जीवेश रंजन सिंह
वरीय संपादक, प्रभात खबर
हाल ही धनबाद, गिरिडीह व बोकारो के विभिन्न इलाकों में जाने का मौका मिला. इस दौरान लोगों से मेल-मुलाकात में लगभग एक समान समस्याओं की कहानी सुनने को मिली. कहीं पानी का संकट, तो कहीं अंधेरे में डूबी गलियों की बात. सामान्य काम के लिए भी ढेर सारी मशक्कत. हद यह कि अधिकांश मामलों में चिरौरी व भाग-दौड़ के बाद भी कुछ ले-दे का फंडा ही काम आ रहा. कमोबेश यही बात आम है. अगर कहीं किस्मत से ऊपर बैठा बाबू ठीक निकला, तो वहां नीचे के बाबुओं ने मोर्चा संभाल रखा है.
दरअसल, शासन को सुगम और जन-जन तक पहुंचाने का गांधी जी का सपना भी बदलाव के इस दौर में बदल सा गया है. अब जब नगर व गांव सरकार ने अपनी अलग ही बादशाहत कायम कर ली है, तो दूसरे विभागों का क्या कहना. कागजों पर कुछ और हकीकत में कुछ और का दौर चल गया है. संक्रमण के इस काल में जनता जनार्दन वाली परिकल्पना केवल चुनावों तक सिमट कर रह गयी है.
संदर्भवश, गिरिडीह के राजधनवार प्रखंड निवासी धर्मेंद्र कुमार बेंगलुरु में काम करते हैं. उनकी जमीन राजधनवार में है. उस पर कब्जा की कोशिश जारी है. उन्होंने संबंधित थाना में आवेदन भी दिया. एक तरफ जमीन, दूसरी तरफ नौकरी का दर्द समेटे पुलिसिया कार्रवाई का इंतजार कर वह लौट गये, पर हुआ कुछ नहीं. कब्जा करने वाला ज्यादा जुगाड़ू है और उन्हें विश्वास है कि उनकी जमीन सुरक्षित नहीं रहेगी. फोन पर उन्होंने जो कुछ बताया उससे लगा कि रोटी (नौकरी) और माटी (घर-जमीन) के बीच पिसते आम आदमी का दर्द क्या होता है. पर इससे किसी को क्या मतलब. विकास की दौड़ में आज सबसे ज्यादा जमीन कब्जा की शिकायतें ही आम हैं.
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अपने आसपास की गतिविधियों का अगर आकलन करें तो इन सबका जवाब एक ही मिलता है, खुद को सुप्रीमो साबित करने और नहीं बदलने की जिद. कुछ ऐसी ही स्थिति में आ गये हैं आज हमारे जवाबदेह. समझने-समझाने की जगह बताने और दिखाने में उनका विश्वास ज्यादा है. इस पर काबू पाये बिना कुछ भी संभव नहीं.
नेल्सन मंडेला ने कहा था : जब तक मैं खुद को नहीं बदलूंगा, मैं दूसरों को नहीं बदल सकता.
आज मकर संक्रांति है और इसका भारतीय ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं में बड़ा ही महत्व है. कहते हैं इस दिन स्वर्ग के दरवाजे खुलते हैं और देवताओं का दिन आरंभ होता है. दरअसल सूर्य उत्तरायण होते हैं और सब कुछ शुभ होता है. ऐसे में आशा करें कि आज इस मानसिक व व्यावहारिक संक्रांति का दौर भी समाप्त होगा और संकटों से जूझ रहे आम आदमी के सूर्य भी उत्तरायण होंगे.