धनबाद : प्रोबेट (वसीयत) मामले में किसी तरह की चुनौती सिर्फ प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में ही दी जा सकती है. सिर्फ प्रधान जिला जज को ही इस मामले में सुनवाई का अधिकार है. यह बातें धनबाद जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व धनबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेंद्र कुमार सहाय ने कही. वे रविवार को प्रभात खबर के ऑनलाइन लीगल काउंसलिंग में पाठकों के सवालों पर कानूनी सलाह दे रहे थे.
गिरिडीह के अभिराम कुमार ने पूछा था सवाल
गिरिडीह के अभिराम कुमार ने पूछा था कि उनकी एक रिश्तेदार ने मृत्यु से पहले वसीयत लिखी थी. हालांकि, वसीयत अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है. इसकी क्या प्रमाणिकता है, के जवाब में कहा कि मृत्यु पूर्व वसीयत पर किसी भी तरह की चुनौती प्रधान जिला जज के न्यायालय में दी जा सकती है. कभी-कभी होता है कि एक व्यक्ति के तीन-चार वारिश हैं. उनमें कोई एक उक्त व्यक्ति के मरने के बाद उस व्यक्ति का अंगूठा के निशान पर वसीयत खड़ा लेता है. इसलिए कोर्ट में इसकी ट्रायल होती है कि वसीयत सही है या नहीं. प्रधान जिला जज के न्यायालय के फैसले पर वसीयत को वैधानिक मान्यता मिलती है.
इन जिलों से आते रहे पाठकों के कॉल
प्रभात खबर लीगल काउंसेलिंग में धनबाद, बोकारो एवं गिरिडीह से पाठकों के लगातार फोन आते रहे. अमरेंद्र कुमार सहाय ने सभी के सवालों का जवाब दिया. उन्हें कानून के तहत किसी समस्या के समाधान की राह बतायी.
गोमो के हरनाथ डे का सवाल : साइबर ठगी के मामले में क्या करना चाहिए. पैसा कैसे वापस मिल सकता है. कानूनी प्रावधान क्या है ?
अधिवक्ता की सलाह : साइबर ठगी होने पर सबसे पहले साइबर थाना को सूचित करें. हर जिला में साइबर थाना खुला है. वहां पर शिकायत करें. साथ ही अगर तत्काल जाने में असमर्थ हैं, तो ऑनलाइन शिकायत दर्ज करायें. पुलिस ही अनुसंधान कर पता लगा सकती है कि किसने आपके खाता से राशि निकासी की है. उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में मुकदमा दर्ज करेगी. वैसे साइबर ठगी से बचने के लिए सजग रहें. कभी किसी अनजान व्यक्ति को ओटीपी नहीं बतायें.
गिरिडीह के राम किशोर वर्णवाल का सवाल : सूचना के अधिकार के तहत सवाल का जवाब नहीं मिल रहा है. प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश पर भी अमल नहीं हो रहा है. क्या करें ?
अधिवक्ता की सलाह : सूचना के अधिकार के तहत अगर कोई विभाग जवाब नहीं दे रहा है, तो जिला अपीलीय अधिकारी के यहां जा सकते हैं. अगर अपीलीय पदाधिकारी का भी आदेश नहीं मान रहे हैं, तो हाइकोर्ट जा सकते हैं. कोर्ट के आदेश पर सूचना के अधिकार के तहत जवाब देना ही होगा. आप कानूनी रास्ता अख्तियार किये रखें.
स्टील गेट के एम वर्णवाल का सवाल : एक व्यक्ति को उधार दिया था. जब बकाया पैसा मांग रहे हैं, तो रंगदारी, मारपीट का मुकदमा किया जाता है. पुलिस परेशान कर रही है, पैसा वापस कैसे मिलेगा ? जिला कोर्ट से अग्रिम जमानत भी खारिज हो चुकी है.
अधिवक्ता की सलाह : पैसा वापसी के लिए आपको मनी सूट दायर करना होगा. आपके पास अगर पैसा देने का कोई सबूत हो, तो उसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करते हुए सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर सकते हैं. साथ ही वरीय पुलिस अधिकारियों से भी मिल कर अपनी बातों को बताना चाहिए. अगर गैर जमानतीय धारा में मुकदमा दर्ज हो गया है, तो जमानत के लिए भी कोर्ट जाना चाहिए. अगर जिला जज के यहां से अग्रिम जमानत याचिका रद्द हो गयी है, तो हाइकोर्ट ही जाना पड़ेगा.
भागा से के पासी का सवाल : मेरी सरहज ने भागाबांध ओपी में अपनी ससुराल में पिछले दिनों आत्महत्या कर ली. सरहज के परिजनों ने मेरे ससुराल वालों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया है. मुझे भी नामजद कर दिया है. जबकि मेरी कोई भूमिका नहीं है. क्या करें ?
अधिवक्ता की सलाह : इस मामले में एसएसपी सहित सभी वरीय पुलिस अधिकारी से मिल कर अपनी बातें रखें. लिखित आवेदन दे कर अपना पक्ष रखें की सरहज की आत्महत्या में उनकी कोई भूमिका नहीं है. साथ ही कोई साक्ष्य हो तो उसे बतायें. पुलिस अनुसंधान में मदद करें. अगर न्याय नहीं मिले, तो कोर्ट का सहारा लें. कोर्ट के समक्ष अपनी बातों को रखें. लेकिन, पहले पुलिस अधिकारी से जरूर मिल कर सारी बातों की जानकारी दें.
धनबाद से तपन बनर्जी का सवाल : मेरे घर में फैमिली प्रोपर्टी विवाद है. कानूनी तरीका से कैसे बंटवारा हो सकता है?
अधिवक्ता की सलाह : हिंदू प्रोपर्टी एक्ट के तहत किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद परिवार में पुश्तैनी संपत्ति का बंटवारा बराबर हिस्से में होता है. मसलन अगर किन्हीं के तीन वारिश हैं, तो संपत्ति तीन हिस्से में बंटेगा. अगर सामाजिक स्तर पर आपसी रजामंदी से बंटवारा हो जाये, तो बेहतर रहेगा. लेकिन, नहीं सुलझे तो कोर्ट में पार्टिशन सूट फाइल करना होगा. कोर्ट से ही फैसला हो सकता है कि संपत्ति का कौन हिस्सा किसके खाता में जायेगा. आप कानून का सहारा ले सकते हैं. स्थानीय अदालत में सूट फाइल कर दें.
बाघमारा से आशीष चंद्र त्रिगुणायत का सवाल : मेरी जमीन का अधिग्रहण दो-दो बार हो चुका है. लेकिन, अब तक एक बार भी मुआवजा नहीं मिला है. छह वर्ष पहले बीसीसीएल ने जमीन पर चहारदीवारी करा दी. जमीन वापसी के लिए क्या करना चाहिए?
अधिवक्ता की सलाह : पहली बात है कि एक ही जमीन का दो बार अधिग्रहण नहीं हो सकता. अगर ऐसा हुआ है, तो आप केस कर सकते हैं. कोल कंपनियों के लिए जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना केंद्र सरकार जारी करती है. डी-नोटिफाइ करने का भी अधिकार केंद्र सरकार को ही है. वैसे पहले जिला भू-अर्जन पदाधिकारी से मिलें. काम नहीं, तो हाइकोर्ट में रिट फाइल करें.
पेटरवार से सुधीर कुमार सिन्हा का सवाल : केसर-ए-हिंद की जमीन को गलत तरीका से बेचा जा रहा है. क्या सरकारी अधिकारियों के खिलाफ केस कर सकते हैं ?
अधिवक्ता की सलाह : किसी भी राजपत्रित अधिकारी के खिलाफ मुकदमा की इजाजत सरकार से लेनी पड़ती है. इसके लिए कार्मिक विभाग से पत्र जारी होता है. अगर कहीं सरकारी जमीन चाहे वो गैर आबाद, केसर-ए-हिंद की जमीन गलत तरीका से बेची जा रही है, तो संबंधित जिला के उपायुक्त, प्रमंडलीय आयुक्त से शिकायत कर सकते हैं. साथ ही हाइकोर्ट में रिट दायर कर सकते हैं.
धनबाद से एम महतो का सवाल : मेरेीएक जमीन का टाइटल सूट का फैसला कोर्ट से मेरे पक्ष में आया है. इसके बावजूद धनबाद सीओ द्वारा रसीद काटने में आनाकानी की जा रही है?
अधिवक्ता की सलाह : म्यूटेशन, ऑनलाइन रसीद के लिए पहले सीओ को लिखित आवेदन दीजिए. इसके बाद भी सीओ कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो डीसी के यहां आवेदन दें. टाइटल सूट में मालिकाना हक मिलने के बाद भी अधिकारी आना-कानी करते हैं, तो हाइकोर्ट में रिट याचिका दायर कर सकते हैं.
इन्होंने भी ली कानूनी सलाह
भेलाटांड़ के पीके शर्मा, फुसरो के मुन्ना मिश्रा, गिरिडीह से बीके वर्णवाल, चास से धनंजय कुमार, झरिया से राजेश गोस्वामी, बाघमारा से नीलम देवी, निरसा से सोनू कुमार ने भी मोबाइल पर कॉल कर कानूनी सलाह ली.