पक्की सड़क व बिजली को तरस रहे ग्रामीण
तीन दशक पूर्व हरा-भरा दिखता था गांव, आज बंजर हो गयी जमीन लिफ्ट एरिगेशन को शुरू कराने की नहीं हो रही पहल, अधिकारी उदासीन हर गांव में पक्की सड़क बनाने का दावा साबित हो रहा है खोखला गांव के बीच से गुजरी है एनएच, पर पगडंडी के सहारे आवाजाही करते ग्रामीण दुमका : जिस गांव […]
तीन दशक पूर्व हरा-भरा दिखता था गांव, आज बंजर हो गयी जमीन
लिफ्ट एरिगेशन को शुरू कराने की नहीं हो रही पहल, अधिकारी उदासीन
हर गांव में पक्की सड़क बनाने का दावा साबित हो रहा है खोखला
गांव के बीच से गुजरी है एनएच, पर पगडंडी के सहारे आवाजाही करते ग्रामीण
दुमका : जिस गांव से नेशनल हाइवे गुजरती हो और दो महत्वपूर्ण नदी से गांव लगभग पूरी तरह घिरा हुआ हो. उस गांव के लोग एक अदद पक्की सड़क को तरस रहे हैं. खेतों के लिए पटवन के संसाधन की मांग करने को विवश हैं, तो इसका मतलब यही है कि इन गांवों के विकास के लिए कभी सशक्त व सकारात्मक प्रयास नहीं हुए. जो काम हुए, वह केवल खानापूरी ही साबित हुई. टेपरा नदी से 1980 के दशक में मुंडमाला के किसान लिफ्ट इरिगेशन प्रणाली का इस कदर लाभ उठाते थे कि गांव के चहुंओर हरियाली छायी रहती थी.
खासकर नदी के किनारे तो कोई खेत किसी भी मौसम में खाली नहीं होता था. पांच-सात साल लाभ मिलने के बाद लिफ्ट इरिगेशन प्रणाली ठप हुई, तो उसके दुबारा चालू कराने का प्रयास नहीं हुआ. अब पानी का उठाव करने के लिए न तो मोटर रह गये, न ही पाइप. बचा है तो केवल खंडहरनुमा भवन. अगर यहां सिंचाई की व्यवस्था हो जाये, तो आज भी यहां के किसान खेती कर गांव की खुशहाली ला सकते हैं. पश्चिम बंगाल, असम या दूसरे राज्यों में पलायन को विवश नहीं होना पड़ेगा.
बरसात में नारकीय हो जाती है जिंदगी
सरसाबाद पंचायत में पड़नेवाला मुंडमाला गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित है. शत-प्रतिशत संताल आदिवासियों के गांव में तकरीबन 110 परिवार बसे हैं. गांव से होकर नेशनल हाइवे से सटा हुआ है, लेकिन गांव के अंदर की सड़क कच्ची हैं. हल्की बारिश के बाद सड़क कीचड़ में तब्दील हो जाती है.
बरसात में तो जिंदगी नारकीय हो जाती है. सड़क से दोपहिया वाहन पार करना किसी जंग जितने से कम नहीं है. इस कारण ग्रामीणों को आवागमन में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. गांव के पथों का पक्कीकरण कराने अथवा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से इसे अच्छादित कराते हुए दूसरे गांवों से मिला दिया जाये, तो लोगों को काफी सहूलियत होगी. गांव में नाला नहीं बनने से जगह-जगह जल जमाव की भी स्थिति है. दुर्गंध व दूषित जल के जमाव बीमारियों को जन्म देते रहते हैं.
पेंशन की आस में पथरा गयी आखें
सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत पेंशन पाने के लिए मुंडमाला गांव के दर्जनों लोग आवेदन दे-देकर थक चुके हैं. अब उनकी आंखें पथराने लगी हैं. ठोमा बास्की, सीताराम हांसदा, यदु हांसदा, रसका टुडू बेदे हेंब्रम, सीताराम हेंब्रम, रामेश्वर मुर्मू, मकलू मुर्मू, गुपीन हांसदा आदि ने बताया कि वे पांच-छह बार आवेदन दे चुके हैं. कई बार नयी सूची बनी, पर उनका नाम अब तक नहीं आया. विधवा मकु टुडू, लगनी सोरेन, सोनामुनी सोरेन, पकु सोरेन, लीलसुनी मुर्मू आदि ने बताया कि उनलोगों ने भी आवेदन दिया था, पर आज तक सुनवाई नहीं हुई है. पकु मरांडी, सोना हेंब्रम व जीतन टुडू जैसे ग्रामीणों ने प्रधानमंत्री आवास न मिलने की शिकायत की.
गांव में पाइप जलापूर्ति का मिले लाभ
गांव के युवाओं-महिलाओं का कहना था कि पास में ही मयुराक्षी व टेपरा नदी हैं, इससे जलापूर्ति सुनिश्चित करायी जानी चाहिए. चापाकल से पेयजल समुचित उपलब्ध नहीं हो पाता. पाइप जलापूर्ति से पेयजल की समस्या का स्थायी निदान होगा. ग्रामीणों ने बताया कि अधिकांश चापाकल गर्मी में जवाब देने लगते हैं. अभी ही दो चापाकल खराब पड़े हुए हैं. पाइपलाइन से पानी मिलेगा, तो समय बर्बाद नहीं होगा तथा स्वच्छ जल भी घरों तक पहुंचेगा.
हाल ही में जिले में 200 सहायक पुलिस की बहाली हुई, पर हम जैसे युवा को उसमें शामिल नहीं होने दिया गया. बताया गया कि उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के युवाओं की ही इसमें बहाली होनी है. ऐसी नीति रहेगी तो युवाओं में भटकाव आयेगा. सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए कि युवा बेरोजगार न रहे. खेती से भी उनको जोड़ा जाये. गांव में ऐसे संसाधन विकसित हों, इससे पलायन की मजबूरी भी न रहे.
मोतीलाल सोरेन, ग्रामीण
कहते हैं ग्रामीण
गांव के बीच से होकर नेशनल हाइवे गुजरा है, पर दुर्भाग्य है कि हमारे गांव के अंदर की सड़क कच्ची है. नालियां नहीं बनी है. जगह-जगह दूषित जल का जमाव होता रहता है, जो बीमारी का कारण बनता है. इस पंचायत के बालूघाट से पंचायत सचिवालय को राजस्व मिला, पर उससे भी विकास नहीं किया गया.
बाबूराम हांसदा, ग्रामीण
इस इलाके से किसी को पलायन नहीं करना होगा, बशर्ते की पटवन का लाभ मिले और सरकार इसमें सहयोग करे. जो सुविधाएं तीन दशक पहले थी, वह आज भी नहीं है. तीन दशक पहले तक पटवन से सालभर खेती होती थी. पानी आज भी है. आज दो-दो ग्रिड भी इस पंचायत में है. खेती के लिए बिजली मिले, तो गांव की तस्वीर बदलने लगेगी.
गोपाल सोरेन, ग्रामीण