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पढ़ाई प्रतिनियोजन के भरोसे, तो बोरों में बंद दुर्लभ ग्रंथों पर मंडरा रहा नष्ट होने का खतरा

दुर्भाग्य : बेहाल है जिले का एकमात्र संस्कृत विद्यालय, गिरिडीह व धनबाद को मिला नामांकित हैं महज 10 बच्चे, नौवीं व दसवीं की होती है पढ़ाई

एचई स्कूल भिश्तीपाड़ा में है राजकीय संस्कृत उच्च विद्यालय. यहां वर्तमान में सिर्फ 10 बच्चे नामांकित हैं. इनमें से चार गिरिडीह के और छह धनबाद जिले के रहने वाले हैं. इस स्कूल में नौवीं व दसवीं (मध्यमा) तक की पढ़ाई होती है, लेकिन विभागीय उपेक्षा का हाल यह है कि यहां एक भी स्थायी शिक्षक नहीं हैं. प्रतिनियोजित एक शिक्षक यहां के बच्चों को पढ़ाते हैं. दो जिलों के बच्चों के लिए इस स्कूल में पढ़ाई की व्यवस्था है, पर उनके रहने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. हद तो यह है कि कई दुर्लभ ग्रंथ, किताबें व जरूरी कागजात बोरों में बंद हैं. इन पर नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है.

परिचितों के भरोसे बच्चों के रहने की व्यवस्था :

इस स्कूल में फिलहाल बाहर के चार ही बच्चे हैं, पर उनके रहने की भी पूरी व्यवस्था नहीं है. इससे उनके भी स्कूल छोड़ कर चले जाने का खतरा है. इस वजह से यहां प्रतिनियोजित शिक्षक ने कुछ बच्चों को अपने परिचित के घर रखने की व्यवस्था की है, ताकि इस संस्कृत विद्यालय की गरिमा बनी रहे.

पांच बच्चे थे उपस्थित :

बुधवार को जब प्रभात खबर की टीम 12.35 बजे दिन में वहां पहुंची, तो देखा कि छात्रों की संख्या कम होने के कारण वे एक ही क्लास रूम में बैठे थे. पर स्वास्थ्य कारणों से इकलौते शिक्षक नहीं आये थे. दूसरे कर्मी लेखापाल अपने रूम में थे. वही बीच-बीच में बच्चों को देख रहे थे. दरअसल, पता चला कि टाटा सिजुआ में पदस्थापित शिक्षक अर्जुन प्रसाद पांडेय प्रतिनियोजन पर संस्कृत विद्यालय में पदस्थापित हैं. श्री पांडेय इसी विद्यालय से पढ़े हैं. इसलिए उनका लगाव भी है. इस वजह से वह स्कूल आते हैं, पर सुविधाओं की कमी से कुछ खास नहीं कर पाते. अभी यहां कक्षा नौवीं में नामांकन जारी है. दसवीं कक्षा में सात बच्चे हैं, जो इसी साल नौवीं की परीक्षा पास किये हैं. नौवीं कक्षा में इस साल सिर्फ तीन बच्चों का नामांकन हो पाया है.

2019 में प्रोन्नति के बाद बदली व्यवस्था :

आरडीडी गोपाल कृष्ण झा वर्ष 2019 तक संस्कृत विद्यालय में प्रधानाध्यापक रहे. इसी वर्ष उन्हें डायट का प्रभारी बना दिया गया, फिर जिला शिक्षा पदाधिकारी और आरडीडी हैं. वह बताते हैं कि पहले खपड़े से छाये गये कमरे में विद्यालय का संचालन होता था. तब 17 कमरे थे. श्री झा के अनुसार झारखंड अलग राज्य बनने के बाद इस राज्य के हिस्से छह स्कूल आये. तब छठी कक्षा से नामांकन होता था और ज्यादा विद्यार्थी भी थे.

अभी यह पद हैं रिक्त :

संस्कृत विद्यालय में वैद्य, व्याकरण, ज्योतिष, साहित्य, हिन्दी, एसएसटी, गणित, विज्ञान, अंग्रेजी व क्षेत्रीय भाषा के शिक्षक के पद हैं. इसके अलावा प्रयोगशाला के लिए एक, लेखापाल व आदेशपालक का एक पद है. इस तरह कुल 14 पद हैं, लेकिन अभी सिर्फ लेखापाल व आदेशपालक के अलावा एक प्रतिनियोजित शिक्षक यहां हैं.

पौराणिक किताबें बोरों में :

विद्यालय में काफी पौराणिक किताबें, ग्रंथ और महत्वपूर्ण पांडुलिपियां हैं. एक आकलन के अनुसार 600 से 700 किताबें यहां मौजूद हैं, लेकिन अधिकांश बोराें में हैं. कुछ किताबें दराजों में है. इससे इनके नष्ट होने का खतरा है. वहीं दूसरी ओर यहां आइसीटी लैब व स्मार्ट क्लास भी है, लेकिन उनकी स्थिति बदहाल है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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