एनुल अंसारी को पुत्र मान पिछले 35 वर्षों से जितिया करती हैं रामपुर की गुंजरी देवी

एनुल अंसारी को पुत्र मान जितिया करती हैं गुंजरी देवी

By Prabhat Khabar News Desk | September 26, 2024 1:08 AM
an image

गोद लिये पुत्र माणिक के साथ एनुल को रक्षा सूत्र बांधने के बाद ही तोड़ती हैं व्रत

चंद्रशेखर सिंह.टुंडी प्रखंड क्षेत्र के रामपुर गांव निवासी स्व. रतन रजक का परिवार बेहद प्रतिष्ठित है. लोग परिवार को सम्मान की नजर से देखते हैं. इस सम्मान में स्व रजक की पत्नी गुंजरी देवी का अहम योगदान है. 70 वर्षीया गुंजरी देवी पिछले 35 सालों से गांव के ही मुस्लिम युवक एनुल अंसारी (45) को अपना पुत्र मान कर जितिया व्रत करती हैं. वह अपने दत्तक पुत्र माणिक रजक के साथ-साथ एनुल को रक्षा सूत्र बांधने के बाद व्रत तोड़ती हैं. जीमुतवाहन से अपने गोद लिये पुत्र माणिक और एनुल की दीर्घायु की कामना करती हैं. अभी भी यह सिलसिला जारी है. बुधवार अष्टमी तिथि को भी गुंजरी ने एनुल को रक्षा सूत्र बांधा. अन्य पूजन सामग्री व फूल को कानों में दिया. गुंजरी देवी कहती हैं : उन्हें कोई संतान नहीं थी. बाद में अपने ही परिजनों से माणिक राजक को गोद लिया. फिर नियमानुसार जितिया पर्व शुरू किया. माणिक व गांव के एनुल में बाल्यकाल से ही दोस्ती है. इसलिए वह दोनों बच्चों के लिए ही जितिया शुरू की, जो अभी भी जारी है. कहती हैं कि कभी भी यह मन में नहीं आया कि एनुल दूसरे धर्म से है. वह कहती हैं कि अभी एनुल बाल-बच्चेदार हो गया है, लेकिन हमारे सामने वह बच्चा ही है, हक से अपने बेटे की तरह उसे कुछ बोलती है. अभी एनुल गांव से दूर रामपुर मोड़ में रहता है. लेकिन वह व्रत तोड़ने के समय गुंजरी के घर पहुंच जाता है. रक्षा सूत्र बंधाता है. गुंजरी भी उसका इंतजार करती हैं.

मां की तरह प्यार करती हैं गुंजरी : एनुल

एनुल कहता है कि छोटे से ही गुंजरी देवी अपने बेटे की तरह मान कर उसके लिए भी जितिया का व्रत करती हैं. वह भी जाकर प्रसाद लेता है. अपनी मां की तरह वह प्यार जताती हैं. दुर्गापूजा में उनके घर जाकर हिंदू पुत्र की भांति पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेता है. कहता है कि उसने भले ही उनके गर्भ से जन्म नहीं लिया, लेकिन प्यार खूब पाया. जब छोटा था, तो वह खूब खिलाती-पिलाती थीं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Exit mobile version