आइआइटी आइएसएम के शोधकर्ताओं की विकसित की तकनीक, विमान के शोर को कम करेगा नेक्सट जेनेरेशन एयर फाॅयल
इस नयी तकनीक से विमान का शोर चार डेसीबल तक हो जायेगा कम, यह तकनीक आने वाली पीढ़ी के विमानों में इस्तेमाल की जाती है.
आइआइटी आइएसएम के शोधकर्ताओं ने विमानों के शोर को कम करने की नेक्सट जेनेरेशन एयर फाॅयल तकनीक विकसित की है. आइआइटी आइएसएम के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रो डॉ सुब्रमण्यम नारायणन के नेतृत्व में रिसर्च स्कालर्स की टीम ने इसे विकसित किया है. शोर कम करने वाली यह तकनीक आने वाली पीढ़ी के विमानों में इस्तेमाल की जाती है. टीम द्वारा विकसित एयर फायल्स का अधिकतर प्रयोग विंड टर्बाइन ब्लेड, पंखे के ब्लेड, ओपन रोटर, एयर क्राफ्ट विंग आदि में होता है. आइआइटी आइएसएम की टीम ने नेक्सट जेनरेशन में तकनीक में वेव लीडिंग एज (एलइ) और ट्रेलिंग एज (टीइ) एयर फायल्स का डिजाइन विकसित किया है.
उल्लू के उड़ने की तकनीक से मिली प्रेरणा
: रिसर्च टीम को इस तकनीक का आइडिया उल्लू के खामोशी से उड़ने की तकनीक से मिली. इस तकनीक में बार्न उल्लू के पंख की बायोमिमिक्री यानी जैविक नकल की गयी है. इससे विमान के शोर में उल्लेखनीय कमी लाने में मदद मिली है. यह कम, मध्यम और उच्च लोडिंग स्थितियों में प्रभावी है. इस तकनीक में विमान के टर्बाइन में लगे पंखे की डिजाइन में बदलाव किया गया है.एयरफायल्स पर दांतेदार एलई और टीई लगाया जाता : प्रो. नारायणन ने अपनी खोज के बारे में बताते हुए कहा कि अकूस्टिक रेडिएशन में कमी लाने और इस प्रकार के वाइड रेंज की फ्रीक्वेंसी पर शोर को कम करने के लिए एयर फाॅयल के एलइ और टीइ पर एक साथ प्रयास पहले नहीं किया गया. यह इस दिशा में पहला प्रयास है. लेटरल एज सेरेशंस एयर फाॅयल टर्बुलेंस इंटरैक्शन शोर को कम करने के लिए एक निष्क्रिय साधन है, जबकि टीई सेरेशंस स्व-शोर को कम करता है. अग्रणी किनारा एयरफायल का अगला भाग है, जबकि अनुगामी किनारा एयरफायल का पीछे का भाग है. पहले के अध्ययनों से पता चला कि अग्रणी और अनुगामी किनारे के एरोडाइनैमिक शोर को कम करता है. साथ ही, एयरफायल्स पर सबसे अच्छा दांतेदार एलई और टीई लगाया जाता है, ताकि कम शोर वाले नेक्स्ट जेनरेशन के एयरफायल्स बनाये जा सकें. प्रो नारायणन ने बताया की इससे छह किलो हर्ट्ज की रेडिएशन में लगभग दो डेसिबल शोर की कमी होती है और 10 किलो हर्ट्ज की रेडिऐशन में लगभग चार डेसिबल शोर की कमी होती है. इस अनूठी खोज के बाद यहां के शोधकर्ताओं की टीम अब ऐसी डिजाइन बनाने पर काम कर रही है, जो शार्क की त्वचा के रिबलेट्स, डिंपल्स और दांतों की बायोमिमेटिक विशेषताओं को शामिल करेंगे.
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