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DHANBAD NEWS : मूढ़ी और जंगली फल खाकर चुनाव प्रचार करते थे कार्यकर्ता

यादों के झरोखे से : घर घर जा कर पंपलेट पर होता था चुनाव, अब मोबाइल से हो रहा है चुनाव प्रचार और वोट का कैंपेनिंग

पहले के चुनाव में कार्यकर्ता घर-घर जा कर प्रचार करते थे. पैसे का महत्व कम था. सिद्धांत की राजनीति होती थी. अब पैसे के बल पर चुनाव प्रचार कराया जाता है. नीति-सिद्धांतों की कोई अहमियत नहीं रह गयी है. यह कहना है 1952 में पहले विधानसभा चुनाव में निरसा-टुंडी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले राम नारायण शर्मा के पुत्र नरेंद्र शर्मा का. प्रभात खबर से खास बातचीत में नरेंद्र शर्मा ने बताया कि उनके पिता स्वर्गीय राम नारयण शर्मा 1952 में पहला चुनाव टुंडी सह निरसा विधानसभा सीट से लड़े थे और जीत भी हासिल की थी. राजनीतिक जीवन में 1952 से 1967 तक वह धनबाद जिले के अलग अलग विधानसभा से जीत हासिल कर विधायक बने रहे. उनका चुनाव प्रचार का काम वे (नरेंद्र शर्मा) खुद देखते थे. उन्होंने ने बताया कि पहले के कार्यकर्ता सुबह-सुबह मूढ़ी लेकर गांव-गांव प्रचार प्रसार के लिए निकल जाते थे .दोपहर तक प्रचार के बाद रास्ते में रुक कर मूढ़ी और जंगली फल खा कर पुनः प्रचार प्रसार करते थे. वहीं आज के समय में चुनाव के लिए शराब और मांस का उपयोग के साथ साथ कार्यकर्ताओं को एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए वाहन की जरूरत पड़ती है. पहले के चुनाव की अपेक्षा अब का चुनाव काफी आसान सा हो गया है और उमीदवार को ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है .

1952 से 1967 तक के दशक में घर-घर जाकर करते थे चुनाव प्रचार :

नरेंद्र शर्मा ने बताया कि 1952 के दशक में आधुनिक सुविधाओं की कमी के कारण घर-घर जाकर कागज पर लिख कर मतदाता को समझाना पड़ता था. लेकिन, आज के समय में मोबाइल फोन की सुविधा होने कारण प्रचार प्रसार की व्यवस्था में काफी आसानी हो गयी है. अंतर यही है कि पहले के चुनाव में खर्च बहुत कम आता था, लेकिन अब चुनाव लड़ने में काफी पैसे खर्च करने पड़ते हैं.

मोबाइल फोन व सड़क अहम भूमिका निभा रहा हैं प्रचार प्रसार में :

पहले के चुनाव में सड़क नहीं होने कारण जीप, मोटरसाइकिल लोगों के गांव तक नहीं पहुंच पा रही थी. इससे कार्यकताओं को पैदल जाना पड़ता था. लेकिन, वहीं अब सुविधा में वाहन, मोटरसाइकिल मोबाइल फोन जैसे हर विधानसभा में सड़क का निर्माण होने के कारण लोग आसानी से कम समय में एक दूसरे के घर जा कर अपने नेताओं के बारे में बता रहे हैं. इससे बढ़ती जनसंख्या के बाद भी लोग जागरूक होकर अपना मतदान प्रतिशत बढ़ा रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि पहले का चुनाव खर्च काफी कम पैसा में होता था. कार्यकर्ताओं की टीम मुफ्त में प्रचार-प्रसार करती थी. लोगों में एक शौक रहता था कि हम चुनाव प्रचार करने जा रहे हैं, लेकिन अब के समय में कोई कार्यकर्ता बिना पैसा का घर से निकलता भी नहीं है. इससे अब का चुनाव पैसा का चुनाव है. सुविधाओं का चुनाव है. जिसके पास पैसा है, गाड़ी है, उनके लिए चुनाव आसान सा बन गया है .

पहले के चुनावी मुद्दा और अब के मुद्दा में बहुत अंतर है :

पहले के चुनाव में शहर गांव के उत्थान का मुद्दा होता था. जीतने के बाद जनप्रतिनिधि को काम करना पड़ता था. अब चुनावी मुद्दे अलग हैं. जितना झूठ बोल सकते हैं, जनता के सामने पड़ोस दीजिए, वही मुद्दा है. पहले बेरोजगारी की समस्या बहुत कम थी, लेकिन अब हर जगह रोजगार मुख्य मुद्दा बन गया है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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