दुमका, आनंद जायसवाल : बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के बेंच ऑफ मजिस्ट्रेट के सामने मंगलवार 28 मार्च,2023 को 10 बालक-बालिकाओं को पेश किया गया. इनमें से हर बच्चे की एक अलग कहानी थी. नौ बालक-बालिकाओं को चाइल्डलाइन, दुमका की टीम ने पेश किया जबकि एक बालिका को एंटी ह्यूमैन ट्रैफकिंग यूनिट (आहतु) की एसआई श्वेता कुमारी ने समिति के समक्ष प्रस्तुत किया.
दुमका प्राइवेट बस स्टैंड में भटकते मिली थी 11 वर्षीय बालिका
11 वर्षीय बालिका दुमका के प्राइवेट बस स्टैंड में मिली थी. जिसे भटकता हुआ देखकर किसी ने नगर थाना पहुंचा दिया था. समिति के चेयरपर्सन डॉ अमरेंद्र कुमार, सदस्य डॉ राज कुमार उपाध्याय एवं नूतन बाला ने बालक, बालिकाओं और उनके माता-पिता एवं अभिभावकों का बयान दर्ज किया. 11 वर्षीय ये बालिका पाकुड़ जिला के पाकुड़िया थाना क्षेत्र की रहनेवाली थी जो घर से भाग कर दुमका पहुंच गयी थी. समिति ने बालिका एवं उसकी नानी का बयान दर्ज किया और फार्म-19 के तहत उसे इस शर्त के साथ उसकी नानी को सौंप दिया कि एक सप्ताह के अंदर वह बालिका को लेकर पाकुड़ के बाल कल्याण समिति के समक्ष हाजिर होगी.
हर बच्चे की अलग कहानी
चाइल्ड लाइन, दुमका के टीम सदस्य निक्कु कुमार, मो इब्नूल हसन और निशा कुमारी ने छह बालकों एवं तीन बालिकाओं को समिति के समक्ष प्रस्तुत किया. ये बच्चे 8 से 15 आयु वर्ग के थे. इनमें से किसी के पिता की मृत्यु हो चुकी है, तो किसी की मां ने दूसरी शादी कर ली है. ऐसे एक बच्चे को भी पेश किया गया जिसके पिता के मृत्यु के बाद मां ने दूसरी शादी कर ली और बच्चों को ससुराल में उनके हाल पर छोड़ दिया. एक मामला ऐसा भी था जिसमें दूधमुंहे बच्चे समेत अपने तीन बच्चों को छोड़ कर मां मायके में रह रही है. बच्चों का पिता हिमाचल प्रदेश में काम करता है और बच्चों की देखभाल उसकी दादी करती है.
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स्पॉन्सरशिप योजना का मिले लाभ
इन नौ मामलों की सुनवाई के दौरान अधिकतर मामले ऐसे पाये गये जिनमें बच्चों को स्पॉन्सरशिप योजना से जोड़ कर उन्हें हर माह 2000 रुपये की आर्थिक सहायता दी जा सकती है, ताकि वे अच्छे से पढ़ाई कर सके और उन्हें पोष्टिक भोजन मिल पाये. बच्चों के अभिभावकों को 75000 रुपये से कम का वार्षिक आय प्रमाण पत्र और स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र जमा करने का निर्देश दिया गया, ताकि बच्चों को स्पॉन्सरशिप योजना का लाभ देने के लिए चयन किया जा सके.
रिपोर्ट देने का निर्देश
एक बच्चा ऐसा भी था जिसकी मां उसकी आंखों का इलाज नहीं करवा रही थी और न ही कोरोना के बाद से उसका किसी स्कूल में नाम लिखवाया था. बालक का सरकारी अस्पताल में इलाज करवाने और विद्यालय में नामांकन करवा कर उसकी रिपोर्ट देने को कहा गया. वचनबंध लेकर सभी बच्चों को उनके अभिभावकों के साथ घर भेज दिया गया है.