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झारखंड प्रांत की राजनीति में एक ऐसा भी वक्त आया था, जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री हिल गए थे. उन्हें अपने राजनीतिक सचिव पीआर चक्रवर्ती को चुनाव लड़ने के लिए धनबाद भेजना पड़ा था. ये वो जमाना था, जब चुनाव लड़ने वालों की इज्जत होती थी. सम्मानित लोग चुनाव लड़ने के लिए आगे आते थे.
धनबाद के निरसा से 3 बार विधायक बने कृपा शंकर चटर्जी
प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) के वरिष्ठ पत्रकार संजीव झा के साथ खास बातचीत में निरसा के 3 बार विधायक रहे कृपा शंकर चटर्जी ने ये बातें कहीं. कृपा शंकर चटर्जी 2 बार मासस के टिकट पर विधायक चुने गए. एक बार वह कांग्रेस के टिकट पर चुनकर बिहार विधानसभा पहुंचे. उन्होंने 1952 और उसके बाद के कई चुनावों की कहानी हमें बताई. इसमें उन्होंने बताया कि तब किस तरह के लोग राजनीति में आते थे, चुनाव लड़ते थे.
मासस और कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने थे कृपा शंकर चटर्जी
कांग्रेस के जिला अध्यक्ष, मजदूर यूनियन के नेता और बिहार प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री रहे कृपा शंकर चटर्जी कहते हैं कि पहले ऐसे लोग चुनाव लड़ते थे, जिनका लोग दिल से सम्मान करते थे. ऐसे ही लोग चुनाव लड़ने का सपना भी देखते थे. उन्होंने बताया कि 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में हुआ, तो प्रभात चंद्र बोस जैसे लोग चुनाव जीतकर सांसद बने.
डीवीसी ने बनाए 4 डैम, विरोध से हिल गए थे जवाहर लाल नेहरू
उन्होंने दामोदर वैली कॉर्पोरेशन (डीवीसी) की ओर से एक साथ 4 डैम बनाने के बाद उत्पन्न हुए हालात के बारे में भी बताया. उन्होंने बताया कि जब मैथन, कोनार और पंचेत समेत 4 डैम बनाए जाने की वजह से बड़ी संख्या में लोग बेघर हुए. विस्थापन के बाद एसआरसी (स्टेट री-ऑर्गेनाइजेशन कमीशन) ने फजर अली कमीशन, पणिक्कर कमीशन, बिंजू कमीशन का गठन किया. इससे नेहरू जी हिल गए. इसके बाद ही पंडित नेहरू ने अपने राजनीतिक सचिव पीआर चक्रवर्ती को चुनाव लड़ने के लिए धनबाद भेजा.
गांवों में वोट के प्रति नहीं थी जागरूकता
हमारे जमाने में गांवों में बहुत जागरूकता नहीं थी. चुनाव के दौरान भाषा और बोली बहुत बड़ी बाधा थी. आज भी संताल परगना और धनबाद में अलग-अलग भाषा में खतियान लिखी जाती है. यहां के लोग बांग्ला बोलते थे, खोरठा भी बोलते थे. उन्होंने बताया कि राज्यों का जब बंटवारा हुआ, तो बांग्ला बोलने वाले लोग बड़ी संख्या में थे, जो पुरुलिया चले गए.
अकबर ने वीर मान सिंह को झारखंड में दी थी बड़ी जागीर
उन्होंने बताया कि आज बहुत से लोगों को नहीं मालूम कि मानभूम कोई जिला भी था. लेकिन, यह था. उन्होंने बताया कि सम्राट अकबर के राज में वीर मान सिंह को जागीर के रूप में बड़ा भू-भाग मिला था. इनके नाम पर ही वीरभूम, मानभूम और सिंहभूम बने. राजा वीर मान सिंह से ही ये तीनों इलाके निकले हैं. वीर से वीरभूम, मान से मानभूम और सिंह से सिंहभूम.
रामगढ़ की महारानी ललिता राजलक्ष्मी ने लड़ा था धनबाद से चुनाव
उन्होंने बताया कि पीआर चक्रवर्ती के बाद रामगढ़ की महारानी ललिता राजलक्ष्मी ने धनबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा. वह बीकेटी के टिकट पर चुनाव लड़ीं. इसी दौरान स्थानीय राजनीति शुरू हुई. रामगढ़ की महारानी के चुनाव के प्रचार की कमान झरिया और कतरास के राजाओं ने संभाली थी. ललिता राजलक्ष्मी ने प्राण प्रसाद के खिलाफ चुनाव लड़ा था.
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