कभी कोयलांचल की राजनीति ही नहीं बल्कि अविभाजित बिहार की राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले कई दिग्गज नेताओं के परिजन चुनावी राजनीति से बिल्कुल दूर हैं. कभी दूसरों को चुनाव जिताने का दंभ रखने वाले इन नेताओं की अब चर्चा भी नहीं के बराबर होती है. इनमें कई धाकड़ मजदूर नेता भी रहे. कुछ का धनबाद के बाहर की राजनीति में भी पकड़ थी. कई नेता तो पूरे बिहार की राजनीति में भूचाल लाने की कूबत रखते थे. विधायक, सांसद, जिला परिषद अध्यक्ष, अविभाजिबत बिहार सरकार में कई टर्म कैबिनेट मंत्री तक बने.
शंकर दयाल सिंह :
शंकर दयाल सिंह (अब स्वर्गीय) धनबाद की राजनीति में अलग पहचान रखते थे. धनबाद जिला परिषद के वह पहले अध्यक्ष बने थे. इसके बाद भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) की टिकट पर पहली बार बाघमारा विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने. बाद में कांग्रेस में शामिल हो गये. तीन बार बाघमारा से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने. बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें धनबाद से प्रत्याशी बनाया. धनबाद के तत्कालीन सांसद सह दिग्गज वाम नेता एके राय को पराजित कर इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा दिलाया. इसके बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में हार गये. फिर उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद उनके परिवार के सदस्य राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं रहे. एक बार उनका बेटा धनबाद विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे. उनकी बहू भी 2010 में धनबाद से मेयर पद के लिए चुनाव लड़ी थीं. सफलता नहीं मिलने के बाद परिवार के सदस्य सक्रिय राजनीति से दूर ही रह रहे हैं. साथ ही चुनाव में भी सक्रिय नहीं दिखते.सत्यदेव सिंह :
कोयलांचल की राजनीति में पंचदेव में से एक सत्यदेव सिंह (अब स्वर्गीय) की पकड़ धनबाद ही नहीं बिहार की राजनीति पर भी थी. पूर्व मंत्री शंकर दयाल सिंह के अनुज सत्यदेव सिंह कई वर्ष तक धनबाद जिला परिषद के अध्यक्ष रहे. अविभाजित बिहार में कांग्रेस की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र के काफी नजदीकी माने जाते थे. पूर्व सीएम बिंदेश्वरी दुबे से नहीं पटने पर बिहार सरकार ने पूरे राज्य में सभी जिला परिषद बोर्ड को भंग कर दिया था. इसके बाद बिहार विधान परिषद के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय लड़े. डॉ मिश्र के समर्थन से कांग्रेस में क्रॉस वोटिंग करा कर निर्दलीय विधान परिषद के सदस्य बन कर सबको अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराया था. उनके बड़े पुत्र राजीव रंजन देव राजनीति में आये. वर्ष 1989, 90 एवं 1991 में लगातार तीन बार छपरा से लोकसभा चुनाव लड़े. इसमें एक बार बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव के खिलाफ भी लड़े थे. तीनों बार दूसरे स्थान पर रहे. इसके बाद श्री देव ने राजनीति से संन्यास ले लिया. फिलहाल पूरा परिवार चुनावी राजनीति से दूर है. उनके एक पुत्र बिहार में भाजपा की राजनीति में सक्रिय हैं.एसके राय :
कोयलांचल के धाकड़ मजदूर नेता एसके राय (अब स्वर्गीय) दो बार झरिया से विधायक रहे. पहली बार 1969 में भारतीय क्रांति दल से विधायक बने. दूसरी बार सीपीआइ के टिकट पर झरिया से विधायक बने. झरिया के विधायक सूर्यदेव सिंह के साथ उनकी अदावत काफी मशहूर थी. उनके ऊपर कई बार जानलेवा हमला हुआ. श्री राय बाद में कांग्रेस में शामिल हो गये. इंटक की राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहे. राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ के महामंत्री रहे. उनके निधन के बाद उनके परिजन कभी चुनावी राजनीति में नहीं उतरे. एक पुत्र जैनेंद्र राय यहां कांग्रेस की राजनीति में शामिल हैं. लेकिन, कभी कोई चुनाव नहीं लड़े.योगेश प्रसाद योगेश :
योगेश प्रसाद योगेश (अब स्वर्गीय) ने धनबाद की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनायी थी. कांग्रेस के जिलाध्यक्ष थे. वर्ष 1977 में कांग्रेस ने उन्हें धनबाद विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया. कांग्रेस को जीत दिलायी. लगातार दो बार धनबाद के विधायक रहे. 1980 में दूसरी बार जीतने के बाद अविभाजित बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. फिर 1984 में कांग्रेस ने उन्हें चतरा से लोकसभा चुनाव में टिकट दिया. यहां से जीत कर सांसद बने. उसके बाद फिर कोई चुनाव नहीं जीत पाये. एक बार धनबाद से भी कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा में टिकट दिया था. उनके पुत्र राजीव रंजन अभी कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं. लेकिन, कभी चुनावी राजनीति में नहीं उतरे. इस बार बाघमारा से कांग्रेस के टिकट के लिए आवेदन दिये थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है