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पांच माह से मेडिकल कॉलेज के लैब में टीबी मरीजों की रेसिस्टेंस जांच बंद

एकमात्र महिला चिकित्सक के मेटरनिटी लीव पर चले जाने से लैब बंद

विक्की प्रसाद, धनबाद.

ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के मरीजों को उपलब्ध होने वाली चिकित्सा व्यवस्था का जिले में बुरा हाल है. जबकि, सरकार ने इस बीमारी के 2025 तक उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया है. टीबी के मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए हर माह लाखों रुपये खर्च किये जा रहे हैं. प्रभात खबर ने शनिवार को धनबाद के सिविल सर्जन कार्यालय परिसर में टीबी मरीजों के लिए बने डॉट प्लस सेंटर का हाल प्रकाशित किया था. विभागीय फेंकाफेकी में आज यह डॉट प्लस सेंटर दवा वितरण केंद्र में तब्दील हो चुका है. इसमें मरीजों को भर्ती लेने की व्यवस्था नहीं है. इसके अलावा जिले में टीबी की दवा भी समाप्त हो चुकी है. ऐसे में टीबी के मरीजों को काफी परेशानी हो रही है. शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसएनएमएमसीएच) में बने कल्चर एंड डीएसटी लैब में टीबी के गंभीर मरीजों में रेसिस्टेंस जांच के लिए साल 2017 में 4.5 करोड़ रुपये की लागत से लैब की शुरुआत की गयी. लगभग सात वर्ष का बाद भी सेंट्रल टीबी डिवीजन के नेशनल रिसर्च लेबाेरेट्री से लैब को क्वालिटी चेक एश्योरेंस सर्टिफिकेट नहीं मिल पाया है.

लैब में जांच भी बंद :

विगत पांच माह से कल्चर एंड डीएसटी लैब में जांच पूरी तरह बंद है. लैब की एकमात्र चिकित्सक के मैटरनिटी लीव पर चले जाने के बाद से लैब में टीबी मरीज के सैंपलों की जांच बंद कर दी गयी है. चिकित्सक कब लौटेंगी, इसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को नहीं है.

राज्य की दूसरी लैब, कई जिलाें काे मिलता है लाभ :

राज्य की पहली कल्चर एंड डीएसटी लैब रांची के इटकी में स्थापित है. वर्तमान में धनबाद समेत पूरे राज्य से वहीं सैंपल भेजे जाते हैं. रिपाेर्ट मिलने में देर होने से मरीजाें का इलाज प्रभावित हाेता है. धनबाद में दूसरा लैब तैयार है. इसका लाभ बोकारो, गिरिडीह, कोडरमा, हजारीबाग, देवघर, जामताड़ा, गोड्डा, पाकुड़ जिलों को भी होगा.

वेतन-मेंटनेंस में लाखों खर्च, लेकिन मरीजों को लाभ नहीं :

कल्चर एंड डीएसटी लैब के संचालन के लिए चिकित्सक, टेक्नीशियन व अन्य कर्मचारी मुहैया कराये गये. 2021 में जिला यक्ष्मा पदाधिकारी के निर्देश पर लैब काे मेडिकल काॅलेज के पैथाेलाॅजी विभाग के अधीन कर दिया गया. डाॅक्टर-कर्मियों के वेतन, मेंटनेंस पर लाखाें खर्च हो रहे हैं, पर मरीजाें काे लाभ नहीं मिल पा रहा है.

कल्चर एंड डीएसटी लैब में एक्सडीआर की होती है जांच :

जब कोई मरीज मिलता है, तो उसमें दो प्रकार के लक्षण होते हैं. एक सेंसिविटी और दूसरा रेसिस्टेंस. टीबी संक्रमित गंभीर मरीज, जिन पर टीबी के इलाज से जुड़ी अधिकतर दवाइयां बेअसर साबित होती हैं, उन मरीजों को एक्सडीआर यानी एक्सट्रा ड्रग रेजिस्टेंस टीबी कहा जाता है. कल्चर एंड डीएसटी जांच में एक्सडीआर जांच होती है. धनबाद के कल्चर एंड डीएसटी लैब में जांच होने से रिपोर्ट जल्द मिल जाती है. ऐसे में मरीजों का समय पर इलाज शुरू हो जाता है. धनबाद के लैब में जांच बंद होने के कारण सैंपल जांच के लिए इटकी आरोग्य शाला (रांची) भेजा जाता है. इस कारण रिपोर्ट मिलने में कई बार एक माह से ज्यादा का समय लग जाता है. इस वजह से समय पर कई मरीजों का इलाज शुरू नहीं हो पाता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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