धनबाद.
सरायढेला मंडप थान में गुरुवार को करम अखाड़ा समिति की ओर से करम महोत्सव का आयोजन किया गया. इसमें 28 जवैता दलों ने भाग लिया. झारखंडी संस्कृति का संदेश देती बहनों ने पारंपरिक शृंगारकर अपने जावा के साथ करम गीतों पर नृत्य किया. इसमें प्रथम स्थान सुगियाडीह ग्रुप, द्वितीय लिपिडीह ग्रुप व तृतीय स्थान आदिवासी ग्रुप छाताटांड़ को मिला. अन्य ग्रुप को कांसलेशन प्राइज दिया गया. कार्यक्रम को सफल बनाने में पूर्व पार्षद गणपत महतो लाली महतो, मुखिया महतो, भीम महतो, हीरालाल महतो, विमल महतो, मागा महतो, रंजीत महतो, अर्जुन महतो, खेदन महतो, राजकिशोर महतो, पूर्व पार्षद मंजू देवी, कांति देवी, लक्ष्मी महतो, संतोष महतो का सक्रिय योगदान रहा.भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है करम :
पारंपरिक तौर पर यह भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक माना गया है. इस त्योहार को मनाने में करमा – धरमा , दो भाइयों की कहानी काफी प्रसिद्ध है. करम कथा में इसे सुनाकर पूजा सम्पन्न की जाती है. इसकी तैयारी कुंवारी कन्याओं के द्वारा पांच , सात या नौ दिनों पूर्व छोटी – बड़ी टोकरियों में विभिन्न प्रकार की अनाज के दानों के द्वारा जावा फूल ( पौधे ) तैयार किये जाते हैं. चार, छ: या आठ दिनों तक अंधेरे कमरे में रख कर हल्दी से सींचा जाता है और धूप-अगरबत्ती दिखायी जाती है. पूजा में भाग लेनेवाले भाई-बहन करम त्योहार के दिन सारा दिन उपवास रख कर शाम पूजा सम्पन्न होने पर ही जल/शरबत ग्रहण करते हैं फिर प्रसाद ग्रहण करते हैं. करम त्योहार के दिन तीन भाई अपने साथियों के साथ नगाड़ा-मांदर के साथ गीत-नृत्य करते हुए करम डाल लाने जाते हैं. करम पेड़ के चारों ओर दायें से बायें गीत-नृत्य करते हुए जल एवं अर्घ्य अर्पण कर तीन डाल लेते हैं और नाचते-गाते अखरा/पूजा स्थल पर आते हैं और अखरा का दायें से बायें तीन बार नाचते-गाते चक्कर लगा कर उपवास की हुई बहनों को सुपुर्द करते हैं. बहनें गड्ढे में सिक्का डालकर करम डाल को बड़े ही श्रद्धाभाव से स्थापित करती हैं. फिर अरवा धागा से तीनों करम डाल को दायें से बायें तीन बार लपेटकर बांधा जाता है. फिर उसकी आरती की जाती है. दायें से बायें वाली विधि से ही पूजा की सारी विधियां सम्पन्न की जाती हैं. इसी के साथ करमा-धरमा की कहानी भी कही जाती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है