चार दशक में भी पूरा नहीं हो सका संताल में बंदोबस्त का काम
65 पदाधिकारियों का चेहरा देख चुका है कार्यालय, यही गति रही तो और कम पड़ जायेगा चार दशक अब तक यह कार्य 30-35 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो पाया है पूरा त्रुटियों की है भरमार, सुधारने में छूट रहे पसीने दुमका कोर्ट : संतालपरगना प्रमंडल में बंदोबस्त का कार्य कछुए की रफ्तार से चल रहा […]
65 पदाधिकारियों का चेहरा देख चुका है कार्यालय, यही गति रही तो और कम पड़ जायेगा चार दशक
अब तक यह कार्य 30-35 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो पाया है पूरा
त्रुटियों की है भरमार, सुधारने में छूट रहे पसीने
दुमका कोर्ट : संतालपरगना प्रमंडल में बंदोबस्त का कार्य कछुए की रफ्तार से चल रहा है. यहां बंदोबस्त का कार्य अब तक आधा भी पूरा नहीं हुआ है. पूरे प्रमंडल में केवल दो ही अंचल के बंदोबस्त के कार्य पूरे हुए हैं और रैयतों को अंतिम परचा उपलब्ध कराया गया है. उसमें भी त्रुटियों की भरमार है, जिसे सुधरवाने में रैयतों को भारी आर्थिक बोझ और मानसिक क्षति उठानी पड़ रही है. संतालपरगना में बंदोबस्त का कार्य 1978 में प्रारंभ हुआ था. अगले साल यानी की 2018 में इस कार्य को शुरू हुए चालीस साल पूरे हो जायेंगे. जानकारों की माने तो अब तक यह कार्य 30-35 प्रतिशत से ज्यादा पूरा नहीं हुआ है.
65 पदाधिकारियों का चेहरा देख चुका है कार्यालय : संताल परगना का बंदोबस्त कार्यालय अब तक 65 पदाधिकारियों का चेहरा देख चुका है. यहां के बंदोबस्त पदाधिकारी रहने वाले कई पदाधिकारी देश व राज्य के शीर्ष प्रशासनिक पदों पर भी पहुंचे. यहां पहले बंदोबस्त पदाधिकारी हुए थे गोविंद रामचंद्र पटवर्द्धन. पर वे साल भर ही इस पद पर कार्य कर सके. अधिकांश समय तो जिले के उपायुक्त ही बंदोबस्त पदाधिकारी के प्रभार में रहे. यह भी एक बड़ी वजह रही की बंदोबस्त का कार्य देखने वालों ने इसकी गंभीरता से कभी
समीक्षा नहीं की.
विवाद भी होते रहे, अनियमितता भी होती रही
संप में बंदोबस्त के कार्य में अनियमतितता की शिकायतें कोई नहीं नहीं है. हजारों केस लंबित है. अधिकांश केस इसलिए दाखिल हुए कि वास्तविक रैयत की जगह दूसरे के नाम दर्ज कर दिये गये हैं. त्रुटियों को समाप्त करने के नाम पर पैसे के खेल में निगरानी विभाग तक को कार्रवाई करनी पड़ी थी. एएसओ व उनके पेशकार तक जेल गये थे.
वुड व मैकफर्शन 7-7 साल में, गेंजर 13 साल में हुआ था
संतालपरगना में पहला बंदोबस्त सर्वेक्षण (सेट्लमेंट) 1872 में हुआ था, जिसे ब्राउन वुड ने बतौर उपायुक्त कराया था. 1872 से लेकर 1879 तक यह बंदोबस्त कार्य 7 वर्षों में पूरा करा लिया गया था. दूसरा सेट्लमेंट मैकफर्सन का था. जो 1898 से 1905 तक चला था. इसी सेटलमेंट में धानी तथा बाड़ी में जमीन का विभाजन किया गया था. धानी-1 एवं धानी-2 एवं बाड़ी में बांटा गया, जिसके आधार पर लगान तय किये गये. अभी भी जमीन की किस्म इसी से तय हो रही है. इसी के आधार पर जमीन का मुआवजा तय होता है. तीसरा सेटलमेंट 1922 से 1935 तक चला था. इसे अंग्रेज प्रशासक गेंजर ने पूरा कराया था, इसलिए इसे गेंजर सेटलमेंट भी कहा गया.
बोले पदाधिकारी
जब बंदोबस्त का कार्य शुरू हुआ था, तब 378 कर्मी हुआ करते थे, लेकिन आज कर्मियों की कमी है. महज 72 कर्मी हैं. दूसरे तरह के संसाधनों की भी कमी है. जिसकी वजह से कार्य में विलंब हुआ है.
– शंभु शरण, सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी(मुख्यालय)