टेस्ट छह माह पर किया जाएगा.
इन राज्यों के डॉक्टर जुड़े हैं रिसर्च में
अवधेश कुमार सिंह, एमडी सह डीएम कंसलटेंट एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, जीडी अस्पताल और मधुमेह संस्थान, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
डॉ संजीव रत्नाकर पाठक, कंसल्टेंट फिजिशियन और डायबेटोलॉजिस्ट, विजयरत्न डायबिटीज सेंटर, अहमदाबाद, गुजरात
डॉ नागेंद्र कुमार सिंह, निदेशक, मधुमेह और हृदय अनुसंधान केंद्र, धनबाद
डॉ अरविंद गुप्ता, मधुमेह, मोटापा और मेटाबोलिक डिसऑर्डर विभाग, राजस्थान अस्पताल, जयपुर
डॉ अरविंद शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, सामुदायिक चिकित्सा विभाग, महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, जयपुर, राजस्थान
किंगशुक भट्टाचार्य इंडिपेंडेंट बायोस्टिस्टिशियन, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
डॉ रीतू सिंह, कंसलटेंट, गायनोकोलॉजिस्ट, जीडी अस्पताल और मधुमेह संस्थान, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
डॉ एके सिंह, जीडी हॉस्पिटल एंड डायबिटीज इंस्टीट्यूट कोलकाता.
पूरे ट्रायल में करीब 15 लाख खर्च का अनुमान
इस पूरे क्लिनिकल ट्रायल में करीब 15 लाख रुपये खर्च का अनुमान लगाया गया है. इस राशि के लिए अभी तक किसी से मदद नहीं ली गयी है. बल्कि डॉक्टरों की टीम खुद ही इन्वेस्ट कर इस रिसर्च को पूरी कर रहे हैं. इंडियन मेडिकल काउंसिल को जानकारी देकर प्रक्रिया पूरी की जा रही है.
क्या कहते हैं रिसर्च से जुड़े धनबाद के डॉक्टर एनके सिंह
डॉ एनके सिंह बताते हैं कि इस रिसर्च में ज्यादातर डॉक्टर ही जुटे हुए हैं. इसका फायदा मिल रहा है कि वह क्लिनिकल ट्रायल में खुलकर सामने आ रहे हैं. शरीर में अगर 15.0 आर्बिट्रेरी यूनिट (एयू)/ एम एल मिलता है तो उसे माना जाता है कि शरीर में एंटीबॉडी डेवलप हुई है. वहीं इससे कम होने पर एंटी स्पाइक एंटीबॉडी डेवलप नहीं माना जाता है. चार चरणों में ट्रायल होना है, पहले चरण का ट्रायल हो गया है. दूसरे चरण के ट्रायल के लिए सैंपल कलेक्ट कर लिया गया है इसे अहमदाबाद लैब में भेजा जायेगा. इस रिसर्च का उद्देश्य है कि लोगों में वैक्सीन लेने के बाद कितना एंटीबॉडी डिवेलप हो रहा है इसकी गणना की जा सके.
Posted By : Sameer Oraon