पारदर्शिता का अभाव बन रहा काल, आम लोगों के लिए बनी व्यवस्था अब आम लोगों की बात नहीं करती- जीवेश रंजन सिंह

पुटकी में कोलियरी के विस्तार के लिए पेड़ काटने को लेकर टकराव और उपेक्षा की वजह से जिला परिषद की परिसंपत्तियां बन गयीं डेड एसेट... ये दो ज्वलंत उदाहरण हैं जो बताते हैं कि पारदर्शिता का अभाव काल बन रहा है.

By Prabhat Khabar News Desk | May 7, 2023 2:45 PM

जीवेश रंजन सिंह

वरीय संपादक, प्रभात खबर

– पुटकी में कोलियरी के विस्तार के लिए पेड़ काटने को लेकर टकराव

– उपेक्षा की वजह से जिला परिषद की परिसंपत्तियां बन गयीं डेड एसेट

ये दोनों मुद्दे अभी चर्चा में हैं. दरअसल यह विभिन्न सरकारी विभागों के कामकाज और समन्वय का ज्वलंत उदाहरण हैं. सभी जानते हैं कि बिना विस्तार के किसी भी कोलियरी का भविष्य नहीं, पर विस्तार विधिसम्मत और समन्वय के आधार पर होना जरूरी है. लेकिन पुटकी के संबंध में दोनों का ही अभाव रहा. नतीजतन यहां पेड़ काटने के लिए गये बीसीसीएल के कर्मियों के साथ मारपीट, ग्रामीणों पर केस-मुकदमा ने आपसी विश्वास खत्म करने के साथ उस इलाके का माहौल गर्मा रखा है. विवाद के साथ पड़ रही इस विस्तार की नींव के बल भविष्य कैसा होगा यह सोचा जा सकता है.

जिला परिषद की करोड़ों की परिसंपत्तियां बनी खंडहर

दूसरा मामला जिला परिषद की करोड़ों की परिसंपत्तियों के खंडहर बनने का है. ये सभी संपत्तियां सरकारी पैसे, यानी आम जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई (टैक्स) से बनी हैं, पर अधिकांश बरबाद हो रही हैं. ऐसा क्यों हुआ यह बताने की स्थिति में भी कोई नहीं. साहबों की तो बात ही अलग है. उनकी आस्था तो कुर्सी बदलने तक ही रहती है, पर जिला परिषद से जुड़े वैसे जनप्रतिनिधि भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं हैं, जो आम आवाम के बीच से आते हैं या फिर उनके लिए जीने-मरने का दावा करते हैं.

आम लोगों के लिए बनी व्यवस्था अब आम लोगों की बात नहीं करती

धनबाद से जुड़े ये मामले उदाहरण मात्र हैं. सच यह है कि यही स्थिति कमोबेश हर जगह है. दरअसल, बदल रहे माहौल में आम लोगों के लिए बनी व्यवस्था अब आम लोगों की बात नहीं करती. इसी कारण अब विश्वास का भी संकट हो गया है. यही कारण है कि अब सामंजस्य की जगह टकराव की सूचनाएं ज्यादा आने लगी हैं. कहीं पानी के लिए, तो कहीं बिजली के लिए या फिर वैसी सामान्य बातों के लिए भी टकराव की स्थिति दिखने लगी है, जिन्हें आराम से सुलझाया जा सकता है.

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और अंत में..

पारदर्शिता की कमी से ही भ्रष्टाचार, उत्पीड़न और संसाधनों के कुप्रबंधन का जन्म होता है. इसे प्रश्रय आम लोग और व्यवस्था के बीच के भरोसे काे तोड़ना है. इसे दूर किया जा सकता है पर इसके लिए पहल शीर्ष से हो और भागीदारी आम से लेकर खास तक की हो. अगर ऐसा हो सका तो कई चीजें बदल जायेंगी, क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब ने भी कहा था : ऐसी परिस्थितियां कभी नहीं होतीं कि आप अपने मूल्यों को न संभाल सकें.

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