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Dhanbad News : बंदूक की जगह थामा कुदाल, मेहनत के बल हासिल किया प्रगतिशील किसान का दर्जा

बदलाव. कभी थे दहशत का पर्याय, अब गांव में खेती, शिक्षा और विकास का अलख जगा रामचंद्र राणा बने सबके खास, गांव के बच्चों काे शिक्षित करने का उठाया बीड़ा, श्रमदान कर गांव में बनवा दिया स्कूल

कुछ साल पहले तक जिले के दक्षिण टुंडी की बेगनरिया पंचायत के चुनुकडीहा गांव का नाम उग्रवाद प्रभावित गांवों में शामिल था. यहां कोई जाना नहीं चाहता था. अधिकारियों की तो बात छोड़ दें, बाहर का कोई आम आदमी भी इस ओर आना नहीं चाहता था. हां, पुलिस का फेरा जरूर लगता था, पर आज इस गांव में पक्की सड़क है, जिन पर गाड़ियां सरपट दौड़ती हैं. बच्चों की पढ़ाई के लिए बेहतर स्कूल की व्यवस्था है. खेती ऐसी कि यहां के लोगों को खाद्यान्न का संकट नहीं होता. यह सब संभव हो पाया कभी पुलिस फाइलों में वांटेड नक्सली के रूप में दर्द रामचंद्र राणा के कारण. दरअसल, इस इलाके में नक्सल गतिविधियों की कमान संभाल रहे श्री राणा ने ना केवल खुद को मुख्यधारा में जोड़ा, बल्कि गांव में भी परिवर्तन की बयार बहा दी. गांव में सड़क बने इसके लिए खुद की जमीन दी, तो प्राथमिक विद्यालय के निर्माण में कोई बाधा नहीं आये, इसके लिए सबके साथ खुद भी श्रमदान किया. कल तक जिनके नाम से गांव में दहशत का माहौल बनता था, दूसरे इलाके के लोग आना नहीं चाहते हैं, उसे ही कृषि विभाग ने प्रगतिशील किसान के रूप में सम्मानित किया.

क्या था रामचंद्र राणा पर आरोप

पुलिस फाइलों में एरिया कमांडर के रूप में रामचंद्र राणा का नाम दर्ज है. इन पर माओवादी हिंसा के आठ मामले दर्ज थे. इन पर जो आरोप थे उनमें वर्ष 2001 में तोपचांची प्रखंड परिसर में 13 जैप जवानों की हत्या, हथियार लूट, एक जमींदार की हत्या और पुलिस पर हमले की वारदात समेत अन्य मामले दर्ज थे. श्री राणा अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत बताते हैं.

गांव की बदल रही सूरत

प्रभात खबर की टीम जब चुनुकडीहा गांव पहुंची, तो कई लोग पास आ गये. उन लोगों ने बताया कि गांव की सूरत बदल रही है. पक्की सड़क बन गयी है. बिजली भी है, पर रोजगार चाहिए़, ताकि यहां के लोगों को काम करने के लिए बाहर नहीं जाना पड़े. इन्हीं कच्चे व पक्के रास्ते होकर टीम चुनुकडीहा पहुंची.

कहते हैं रामचंद्र राणा : कोर्ट में पड़ने वाले हर तारीख पर लाते थे आम का पौधा

खेती किसानी के संबंध में श्री राणा ने बताया कि वह तीन एकड़ में खेती कर रहे हैं. इसमें 111 आम के पेड़ हैं. खेतों में सब्जी के अलावा धान की खेती करते हैं. बताते हैं कि माओवादी गतिविधियों को लेकर खुद पर दर्ज मामलों को लेकर उनको लगातार धनबाद के कोर्ट में हाजिरी लगाने जाना पड़ता था. वह जब भी कोर्ट जाते थे, तो कोर्ट मोड़ से एक आम का पौधा खरीद कर ले आते थे. उस पौधे को घर के पीछे खाली जमीन में लगा देते थे, आज उनके खेत में 111 आम के पेड़ हैं. इन पर जब फल आता है, तो उनको एक अनजानी से खुशी मिलती है.

16 माह रहे जेल में

रामचंद्र राणा ने बताया कि वर्ष 2001 में धनबाद के तत्कालीन एसपी गनी मीर ने उन्हें गिरफ्तार किया था. उसे तोपचांची थाना में रखा गया था. उस वक्त तोपचांची थाना के इंचार्ज अखिलेश कुमार थे. वह 16 माह तक जेल में रहा. मानवाधिकार की टीम ने भी मामले की जांच की थी. वह बताते हैं कि बाद में एक-एक कर सभी मामलों में वह बरी हो गये.

2014 से कर रहे खेती

उन्होंने बताया कि खेती के प्रति उनकी रुचि वर्ष 2014 के बाद बढी. आज परिवार के सहयोग से खेती करते हैं. फसल उनका बेटा अमर कुमार बाजार में ले जाकर बेचता है. उनका परिवार इसी खेती के बल चल रहा है. वह खुश होकर कहते हैं कि आज उसका नाम प्रगतिशील किसान के रूप में दर्ज है. वह कृषि विभाग से और सहयोग चाहते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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