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थैलेसीमिया पीड़ित मासूमों की मुस्कान हैं धनबाद के रक्तवीर

वर्ल्ड थैलेसीमिया डे पर विशेष : जिले में 250 से ज्यादा है थैलेसीमिया पीड़ितों की संख्या, पर इलाज की नहीं व्यवस्था

वरीय संवाददाता, धनबाद,

थैलेसीमिया बीमारी से ग्रसित मासूमों को खून की पूरी करने, उनके चेहरे पर मुस्कान को बरकरार रखने के लिए हर साल आठ मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जाता है. खून की कमी इस बीमारी का मुख्य लक्षण है. ऐसे में हर माह बीमार बच्चे को रक्त की आवश्यकता होती है. रक्त की आवश्यकता को पूरी करने के लिए धनबाद में ऐसे रक्तवीर हैं, जो नि:स्वासर्थ भाव से जरूरत पर रक्तदान करने पहुंचते हैं. कई बार एसएनएमएमसीएच ब्लड बैंक में थैलेसीमिया से ग्रसित मरीजों के पहुंचने पर प्रबंधन भी इन रक्तवीरों की मदद लेता है. आइए जानते है कुछ ऐसे रक्तदाताओं के बारे में, जो सच में थैलेसीमिया बच्चों के लिए रक्तवीर से कम नहीं हैं.

वासेपुर की बेनजीर 15 साल से कर रही हैं रक्तदान :

वासेपुर की बेनजीर परवीन विगत 15 साल से रक्तदान कर जरूरतमंदों की रक्त की कमी को दूर कर रही हैं. अबतक वह 43 बार रक्तदान कर चुकी हैं. 20 से अधिक बार थैलेसीमिया मरीजों के लिए रक्तदान किया है. कई थैलेसीमिया मरीज समय-समय पर रक्त के लिए इनसे संपर्क करते है. कभी खुद, तो कभी दूसरों की मदद से बेनजीर मरीजों के लिए खून उपलब्ध कराती हैं.

रक्त की कमी न हो इसलिए इरशाद लगाते हैं रक्तदान शिविर :

थैलेसीमिया से ग्रसित मरीजों को रक्त की कमी न हो इस लिए नया बाजार के इरशाद आलम और उनकी टीम लगी रहती है. थैलेसीमिया मरीजों के लिए अबतक 11 बार रक्तदान शिविर लगाया गया है. इसके अलावा वह खुद भी 15 बार थैलेसीमिया मरीजों को रक्त दे चुके हैं. इरशाद खुद शहबाज सिद्दिकी मेमोरियल ब्लड डोनर संगठन चलाते हैं. इसके माध्यम से मरीजों को एंबुलेंस व दवाएं भी मुहैया करायी जाती है.

15 थैलेसीमिया मरीजों को दे चुके हैं रक्त :

गोधर के रहने वाले बंटी विश्वकर्मा पिछले पांच सालों से रक्तदान कर रहे हैं. अबतक इन्होंने 24 बार रक्तदान किया है. इसमें 15 थैलेसीमिया मरीज भी शामिल है. रक्त के लिए थैलेसीमिया मरीज के पहुंचने पर वे उनको प्राथमिकता देते हैं. बंटी के रक्तदान का सिलसिला लगातार जारी है.

कतरास के अंकित 57 बार कर चुके हैं रक्तदान :

कतरास निवासी अंकित रजगढ़िया 57 बार जरूरतमंदों को रक्तदान कर चुके हैं. इसमें से आधे से ज्यादा बार इन्होंने थैलेसीमिया पीड़ितों को अपना रक्त दिया है. एसएनएमएमसीएच में रजिस्टर्ड कई मरीज इनके संपर्क में रहते हैं. रक्त की आवश्यकता होने पर मरीजों के परिजन इनसे संपर्क करते हैं. वे हर बार लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं. अंकित समय-समय पर ब्लड डोनेशन कैंप भी आयोजित किया जाता है.

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जिले में 250 से ज्यादा मरीज थैलेसीमिया से पीड़ित

भारत में हर साल 10 से 15 हजार ऐसे बच्चे पैदा होते हैं, जो जिनमें जन्मजात थैलेसीमिया बीमारी होती है. एसएनएमएमसीएच के ब्लड बैंक के आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में धनबाद में 250 से अधिक मरीज इस बीमारी से ग्रसित हैं. धनबाद समेत पूरे झारखंड में बीमारी के इलाज की व्यवस्था नहीं है. यहां तक कि जांच के लिए मरीज का ब्लड सैंपल दिल्ली भेजना पड़ता है. इसके लिए स्वास्थ्य विभाग को प्रति जांच के लिए एक हजार रुपये चुकाता है.

थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग : डॉ ओझा

एसएनएमएमसीएच के मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ यूके ओझा बताते हैं कि थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रोग है, जो माता अथवा पिता या दोनों के जीन में गड़बड़ी के कारण होता है. रक्त में हीमोग्लोबिन दो तरह के प्रोटीन से बनता है, अल्फा और बीटा. इन दोनों में से किसी प्रोटीन के निर्माण वाले जीन में गड़बड़ी होने पर व्यक्ति में बीमारी होती है.

दो प्रकार के होते हैं थैलेसीमिया

थैलेसीमिया माइनर

यह बीमारी उन बच्चों को होती है, जिन्हें प्रभावित जीन माता अथवा पिता द्वारा प्राप्त होता है. इस प्रकार से पीड़ित थैलेसीमिया के रोगियों में अक्सर कोई लक्षण नजर नहीं आता है.

थैलेसीमिया मेजर

यह बीमारी उन बच्चों को होती है, जिनके माता और पिता दोनों की जीन में गड़बड़ी होती है. यदि माता और पिता दोनों थैलेसीमिया माइनर हों, तो बच्चे को थैलेसीमिया मेजर होने का खतरा अधिक रहता है.

शादी से पहले युवक-युवती की जांच जरूरी

डॉ यूके ओझा ने बताया कि बीमारी की रोकथाम के लिए सबसे कारगर उपाय शादी से पहले युवक व युवती की स्वास्थ्य जांच. जांच में यह पता चल जाता है कि उनका स्वास्थ्य एक-दूसरे के अनुकूल है या नहीं. इसमें थैलेसीमिया, एड्स, हेपेटाइटिस बी, आरसी आरएच फैक्टर आदि की जांच जरूरी है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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