कोयला खदानों में होने वाले विस्फोटों का प्रभाव होगा कम, IIT धनबाद के रिसर्चर ने विकसित की तकनीक

धनबाद के कोयला खदानों के खनन में होने वाले विस्फोटों को कम किया जा सकेगा. क्यों कि आइआइटी रिसर्च स्कॉलर ने इसकी तकनीक खोज निकाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये होने वाले प्रभावों का सटीक पूर्वानुमान लगा सकती है.

By Prabhat Khabar News Desk | May 25, 2022 12:43 PM

धनबाद : धनबाद के कोयला खदानों में खनन के लिए किया जाने वाला विस्फोट हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है. कारण कई बार विस्फोट से खदान के आसपास मौजूद आबादी को नुकसान होता है. खदान के करीब मौजूद घरों में दरार पड़ जाती है. वहीं पत्थरों के टुकड़े उड़कर आस-पास के घरों में गिरने से हादसे की आंशका रहती हैं. अब विस्फोट के इन कु-प्रभावों को नियंत्रित करने का तरीका आइआइटी आइएसएम माइनिंग इंजीनियरिंग विभाग में पीएचडी कर रहे रिसर्च स्कॉलर अनुराग अग्रवाल ने खोज निकाला है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित उनकी तकनीक खदानों में किये जाने वाले विस्फोट और उससे उत्पन्न होने वाले भूंकपीय प्रभावों का सटीक पूर्वानुमान लगा सकती है. ऐसे में विस्फोट को पहले ही नियंत्रित कर इससे होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है. अनुराग मूल रूप से छतीसगढ़ के निवासी हैं. वह यहां प्रो बीएस चौधरी और फैकल्टी डॉ. वीएमएसआर मूर्ति के मातहत पीएचडी कर रहे हैं.

कोयला, डोलोमाइट औरचूना पत्थर की खदानों में किया परीक्षण

अनुराग अग्रवाल ने मार्च 2020 से दिसंबर 2020 तक झरिया कोलफिल्ड की कोयला खदानों, बिहार में गया की डोलोमाइट पत्थर की खदानों और राजस्थान में चूना पत्थर की खदानों में अपनी तकनीक का परीक्षण किया था. उन्होंने पाया कि विस्फोट का सबसे अधिक भूकंपीय प्रभाव डोलोमाइट की खदानों में देखने को मिला है.

कोयला खदानों में विस्फोट के कारण अधिक भूंकपीय ऊर्जा का रूपांतरण हुआ था. इन तीनों जगहों पर विस्फोटों से होने कंपन का सिस्मोलॉजिक विश्लेषण कर इसके परिणामों के आधार पर विस्फोट की यह नई तकनीक विकसित की गयी है.

ऐसे काम करती यह तकनीक

इस तकनीक में विस्फोट के बाद भूकंपीय कंपन की तरंगे कहां तक जाएंगी, इसका पता मैटलैब सॉफ्टवेयर की मदद से लगाया जा सकता है. इससे विस्फोट में इस्तेमाल होने वाले विस्फोटक को कितनी गहराई में लगाना है यह पहले से तय किया जा सकता है. अनुराग के अनुसार अभी खदानों में किये जाने वाले विस्फोट से निकलने वाली भूकंपीय ऊर्जा का पूर्ण इस्तेमाल पत्थरों को तोड़ने में नहीं हो पाता है. विस्फोट से उत्पन्न ऊर्जा का करीब 70 प्रतिशत बेकार चला जाता है. लेकिन इस नई तकनीक से विस्फोट से निकलने वाली ऊर्जा का शत प्रतिशत इस्तेमाल पत्थरों को तोड़ने में किया जा सकता है.

बनाया नया समीकरण

अनुराग अग्रवाल ने कहा कि विस्फोट से कितनी भूकंपीय ऊर्जा निकलेगी, इसका आकलन किया जा सकेगा. इस तकनीक से भूंकपीय ऊर्जा विश्लेषण पीक पार्टिकल वेलोसिटी (पीपीवी) का उपयोग कर किया गया था. इस तकनीक में विस्फोटक ऊर्जा को भूकंपीय ऊर्जा में बदलने का एक गणीतीय समीकरण तैयार किया गया है. विस्फोटक की मात्रा और इसकी गहराई को समीकरण में रखते ही भूंकपीय ऊर्जा का सटीक परिणाम आ जाता है.

Posted By: Sameer Oraon

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