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दुमका संसदीय क्षेत्र : …जब हाट में पत्ता घुमा कर जुटायी जाती थी भीड़
आनंद जायसवाल एक मुट्ठी चावल और एक रुपया संग्रहित कर झामुमो ने लड़ा था चुनाव दुमका : दुमका संसदीय क्षेत्र में पहले आबादी कम थी और आवागमन की उतनी सुविधा भी नहीं थे. ऐसे में अधिकतर नेताओं का चुनाव में जनसंपर्क का माध्यम साइकिल अथवा पदयात्रा ही हुआ करता था. बटेश्वर हेंब्रम ने तो अपना […]
आनंद जायसवाल
एक मुट्ठी चावल और एक रुपया संग्रहित कर झामुमो ने लड़ा था चुनाव
दुमका : दुमका संसदीय क्षेत्र में पहले आबादी कम थी और आवागमन की उतनी सुविधा भी नहीं थे. ऐसे में अधिकतर नेताओं का चुनाव में जनसंपर्क का माध्यम साइकिल अथवा पदयात्रा ही हुआ करता था. बटेश्वर हेंब्रम ने तो अपना चुनावी जनसंपर्क हमेशा साइकिल से ही किया था. लंबी दूरी तय करने के लिए तब उनके समर्थकों ने चंदा उठाया था और किराये में चंद दिनों के लिए एक गाड़ी ली थी. कांग्रेस से पृथ्वीचंद किस्कू ने जब चुनाव लड़ा था, तब उनके पास संसाधन थे. अपनी गाड़ी थी.
वहीं, शिबू सोरेन ने जब चुनाव लड़ा तो जनसंपर्क को प्रभावी बनाने तथा खुद को लोगों से जोड़ने के लिए पदयात्रा के स्वरूप को बदला. कार्यक्रम चलाया चलो गांव की ओर. इस कार्यक्रम के जरिये उन्होंने घर-घर में एक मुट्ठी चावल और एक रुपये संग्रहित करने का अभियान चलाया.
झामुमो के कार्यकर्ता ऐसे जनसंपर्क अभियान आज भी समय-समय पर चलाते हैं. हालांकि बदलते परिवेश में झामुमो ने भी बड़े दलों की तरह अपना चुनावी जनसंपर्क के तौर-तरीकों को बदला है. चुनाव के वक्त हेलीकाप्टर से चुनावी दौरा करने में अब झामुमो-झाविमो जैसे दल के नेता पीछे नहीं रहते. फेसबुक, ह्वाट्सएप और मिस्ड कॉल के जरिये पार्टी से जोड़ने में इस दल ने भाजपा-कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों से खुद को पीछे नहीं रखा है.
झामुमो के केंद्रीय महासचिव विजय कुमार सिंह बताते हैं कि चार दशक पहले किसी भी दल के पास उतना संसाधन नहीं था. ऐसे में जनसंपर्क के लिए पदयात्रा ही सबसे कारगर था. पार्टी के प्रत्याशी रहे शिबू सोरेन के पास जीप थी, जिसे वे खुद चलाते भी थे, पर वह लंबी दूरी तय करने के लिए ही उपयोग में लायी जाती थी. चुनावी सभा में बुलाहट के लिए तो हाट-बाजार में पत्ते घुमाये जाते थे. प्रचार के लिए झंडे लेकर कार्यकर्ता तमाक बजाते थे.
जल, जंगल व जमीन बनता रहा चुनावी मुद्दा : दुमका संसदीय क्षेत्र के लिए पिछले चार दशकों से जल, जंगल और जमीन सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनता रहा है.
अलग राज्य की मांग से लेकर एसपीटी-सीएनटी एक्ट की सुरक्षा भी यहां के लिए चुनावी विषय रहा. राज्य अलग हुआ तो राज्य के विकास, स्थानीयता, आरक्षण व झारखंडी पहचान की रक्षा को मुद्दा बनाया जाता रहा. राज्य में सरकार बनती-बिगड़ती इसी मुद्दे पर रही. दुमका संसदीय क्षेत्र में सिंचाई के संसाधनों की कमी, विकास के दृष्टिकोण से पिछड़ापन मुद्दा बनता रहा. आज भी अधिकांश जमीन सिंचित नहीं है. किसान एक फसल भी साल में ढंग से नहीं ले पाते. आज तक एक बड़ा उद्योग नहीं लग पाया. किसानों को पटवन के लिए आंदोलन करना पड़ता रहा है.
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