उपमुख्य संवाददाता, धनबाद,
मंगलवार से वासंतिक नवरात्र शुरू हो रहा है. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्र की शुरूआत होती है. पंडित गुणानंद झा ने बताया : प्रतिपदा आठ अप्रैल को रात्रि 2.5 बजे शुरू हो रहा है, जो नौ अप्रैल को रात्रि 9 बजकर 52 मिनट में समाप्त होगा. मंगलवार नौ अप्रैल से वासंतिक नवरात्र शुरू हो जायेगा. पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जायेगी. शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं. उन्होंने दाहिने हाथ में त्रिशुल व बाएं हाथ में कमल का फूल धारण किया है. नवरात्र का समापन 17 अप्रैल को होगा. इस बार नौ दिवसीय संपूर्ण नवरात्र है. किसी तिथि का क्षय नही है. महासप्तमी 15 अप्रैल, महाअष्टमी 16 अप्रैल, महानवमी 17 अप्रैल को है. 18 अप्रैल को मां की पूजा-अर्चना कर विदाई दी जायेगी. नवरात्र को लेकर भक्तों में उत्साह है. घरों व मंदिरों में कलश स्थापना व नवरात्र को लेकर तैयारी की जा रही है.
कलश स्थापना का समय :
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त ब्रह्म मुहूर्त से दोपहर साढ़े बारह बजे तक है. अभिजीत मुहूर्त साढ़े ग्यारह बजे से लेकर दोपहर साढ़े बारह बजे तक है.
पूजा दुकानों में लगी रही भीड़ :
नवरात्र में कलश स्थापना को लेकर पूजा दुकानों में भक्तो की भीड़ सुबह से ही लगने लगी. सुहाने मौसम को देखते हुए दिनभर भक्तगण दुकान पहुंचकर पूजन सामग्री, मां की चुनरी, कलश, नारियल, हुमाद, व अन्य सामग्री की खरीदारी की.
ऐसे करें कलश स्थापना :
पंडित गुणानंद झा ने बताया कलश स्थापन के लिए स्नान ध्यान कर शुभ मुहुर्त में पूर्व मुखासन पर बैठ जायें. शरीर को शुद्ध कर लें. शरीर का शुद्धिकरण ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि: मंत्र से करें. सर्व प्रथम गणेश देव का आवाह्न कर पूजा का संकल्प लें. नौ ग्रह, कुलदेवी, कुल मातृकाओं का पूजन करें. उसके बाद देवी दुर्गा का आवाह्न व पूजन करें. जातक दुर्गावेदी के सामने दक्षिणभाग में बालू बिछाकर उस पर स्वस्तिक बनाकर या अष्टदल कमल बनायें. उस पर सप्तधान ( जौ, गेंहू, धान, तिल, कौनी, चना व सावा) रखकर उस पर कलश रखें. कलश में स्वास्तिक बना दें. मौली धागा लपेट दें. कलश में जल भरकर उसमें सप्तमृतिका (सात तरह की मिट्टी) डालें. पंच रत्न, सर्वोषधि डालें. भगवती का स्मरण करते हुए पृथ्वी को स्पर्श करें. कलश में अक्षत, फूल , चंदन, सुपारी, पैसा डालकर आम पल्लव डालें. उसके ऊपर चावल से भरा ढक्कन रखें. कलश स्थापित करते समय मंत्रोच्चारण करें. कलश अधिष्ठात्री देवताभ्यों नम: वरूणादि देवताभ्यों नम:उसके बाद कलश स्थापित करें.