धनबाद : अग्नि प्रभावित झरिया के रिहायशी इलाकों में प्रॉपर्टी बाजार बूम पर है. कतरास मोड़, मेन रोड सहित शहर के ऐसे कई इलाके हैं, जहां लोगों को मनपसंद दुकान या घर नहीं मिल रहा है. पोस्ट कोरोना में यहां जमीन, मकान एवं दुकान की कीमतों में भारी वृद्धि देखी जा रही है. यह अलग बात है कि यहां रियल एस्टेट का अधिकांश कारोबार रजिस्टर्ड डीड की बजाय नन ज्यूडिशियल स्टांप पेपर पर एग्रीमेंट कर हो रहा है. इससे राज्य सरकार को स्टांप ड्यूटी मद में राजस्व का भारी नुकसान होता है.
झरिया जल रही है.यह धंस रही है. अगले कुछ वर्षों में झरिया जमींदोज हो जायेगी. इस तरह की बातें खूब होती हैं. आमतौर कहा जाता है कि लोग झरिया अंचल के कतिपय इलाकों में निवेश नहीं करना चाहते. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. रियल सेक्टर के सक्रिय कारोबारियों की मानें तो पिछले एक वर्ष के दौरान यहां करोड़ों रुपये का कारोबार हुआ है.
कानूनी दांव-पेच से बचने के लिए लोग रजिस्ट्री या दाखिल-खारिज के चक्कर में नहीं पड़ते. सौदा तय होते ही नन ज्यूडिशियल स्टांप पेपर पर सौदा कर लेते हैं. झरिया अंचल के बस्ताकोला से लेकर जोड़ापोखर तक कोल बीयरिंग एरिया में अधिकांश जमीन बीसीसीएल, टिस्को, सेल, सीएफआरआइ की है. एफसीआइएल सिंदरी के लिए अधिग्रहीत 6800 एकड़ से अधिक जमीन में करीब 60 फीसदी जमीन भी झरिया अंचल में ही है. इन इलाकों में गैर आबाद खाता की जमीन भी काफी है. इस कारण अधिकांश क्षेत्रों में जमीन, मकान, दुकान की आधिकारिक खरीद-बिक्री नहीं के बराबर होती है.
सूत्रों के अनुसार, नन ज्यूडिशियल स्टांप पेपर के जरिये होने वाली खरीद-बिक्री में एक प्रमुख शर्त होती है कि अगर भविष्य में जिला प्रशासन या कोई कोयला कंपनी जमीन खाली कराती है, तो बेचने वाला कोई दावा नहीं करेगा. क्रेता ही इस जमीन के बदले मिलने वाले मुआवजा या नौकरी के लिए दावा कोगा. जबकि हकीकत यह है कि जमीन या मकान के बदले मुआवजा या नौकरी का लाभ सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार ही होगा.
सूत्रों के अनुसार, फूसबंगला से सिंदरी के बीच जमीन, मकान की बिक्री रजिस्टर्ड डीड के जरिये हो रही है. इन क्षेत्रों में हाल सर्वे प्रकाशित हो चुका है. ऐसी प्रोपर्टी की जमाबंदी भी हो रही है. झरिया शहरी क्षेत्र में जो जमीन या मकान पुरानी रैयती है, की बिक्री होती है. लेकिन इसकी संख्या नहीं के बराबर है.
बिना रजिस्टर्ड डीड के खरीद की जाने वाली जमीन पर हाउसिंग लोन नहीं मिलता है. नियमों के तहत रजिस्टर्ड डीड को ही मॉरगेज किया जा सकता है. ज्यादातर खरीदारी कैश में हो रही है. कतिपय लोग डील का कुछ हिस्सा चेक से भी देते हैं. यहां का कुछ इलाका रेड जोन में आता है.
झरिया के धर्मशाला रोड में एक कारोबारी ने लगभग दो वर्ष पूर्व 35 लाख रुपये में एक पुराना भवन खरीदा. उस भवन की री-मॉडलिंग करा आठ फ्लैट बनाये और कुछ दिनों पूर्व 10-10 लाख रुपये में उसे बेच दिया. इसी इलाके में एक पुराने भवन को 50 लाख में खरीद कर मैरिज हॉल में तब्दील कर दिया गया.
इस तरह का काम खूब हो रहा है. कतरास मोड़, फतेहपुर, हेटलीबांध, कोइरीबांध, झरिया मेन रोड, बाटा मोड़, गुजराती मुहल्ला, पोद्दारपाड़ा, राजबाड़ी रोड में मकान, दुकानों की खूब मांग है. इन इलाकों में जमीन की सरकारी दर साढ़े तीन लाख रुपये कट्ठा है, जबकि बिक्री पांच लाख रुपये प्रति कट्ठा से कम में नहीं हो रही है. मुख्य इलाकों को छोड़ अंदर के क्षेत्रों में प्रति कट्ठा जमीन की कीमत एक से दो लाख रुपये चल रही है.
झरिया के व्यवसायियों के अनुसार जमीन-मकान में निवेश लॉन्ग टर्म के तहत होता है. ज्यादातर लोग दुकान व मकान किराया पर लगाने के उद्देश्य से खरीद रहे हैं. बेचने वालों में वैसे लोग हैं, जो भू-धंसान, प्रदूषण के कारण झरिया छोड़ना चाहते हैं या जिन्होंने धनबाद जिला में किसी दूसरे स्थान पर घर खरीद लिया है.
झरिया अंचल में आठ हल्का में 58 मौजा है. इनमें से 48 मौजा में हाल सर्वे हो चुका है, जबकि 10 मौजा में सर्वे नहीं होने के चलते अंतिम सर्वे में दर्ज रिकॉर्ड के अनुसार ही काम हो रहा है. जिन हल्कों में सर्वे नहीं हुआ है, उसमें अधिकांश झरिया के शहरी क्षेत्र ही हैं. पुराने सर्वे में कई ऐसी रैयती जमीन है, जो गैरआबाद खाता के रूप में अंकित है. ऐसे लोग अपनी जमीन या मकान व दुकान को चाह कर भी सरकारी प्रक्रिया के तहत नहीं बेच पाते हैं.
झरिया अंचल में वैसे इलाकों में जमीन का दाखिल-खारिज नहीं हो रहा है, जो भू-धंसान प्रभावित क्षेत्र में आते हैं. साथ ही बीसीसीएल, सिंफर, सेल, एफसीआइएल सिंदरी व टिस्को के नाम पर जो जमीन निबंधित या अधिग्रहीत है, का भी म्यूटेशन नहीं होता है. जो जमीन पहले से रैयती खाता की है, उसकी खरीद-बिक्री या म्यूटेशन में कोई परेशानी नहीं है.
परमेश्वर कुशवाहा, सीओ, झरिया
Posted BY: Sameer Oraon