Jharkhand Election 2024, धानबाद: कभी कोयलांचल की राजनीति में अपनी अलग हस्ती रखने वाली मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) इस बार चुनाव नहीं लड़ेगी. 47 वर्ष बाद धनबाद के किसी चुनाव में मासस के प्रत्याशी नहीं होंगे. ऐसा इसलिए कि मासस का विलय अब भाकपा माले में हो चुका है. पिछले विधानसभा चुनाव में धनबाद जिला से मासस सहित पूरे वाम दलों का सफाया हो गया था. इस बार ज्यादा संभावना है.
वाम दल महागठबंधन का हिस्सा हो कर चुनाव लड़े. सिंदरी व निरसा विधानसभा सीट पर माले दावेदारी कर रही है. मासस के लिए यहीं दोनों सीट वर्चस्व बनाये रखने में मददगार रहा. लेकिन, कोयलांचल में भाजपा के मजबूत होने के बाद यहां मासस की स्थिति कमजोर होने लगी. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद पार्टी सिंदरी कभी नहीं जीत पायी. जबकि निरसा में दो बार हार का सामना करना पड़ा है. मासस नेतृत्व ने यहां वाम ताकत को मजबूत बनाने के लिए भाकपा माले में विलय किया.
माले पहले से महागठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव लड़ चुकी है. इस बार दोनों सीट पर भाकपा माले के उम्मीदवार चुनावी मैदान में दिखेंगे. कारण है कि दोनों सीट पर मासस अपनी मजबूत पकड़ रखती है. सिंदरी विधानसभा सीट को 1995 के बाद मासस के हाथ नहीं आयी. लेकिन वह प्रतिद्वंदी के रूप में हमेशा खड़ा रहा है. वहीं निरसा सीट पर वाम का कब्जा रहा है. सिर्फ 2019 में यहां भगवा लहरा था.
मजदूर राजनीति ने दिलायी मासस को पहचान
मजदूरों की राजनीति ने मासस को पहचान दिलायी है. राजनीति के संत कहे जाने वाले एके राय पहली बार 1967 में ही माकपा से चुनावी राजनीति में आये. और जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. सिंदरी का यह पहला चुनाव था. पीडीआइएल में केमिकल इंजीनियर के रूप में कार्यरत एके राय नियमित रूप से मजदूरों के हक के लिए आवाज उठाते थे. 1969 में सीपीआइएम से जीत दर्ज किये. 1972 में मासस पार्टी का गठन होने के बाद 1990 से निरसा सीट पर गुरुदास चटर्जी ने जीत दर्ज की.
1977 में लोकसभा लड़ सांसद बने एके राय
जेपी आंदोलन के दौरान 1974 में एके राय ने सिंदरी विधायक पद से इस्तीफा देने वाले पहले विधायक थे. इसके बाद उन्होंने 1977 में पहली बार धनबाद लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर सांसद बने. वहीं सिंदरी विधानसभा का चुनाव आनंद महतो ने लड़ा था उन्होंने भी जीत दर्ज की. एके राय 1980 एवं 1989 में भी धनबाद से सांसद बने थे.
चार बार सिंदरी से विधायक रहे आनंद महतो
एके राय के सिंदरी विधानसभा सीट को छोड़ने के बाद आनंद महतो ने चार बार इस सीट से दर्ज की है. पहली बार 1977 में, 1980 में, 1985 में मासस समर्थित बिनोद बिहारी महतो, इसके बाद 1990 व 1995 आनंद महतो ने जीत दर्ज किये. इसके बाद इस सीट पर प्रतिद्वंदी के रूप में रहे है.
निरसा सीट पर मासस का रहा है दबदबा
निरसा विधानसभा सीट पर 1977 से वाम का दबदबा रहा है. इसमें अधिकांश बार मासस ने जीत दर्ज की है. 1990 से 2019 तक आठ बार चुनाव हुआ है. इसमें से एक उप चुनाव शामिल है. छह बार मासस के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है. एक बार फॉरवर्ड ब्लॉक और एक बार भाजपा जीती है. फॉरवर्ड ब्लॉक से भी अर्पणा सेन गुप्ता और भाजपा में शामिल होने के बाद 2019 में भी अर्पण सेन गुप्ता ने जीत दर्ज की है.
1990 गुरूदास चटर्जी मासस, 1995 गुरूदास चटर्जी मासस, 2000 गुरूदास चटर्जी मासस, गुरुदास चटर्जी की हत्या के बाद 2000 हुए उपचुनाव में उनके पुत्र अरूप चटर्जी मासस, 2005 अपर्णा सेनगुप्ता फॉरवर्ड ब्लॉक, 2009 अरूप चटर्जी मासस, 2014 अरूप चटर्जी मासस, 2019 में अपर्णा सेनगुप्ता भाजपा से जीत दर्ज की है.