Dhanbad News: झरिया राजागढ़ की पूजा का इतिहास 500 साल पुराना, डोम राजा से युद्ध जीतने पर राजा संग्राम सिंह ने शुरू की थी पूजा

Dhanbad News: झरिया के राजागढ़ की दुर्गा पूजा का इतिहास 500 साल पुराना है. राजा संग्राम सिंह ने डोम राजा से युद्ध जीतने पर राजागढ़ में पूजा की शुरुआत की थी.

By Prabhat Khabar News Desk | October 7, 2024 1:38 AM
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झरिया के राजागढ़ का दुर्गा मंदिर Dhanbad News: झरिया के राजागढ़ की दुर्गा पूजा का इतिहास 500 साल पुराना है. राजा संग्राम सिंह ने डोम राजा से युद्ध जीतने पर राजागढ़ में पूजा की शुरुआत की थी.

Dhanbad News: झरिया के राजागढ़ की दुर्गा पूजा का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है. राजा संग्राम सिंह ने डोम राजा से युद्ध जीतने पर राजागढ़ में पूजा की शुरुआत की थी. उनके बाद से राज परिवार परंपरा के अनुसार दुर्गापूजा का आयोजन करता आ रहा है. राजा संग्राम सिंह के बाद उनके वंशज राजा जयमंगल सिंह, राजा उदित नारायण सिंह, राजा रासबिहारी सिंह, राजा दुर्गा प्रसाद सिंह ने परंपरा को आगे बढ़ाया. राजा दुर्गा प्रसाद सिंह ने अपने कार्यकाल में राजागढ़ में मां दुर्गा का भव्य मंदिर, ठाकुरबाड़ी, कोठरी का निर्माण कराया था. इसके बाद से मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा होने लगी. इनके बाद राजा शिव प्रसाद सिंह व अंतिम राजा काली प्रसाद सिंह ने भी परंपरा का निर्वहन किया. वर्तमान में राजा काली प्रसाद के ज्येष्ठ पुत्र महेश्वर प्रसाद सिंह परंपरा को निभा रहे हैं. राजपरिवार की पुत्रवधू सुजाता सिंह व माधवी सिंह के अलावा जेपी सिंह, संजय कुमार सिंह आदि परिवार के लोग पूजा में शामिल होते हैं. पूर्व में राजा व उनके स्वजन बग्घी से पूजा करने मंदिर आते थे. यहां बांग्ला पंचांग के अनुसार षष्ठी से राजा परिवार के कुल पुरोहित पूजा कराते हैं. पहले यहां काड़ा की बलि होती थी. अब बकरे की बलि होती है.

राजा के हाथ से चिपक गयी थी तलवार

मध्य प्रदेश के रीवा से 18वीं सदी में चार राजा राज्य विस्तार को लेकर गिरिडीह के पालगंज आये थे. इसमें एक भाई पालगंज के राजा बने. इसके बाद तीन भाई पालगंज से निकल गये. दूसरा भाई नावागढ़, बाघमारा तथा तीसरा भाई कतरास के राजा बने. चौथे भाई संग्राम सिंह झरिया के डोम राजा व उनके वंशज को मारकर यहां के राजा बने. कहा जाता है कि चौथाई कुल्ही झरिया में डोम राजा के वंशज को मारने के बाद तलवार संग्राम सिंह के हाथ से चिपक गयी थी. राजा ने मां दुर्गा की आराधना कर बाएं हाथ से पुआ बनाकर भोग लगाया था. इसके बाद तलवार उनके हाथ से छूटी थी. उक्त घटना के बाद परिवार ने आजीवन राजागढ़ में पूजा करने का संकल्प लिया. उसी समय से राज परिवार यहां मां की आराधना करते आ रहा है.

आज भी कोठरी में पुआ बना मां को चढ़ाती हैं राजपरिवार की पुत्रवधू

झरिया राजा परिवार की पुत्रवधू पूर्वजों द्वारा 19वीं सदी में राजागढ़ में बनायी गयी कोठरी में सप्तमी के दिन से पुआ व घटरा पकवान बनाकर परंपरा के अनुसार मां दुर्गा को भोग लगाती हैं. सप्तमी से दशमी तक मंदिर में तीन दिन व रात अखंड दीप जलता है. महाअष्टमी को बलि दी जाती है. दुर्गा मंदिर परिसर में नवमी को बलि दी जाती है. दशमी को मां की दुर्गा की प्रतिमा को कंधे पर ले जाकर राजा तालाब में विसर्जित किया जाता है.

वर्तमान में पुजारी अजय बनर्जी कराते हैं पूजा

राजागढ़ दुर्गापूजा समिति के लोग पूजा की तैयारी में जुटे हैं. मंदिर के पहले पुजारी पुरुलिया के माणिक मुखर्जी थे. उनके बाद उन्हीं के परिवार के गोपालचंद्र बंद्योपाध्याय, सव्यसाची बनर्जी व अमर बंद्योपाध्याय पुजारी थे. वर्तमान में अजय बनर्जी यहां पूजा कराते हैं.

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