एक ओर कोयले के अभाव में झारखंड का हार्डकोक उद्योग संकट में है. लिंकेज समाप्त होने के बाद एक के बाद एक कई हार्डकोक भट्ठे बंद हो गये हैं. वहीं कई बंदी के कगार पर हैं. दूसरी तरफ, यूपी व बिहार में सिर्फ कागज पर चल रही कई फैक्ट्रियों (उद्योग) को आज भी लिंकेज के माध्यम से रियायती दर पर कोयला आवंटित किया जा रहा है. यह कोयला फैक्ट्रियों के बजाय सीधे यूपी-बिहार की मंडियों में पहुंच रहा है. ऐसा करने से ना सिर्फ कोल कंपनी बीसीसीएल-सीसीएल, बल्कि राज्य सरकार को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है. बताते चलें कि वर्ष 2019 में फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट समाप्त होने के बाद से झारखंड के हार्डकोक उद्योग को लिंकेज का कोयला नहीं मिल रहा है. फॉरवर्ड ऑक्शन के माध्यम से उद्यमी कोयला बुकिंग तो करा रहे हैं, लेकिन बिडिंग में दूसरे स्टेट व उद्योग के बिडरों के हिस्सा लेने से कोयले का प्राइस इतना अधिक बढ़ जा रहा है कि हार्डकोक उद्योग को जिंदा रखना मुश्किल हो गया है. वहीं यूपी-बिहार स्टेट माइनिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा आवंटित लिंकेज का कोयला खुले बाजार में बिक्री होने से ना सिर्फ हार्डकोक उद्योग, बल्कि डीओ होल्डरों के समक्ष भी समस्या उत्पन्न हो गयी है. हार्डकोक उद्यमी या डीओ होल्डर जितने में इ-ऑक्शन के माध्यम से कोयले की खरीदारी करते हैं, उतनी कीमत पर यूपी-बिहार के लिंकेज होल्डर कोयला खुले बाजार में बेच दे रहे हैं. इससे कोल कंपनियों के साथ-साथ झारखंड सरकार को भी राजस्व के रूप में बड़ा आर्थिक नुकसान हो रहा है. जबकि लिंकेज होल्डर व संबंधित कोयला अधिकारी मालामाल हो रहे हैं. इसकी सही से जांच हो तो कई अधिकारी व लिंकेज होल्डरों की गर्दन फंस सकती है.
बीसीसीएल की पांच कोलियरियों से मिला है 30 हजार टन का आवंटन : वर्तमान में बिहार स्टेट माइनिंग कॉरपोरेशन द्वारा बीसीसीएल की पांच प्रीमियम कोलियरियों से 30 हजार टन कोयले का आवंटन मिला है. इसमें आठ हजार टन धनसार, आठ हजार टन वेस्ट मोदीडीह, सात हजार टन निचितपुर, 4000 टन कुसुंडा व 3000 टन कोयले का आवंटन कुइंया कोलियरी में दिया गया है.चढ़ावा से मिलता है प्रीमियम कोलियरी का आवंटन
: सूचना के मुताबिक, बीसीसीएल की प्रीमियम कोलियरी व कोयला के लिए लिंकेज होल्डरों को पहले चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है. तभी उन्हें यूपी व बिहार स्टेट माइनिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा कोयले का आवंटन प्राप्त होता है. जानकार 300 से 500 रुपये प्रति टन तक चढ़ावा चढ़ाने की बात कहते हैं. सिर्फ बीसीसीएल की बात करें, तो कंपनी की विभिन्न कोलियरियों से हर माह यूपी-बिहार माइनिंग के नाम पर करीब 38-40 हजार टन लिंकेज कोयले का उठाव होता है. इसमें 8-10 हजार टन यूपी माइनिंग व 30 हजार टन बिहार माइनिंग के नाम पर बीसीसीएल के विभिन्न कोलियरी क्षेत्रों से उठाव होता है, जो चर्चा का विषय बना हुआ है. चर्चा है कि गुल फैक्ट्री के नाम पर स्टीम कोयले की आपूर्ति की जा रही है, जबकि इसके लिए स्लरी की आवश्यकता होती है.लिंकेज होल्डरों को मिलती है 90 दिनों की वैधता :
बीसीसीएल से इ-ऑक्शन के माध्यम से कोयले की खरीदारी करने वाले हार्डकोक उद्यमी या डीओ होल्डर फ्लोर प्राइस से करीब 25 प्रतिशत तक प्रीमियम राशि भुगतान कर कोयले की खरीदारी करते हैं. कोल कंपनियां उन्हें कोयला उठाव के लिए 45 दिनों की वैधता देती हैं, जबकि यूपी व बिहार स्टेट माइनिंग कॉरपोरेशन के माध्यम से लिंकेज होल्डर, जिन्हें रियायत दर यानी फ्लोर प्राइस पर कोयला मिलता है, उन्हें कोयला उठाव के लिए 90 दिनों तक की वैधता मिलती है. कोल कंपनियों के इस नियम-शर्त का भी उद्यमी विरोध कर रहे हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है